कानून तोड़ने से ही होती है वीआईपी वाली फीलिंग

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राजस्थान के चतुर उप मुख्यमंत्री बैरवा ने बेटे की करतूत पर सीधे माफी मांगने के बजाय दलित कार्ड चला, पीएम मोदी को भी बीच में ले आए

राजस्थान के उपमुख्यमंत्री प्रेमचंद बैरवा के साथ लोग वाकई ज्यादती कर रहे हैं। क्या एक उपमुख्यमंत्री का बेटा जीप में घूमते हुए रील नहीं बनवा सकता। क्या हुआ जो बेटा और उसके दोस्त 18 साल के नहीं है। आखिर उसके पिता परिवहन मंत्री भी है, उसका इतना हक तो बनता ही है। 18 साल की उम्र के बाद तो कोई भी युवा लाइसेंस लेकर कार चला सकता है। वीआईपी की फीलिंग तो तभी आएगी, जब 18 साल का हुए बिना गाड़ी चलाकर रील बनाई जाए। अब अगर बैरवा परिवहन मंत्री हैं, तो उनके विभाग की गाड़ी उनके बेटे को नहीं तो क्या उनके पड़ोसी के बेटे को एस्कॉर्ट करेगी। आखिर अफसरों को भी तो मंत्री के प्रति अपनी वफादारी और ईमानदारी दिखानी जरूरी थी। अब आप ये मत कहिए कि राजस्थान में सबसे भ्रष्ट तीन-चार महकमों में परिवहन विभाग भी शुमार है।

गनीमत है बैरवा ने अपने राजदुलारे के बचाव में भाजपा और कांग्रेस के उन मंत्रियों के बेटों के उदाहरण नहीं दिए, जिन पर बलात्कार और हत्या के आरोप हैं। राजस्थान में ही कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे महेश जोशी के बेटे रोहित जोशी बलात्कार के आरोपी हैं। जबकि भाजपा के नेता और केंद्रीय मंत्री रहे अजय मिश्र टेनी के बेटे आशीष मिश्रा पर चार किसानों को थार जीप से कुचलकर मारने का मामला है। मध्यप्रदेश में 2018 में भाजपा के मंत्री रहे रामपाल सिंह के बेटे गिरिजेश पर एक युवती से शादी कर उसे बाद में नहीं अपनाने का आरोप लगा था। इस कारण उस युवती ने खुदकुशी कर ली थी। यूपी में ही एक मंत्री के बेटे ने एक आर्केस्ट्रा में शामिल युवक से विवाद के बाद उसे गोली मार दी थी। ऐसे और भी कई मंत्रियों के बेटों के बड़े-बड़े कारनामे हैं। लेकिन बैरवा का बड़प्पन देखिए,उन्होंने किसी पर नमक नहीं छिड़का।

लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि बैरवा शरीफ या नादान राजनीतिज्ञ है। वे बहुत चतुर हैं,इसलिए उन्होंने तुरंत दलित कार्ड चला। जो हर दलित नेता खुद को अपनी गलती से बचाने के लिए चलता है। उन्होंने इसे सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जोड़ते हुए और उन्हें धन्यवाद देते हुए कहा कि यह मेरा सौभाग्य की मोदीजी ने मुझ जैसे ( यानि दलित) को मुख्यमंत्री बनाया। इसके बाद मेरे बेटे को भी भारी पैसे वालों के साथ महंगी गाड़ियों में बैठने का मौका मिल रहा है।

मेरे बच्चे को भी लोग पूछने लगे हैं। उसने भी अच्छी गाड़ी को देखा। वह सीनियर स्कूल में पढ़ता है। अपने दोस्तों के साथ था। मेरा बेटा 18 साल का भी नहीं हुआ। परिवहन विभाग की गाड़ी उसे एस्कोर्ट नहीं कर रही थी, वो सुरक्षा में पीछे- पीछे चल रही थी। अब मोदीजी ने बैरवा को उप मुख्यमंत्री इसलिए तो बनाया नहीं होगा कि उनका नाबालिग बेटा खुलेआम वाहन चलाएं, रील बनाए और परिवहन विभाग उसकी सुरक्षा में एस्कॉर्ट लगाए और गलती मानने के बजाय उप मुख्यमंत्री बेटे का बचाव करे। बीजेपी और मोदी ने तो उन्हें इसलिए यह पद दिया होगा, ताकि वह यह बता सके की पार्टी को दलित और पिछड़ों की कितनी चिंता है, ताकि वह उनके वोट हासिल कर सके।

लेकिन बैरवा के बयान ने तो इस धारणा को ही झुठला दिया। इस बयान ने पार्टी को दुविधा में डाला,तो प्रदेश प्रभारी राधामोहन अग्रवाल ने बुलाकर बैरवा को फटकार लगाई, तो शाम को माफी मांग ली। सुबह मुस्कुराते हुए जिस तरह अपने बेटे का बचाव कर रहे थे, शाम को उतरे हुए मुंह से माफी मांग रहे थे। ये कहकर कि मैने बच्चे को समझा दिया है कि भविष्य में ऐसी हरकत ना करें, जिससे राजस्थान में हमारी पार्टी को नुकसान हो। लेकिन साथ ही कहकर मजबूरी भी जता दी की मैं उप मुख्यमंत्री होने के नाते राजस्थान भर में घूमता रहता हूं। इसलिए परिवार और बच्चों को समय नहीं दे पाता हूं। बताइए, कितना बड़ा त्याग है, लोग समझते ही नहीं हैं।

अब आप यह जान लीजिए की जिन भारी पैसे वाले लोगों के साथ बैरवा अपने बेटे का गाड़ी में बैठना बता रहे थे, उसमें उसकी बगल में जयपुर में सांगानेर क्षेत्र में पिछला विधानसभा चुनाव हारने वाले उम्मीदवार कांग्रेस नेता पुष्पेंद्र भारद्वाज का बेटा था। पता है ना भारद्वाज को किसने हराया था? राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से हारे थे भारद्वाज। अब देखिए कितना शानदार समन्वय है। मुख्यमंत्री से हारे कांग्रेस उम्मीदवार का बेटा उप मुख्यमंत्री के बेटे के साथ कानून की धज्जियां उड़ाते हुए जीप में है। रील बनाई जा रही हैं और उन्हें सरकारी गाड़ी एस्कॉर्ट कर रही है।

यह कांग्रेस-भाजपा के उन नादान कार्यकतार्ओं और जिला-गांव स्तर के नेताओं के लिए सबक है,जो चुनावों के दौरान नारेबाजी, पोस्टरबाजी या सोशल मीडिया पर टिप्पणियां करके आपस में व्यक्तिगत रंजिश पाल लेते हैं और जीवन भर के लिए संबंध खराब कर लेते हैं। लेकिन उनकी ही पार्टी के दिग्गज नेताओं के संबंध आपसी ही नहीं, पारिवारिक होते है़, भले ही चुनाव में एक दूसरे को कितना भी कोस ले।

यूं कोई बैरवा बहुत गरीब नहीं है कि उनके बेटे ने बड़ी गाड़ी पहली बार देखी हो। वह 2013 में विधायक रह चुके हैं। लेकिन 2018 में पराजित हो गए थे। 2023 में फिर विधायक बन डिप्टी सीएम बने हैं। तब नामांकन के साथ दिए गए शपथ पत्र में उन्होंने अपनी संपत्ति करीब 5 करोड़ रुपए की बताई है। उनके पास पेट्रोल पंप है। खेती की कई बीघा जमीन है और पत्नी के नाम गाड़ी भी है। यह तो उनकी घोषित संपत्ति है। राजनेताओं के पास इसके अलावा अघोषित कितना कुछ होता है, ये सब लोग जानते हैं।

लेकिन फिर भी बैरवा अपने बेटे की गलती को छिपाने के लिए इस मामले को दलित और अगड़े तथा अमीर-गरीब के बीच भेद बताने में लगे थे। हैं ना चतुराई। लेकिन ये कहीं उन्हें भारी ना पड़ जाए। भाजपा आलाकमान ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और यह चर्चा चल पड़ी है कि मंत्रिमंडल विस्तार में कहीं बैरवा को घर ना बैठा दिया जाए। देखना यह भी होगा कि क्या सरकार इस बात की जांच कराएगी की आखिर बैरवा के बेटे को सुरक्षा क्यों दी जा रही थी और नाबालिग होने के बावजूद वाहन चलाने पर क्या उसके खिलाफ मैटर व्हीकल एक्ट में कोई कार्रवाई होगी?

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