कश्मीर पर शहबाज शरीफ के बयान पर ऐतराज क्यों? ऐसे बयान तो कांग्रेस, एनसी, पीडीपी आदि के नेता रोजाना दे रहे हैं

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टेरर फंडिंग के आरोपी इंजीनियर राशिद सांसद बनने के बाद विधानसभा चुनाव में भी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं

संयुक्त राष्ट्र संघ की सभा में 27 सितंबर को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने एक बार फिर कश्मीर का राग अलापा है। शहबाज शरीफ के बयान पर भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कड़ा ऐतराज जताया है। जयशंकर का कहना रहा कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, इसलिए पाकिस्तान को दखल देने का कोई हक नहीं है, सवाल उठता है कि आखिर भारत को शहबाज शरीफ के बयान पर ऐतराज क्यों है? ऐसे बयान तो हमारे कश्मीर में कांग्रेस, नेशनल कान्फ्रेंस, पीडीपी आदि के नेता रोजाना दे रहे है। जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनाव के दौरान इन नेताओं द्वारा लगातार कहा जा रहा है कि कश्मीर की समस्या के समाधान के लिए पाकिस्तान से वार्ता करना जरूरी है।

इतना ही नहीं इन पार्टियों के नेता चुनाव में अनुच्छेद 370 की बहाली का वादा भी कर रहे हैं। जब हमारे लोकतांत्रिक संविधान में हमारे ही नेताओं की देश विरोधी बयानबाजी पर नियंत्रण नहीं लग रहा है, जब शहबाज शरीफ पर बयान के एतराज के क्या मायने हैं। कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के नेता जो बात कह रहे है, वही बात शहबाज शरीफ ने कही है।

यदि हमारे नेता देश भक्ति दिखाते तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का विरोध करने की हिम्मत नहीं होती। इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि जिन इंजीनियर अब्दुल राशि पर पाकिस्तान से पैसा लेकर कश्मीर में आतंकवाद फैलाने का आरोप लगा, वही राशिद अब सांसद बन चुके है और अपनी पार्टी अवामी इत्तेहाद के माध्यम से विधानसभा चुनाव में सक्रिय भूमिका निभा रहे है। लोकतांत्रिक संविधान के तहत ही सुप्रीम कोर्ट ने भी इंजीनियर राशिद को चुनाव प्रचार करने के लिए जेल से बाहर निकाल दिया है।

एस पी मित्तल

वर्ष 2016 में मेरी उम्र 54 वर्ष है और मैं करीब 40 वर्षों से पत्रकारिता कर रहा हूँ | पत्रकारिता की घुट्टी जन्मजात है। मेरे पिता स्व.कृष्ण गोपाल जी गुप्ता जो भभक पाक्षिक पत्र निकालते रहे। उससे मैंने पत्रकारिता का सबक सीखा। मेरी पत्रकारिता की यात्रा में दैनिक राष्ट्रदूत, दैनिक भास्कर, दैनिक नवज्योति, दैनिक पंजाब केसरी आदि अखबारों का सहयोग तो रहा ही है, लेकिन वर्ष 2000 में जब मैंने सम्पूर्ण उत्तर भारत में पहली बार केबल नेटवर्क पर न्यूज चैनल शुरू किया तो मुझे सीखने का जोरदार अवसर मिला। जिलेभर के केबल ऑपरेटरों की मदद से जब एक घंटे की न्यूज का प्रसारण हुआ तो अजमेर सहित राजस्थान भर में तहलका मच गया। हालांकि साधनों के अभाव और बड़े मीडिया घरानों के केबल में कूद पडऩे से मुझे अपना अजमेर अब तक नामक चैनल बंद करना पड़ा। 17 नवम्बर 2005 को जब मैंने देश के राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से अजमेर के सर्किट हाऊस में व्यक्तिगत मुलाकात की तो मुझे एक सुखद अनुभूति हुई। यूं तो मेरे लिखे की गूंज राजस्थान विधानसभा से लेकर लोकसभा तक में हुई है, लेकिन मेरी पत्रकारिता की सबसे बड़ी सफलता यही है कि मैं आज भी नियमित लिख रहा हूँ | यदि किसी पाठक के पास कोई सुझाव हो तो अवश्य दें | आपका एस.पी.मित्तल

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