रिसोर्ट में शादी नया फैशन पर कई तुक नहीं

0
(0)

कुछ समय पहले तक शहर के अंदर मैरिज हॉल मैं शादियाँ होने की परंपरा चली परंतु वह दौर भी अब समाप्ति की ओर है।

अब शहर से दूर महंगे रिसोर्ट में शादियाँ होने लगी हैं। शादी के 2 दिन पूर्व से ही ये रिसोर्ट बुक करा लिया जाते हैं और शादी वाला परिवार वहां शिफ्ट हो जाता है। आगंतुक और मेहमान सीधे वहीं आते हैं और वहीं से विदा हो जाते हैं।

जिसके पास चार पहिया वाहन है वही जा पाएगा। दोपहिया वाहन वाले नहीं जा पाएंगे। बुलाने वाला भी यही स्टेटस चाहता है, और वह निमंत्रण भी उसी श्रेणी के अनुसार देता है।

दो तीन तरह की श्रेणियां आजकल रखी जाने लगी है।
किसको सिर्फ लेडीज संगीत में बुलाना है।
किसको सिर्फ रिसेप्शन में बुलाना है।
किसको कॉकटेल पार्टी में बुलाना है।
और किस वीआईपी परिवार को इन सभी कार्यक्रमों में बुलाना है।
इस निमंत्रण में अपनापन की भावना खत्म हो चुकी है। सिर्फ मतलब के व्यक्तियों को या परिवारों को आमंत्रित किया जाता है।

महिला संगीत में पूरे परिवार को नाच गाना सिखाने के लिए महंगे कोरियोग्राफर 10-15 दिन ट्रेनिंग देते हैं।

मेहंदी लगाने के लिए आर्टिस्ट बुलाए जाने लगे है। मेहंदी में सभी को हरी ड्रेस पहनना अनिवार्य है जो नहीं पहनता है उसे हीन भावना से देखा जाता है लोअर केटेगरी का मानते हैं

फिर हल्दी की रस्म आती है, इसमें भी सभी को पीला कुर्ता पाजामा पहनना अति आवश्यक है इसमें भी वही समस्या है जो नहीं पहनता है उसकी इज्जत कम होती है।

इसके बाद वर निकासी होती है, इसमें अक्सर देखा जाता है जो पंडित को दक्षिणा देने में 1 घंटे डिस्कशन करते है। वह बारात प्रोसेशन में 5 से 10 हजार नाच गाने पर उड़ा देते हैं। इसके बाद रिसेप्शन स्टार्ट होता है। स्टेज पर वरमाला होती है पहले लड़की और लड़के वाले मिलकर हंसी मजाक करके वरमाला करवाते थे। आजकल स्टेज पर धुंए की धूनी छोड़ देते है।

दूल्हा-दुल्हन को अकेले छोड़ दिया जाता है, बाकी सब को दूर भगा दिया जाता है और फिल्मी स्टाइल में स्लो मोशन में वह एक दूसरे को वरमाला पहनाते है, साथ ही नकली आतिशबाजी भी होती है।

स्टेज के पास एक स्क्रीन लगा रहता है, उसमें प्रीवेडिंग सूट की वीडियो चलती रहती है। उसमें यह बताया जाता है की शादी से पहले ही लड़की लड़के से मिल चुकी है और कितने अंग प्रदर्शन वाले कपड़े पहन कर कहीं चट्टान पर, कहीं बगीचे में, कहीं कुएं पर, कहीं बावड़ी में, कहीं श्मशान में कहीं नकली फूलों के बीच अपने परिवार की इज्जत को नीलाम कर के आ गई है।

प्रत्येक परिवार अलग-अलग कमरे में ठहरेगा

जिसके कारण दूरदराज से आए बरसों बाद रिश्तेदारों से मिलने की उत्सुकता कहीं खत्म सी हो गई है।
क्योंकि सब अमीर हो गए हैं पैसे वाले हो गए है। मेल मिलाप और आपसी स्नेह खत्म हो चुका है।
रस्म अदायगी पर मोबाइलों से बुलाये जाने पर कमरों से बाहर निकलते है। सब अपने को एक दूसरे से रईस समझते है।

और यही अमीरीयत का दंभ उनके व्यवहार से भी झलकता है।
कहने को तो रिश्तेदार की शादी में आए हुए होते हैं
परंतु अहंकार उनको यहां भी नहीं छोड़ता।
वे अपना अधिकांश समय करीबियों से मिलने के बजाय अपने अपने कमरो में ही गुजार देते है।

हमारी संस्कृति को दूषित करने का बीड़ा ऐसे ही अति संपन्न वर्ग ने अपने कंधों पर उठाए रखा है।

मेरा अपने मध्यमवर्गीय समाज बंधुओं से अनुरोध है
आपका पैसा है, आपने कमाया है। आपके घर खुशी का अवसर है खुशियां मनाएं, पर किसी दूसरे की देखा देखी नहीं।

कर्ज लेकर अपने और परिवार के मान सम्मान को खत्म मत करिएगा।

जितनी आप में क्षमता है उसी के अनुसार खर्चा करिएगा
4 – 5 घंटे के रिसेप्शन में लोगों की जीवन भर की पूंजी लग जाती है।

दिखावे की इस सामाजिक बीमारी को अभिजात्य वर्ग तक ही सीमित रहने दीजिए।

अपना दांपत्य जीवन सर उठा के, स्वाभिमान के साथ शुरू करिए और खुद को अपने परिवार और अपने समाज के लिए सार्थक बनाइए !

सुदेश चंद्र शर्मा

क्या आप इस पोस्ट को रेटिंग दे सकते हैं?

इसे रेट करने के लिए किसी स्टार पर क्लिक करें!

औसत श्रेणी 0 / 5. वोटों की संख्या: 0

अब तक कोई वोट नहीं! इस पोस्ट को रेट करने वाले पहले व्यक्ति बनें।

Leave a Comment

सिंक्रोनाइज़ ...