नैनीताल के निवासियों और हजारों पर्यटकों की प्यास भी बुझा रही है झील
पर्ची और घंटी टांगने से पूरी हो जाती है मन्नत। गौर भैरव व शिवस्वरूप है, कुमाऊं के लोक देवता गोलू
कैलाश और ओम पर्वत की मेरी धार्मिक और आध्यात्मिक यात्रा 16 से 25 सितंबर के मध्य हुई। 29 सितंबर तक यात्रा के चार वृतांत लिखे गए है। जिन पर पाठकों ने पहला, दूसरा और तीसरा वृतांत किन्हीं कारणों से नहीं पढ़ा वे पाठक अब सभी वृतांतों की मांग कर रहे है। ऐसे पाठकों से मेरा आग्रह है कि वे फेसबुक पर सभी वृतांतों का आनंद ले सकते है। मेरा प्रयास है कि भारतीय सीमा में ही रहकर कैलाश और ओम पर्वत के दर्शन की जो नई व्यवस्था की गई है उसकी जानकारी अधिक से अधिक धर्म प्रेमियों को हो। देश का कोई भी नागरिक अब आसानी से उत्तराखंड में हिमालय पर्वत पर भगवान शिव और ओम की आकृति के दर्शन कर सकते है।
वरिष्ठ नागरिक भी भगवान शिव के दर्शन कर अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकते हैं। चूंकि मेरी यह यात्रा अध्यात्म से जुड़ी हुई हे इसलिए मैंने और मेरे समूह के सदस्यों ने कुमाऊं क्षेत्र के कई धार्मिक स्थलों के दर्शन भी किए। ऐसा ही एक धार्मिक स्थल अल्मोड़ा जिले में स्थित चितई गोलू देवता का मंदिर भी है। यात्रा शुरू करने से पहले कई परिचितों ने कहा था कि नैनीताल के निकट बने गोलू देवता मंदिर में जरूर उपस्थिति दर्ज करवानी है। मंदिर परिसर में पहुंचने पर मैंने देखा कि पूरे मंदिर परिसर में पीतल की घंटियां और कागज की पर्चियां टंकी है।
मान्यता है कि घंटी और पर्ची टांगने से मन्नत पूरी हो जाती है। पर्चियों पर मन्नत भी लिखी हुई हे। घंटियों और पर्चियों की संख्या को देखते हुए जाहिर था कि गोलू देवता के दर्शन से मन्नत पूरी हो रही है। कुमाऊं क्षेत्र के लोग गोलू देवता में शिव और भैरव का स्वरूप देखते है। चूंकि मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं, इसलिए मंदिर के आसपास एक बड़ा बाजार भी विकसित हो गया है। दुकानदार भी हर साइज की पीतल की घंटी और खाली कागज के टुकड़े बेच रहे है।
गोलू देवता अब घंटी और पर्ची वाले देवता के तौर पर भी प्रसिद्ध हो रहे है। मनोकामना पूर्ण होने के बाद संबंधित श्रद्धालु बड़ा घंटा भी मंदिर में स्थापित कर रहे है। गोलू देवता की कहानी कुमाऊं क्षेत्र के एक राज परिवार से जुड़ी हुई है। लेकिन अब आए दिन हो रहे चमत्कार की वजह से गोलू देवता का मंदिर उत्तराखंड ही नहीं पूरे उत्तर भारत में प्रसिद्ध हो रहा है।
प्यास भी बुझा रही है झील:
देश के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक नैनीताल भी है। नैनीताल का मुख्य आकर्षण नैनी झील है। पुराणों में वर्णित है कि ऋषि अत्रि पुलस्त्य और पुलह ने इसी घाटी में तपस्या की और अपनी तपस्या से मानसरोवर का पवित्र जल एकत्रित किया। जिस स्थान पर जल एकत्रित किया वही पर नैनी झील बनी। झील के किनारे ही मां नयना देवी का मंदिर है। नयना देवी को सनातन धर्म की 51 शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। नैनी झील की खासियत यह है कि झील का पानी ही नैनीताल के निवासियों और आने वाले हजारों पर्यटकों को पिलाया जाता है। झील में भले ही काई का साम्राज्य हो, लेकिन पानी को फिल्टर कर सप्लाई किया जाता है।
प्रशासन ने झील में करीब तीन सौ लोगों को नाव चलाने के लाइसेंस दे रखे है। चूंकि झील का पानी पीने के लिए सप्लाई होता है, इसलिए मोटर बोट का लाइसेंस नहीं दिया जात। यही वजह है कि नाव चलाने के काम की वजह से हजारों युवाओं को रोजगार भी मिला हुआ है। चूंकि झील और नयना देवी का मंदिर एक साथ है, इसलिए पर्यटकें का धार्मिक उद्देश्य भी पूरा हो जाता है। चूंकि नैनीताल में वर्ष भर मौसम ठंडा रहता है, इसलिए होटल के कमरों में एससी नहीं होते। अलबत्ता कुछ होटल मालिकों ने अब पंखे लगाना शुरू किया है। इससे पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन का असर नैनीताल जैसे शहर पर भी पड़ रहा है।