12 ज्योतिलिंर्गों में से एक जागेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के समय इंद्र देवता भी मेहरबान रहे
सातवीं सदी के इस धाम में 125 मंदिरों का समूह है
16 सितंबर को शुरू हुई आदि कैलाश यात्रा का हमारा पहला पड़ाव 17 सितंबर को जागेश्वर धाम में ज्योतिर्लिंग के दर्शन करना रहा। अजमेर से रानीखेत एक्सप्रेस ट्रेन से उत्तराखंड के काठगोदाम पहुंचने के बाद होटल विंडसर रायल पैलेस में हमारे समूह का स्वागत सत्कार किया गया। इसके बाद हम 125 किलोमीटर की दूरी तरह कर जागेश्वर धाम पहुंचे। जब हम जागेश्वर धाम पहुंचे तो बरसात हो रही थी। बरसात में ही हमने ज्योतिर्लिंग के दर्शन किए।
125 मंदिरों के इस समूह के किनारे ही नदी जैसे नाले में पानी बह रहा था। कहा जा सकता है कि कैलाश दर्शन से पहले हमारे समूह पर इंद्र देवता भी मेहरबान थे। इतिहासकारों के अनुसार भगवान शिव के 12 ज्योतिलिंर्गों में से एक जागेश्वर ज्योतिर्लिंग भी है। यह ज्योर्तिलिंग कैलाश यात्रा के मार्ग पर ही स्थित है। इस स्थान पर जगत गुरु आदि शंकराचार्य ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इस ज्योर्तिलिंग का पुनरुद्धार कत्यूरी शासकों ने सातवीं दी में करवाया।
यह मंदिर परिसर भगवान शिव के साथ साथ योगेश्वर (जागेश्वर) मृत्युंजय, केदारेश्वर, नवदुर्गा, सूर्य नवग्रह, लकुलीश, बालेश्वर, पुष्टि देवी, कालिका देवी आदि को समर्पित है। ज्योर्तिलिंग वाले इस मंदिर का प्रबंधन अल्मोड़ा प्रशासन द्वारा किया जाता है। यहां जितने भी मंदिर बने हैं , उनके बाहर पुजारी परिवारों के सदस्य बैठते हैं। भारत की सनातन संस्कृति में 12 ज्योतिर्लिंग के महत्व को देखते हुए ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने भी यहां पुरातात्विक संग्रहालय की स्थापना 1995 में की। यहां जागेश्वर, डंडेश्वर, कुबेर की प्रतिमाओं को संरक्षित रखा गया है।
वर्ष 2022 में इस संग्रहालय का विस्तार करते हुए अन्य दीघार्ओं का निर्माण किया गया। इन दीघार्टों में पाषाण निर्मित उमा माहेश्वर, विषापहार, शिव, व्याख्यान मुद्रा में शिव वीणाधारी, एक मुखी व चतुमुर्खी शिवलिंग, दुर्गा, महिषासुर मर्दिनी, चामुंडा, कौमारी, गंगा, लक्ष्मीनारायण, सूर्य हरिहर, कार्तिक नवग्रह, ब्रह्मा विष्णु महेश आदि की प्रतिमताएं रखी गई है। इसके साथ ही संग्रहालय के केंद्रीय कक्ष में अष्टधातु निर्मित दुर्लभ पोण राजा की प्रतिमा भी प्रदर्शित की गई है। इस संग्रहालय में प्रदर्शित प्रतिमाएं आठवी सदी से लेकर चौदहवीं सदी त तक की है। जागेश्वर धाम देश की राजधानी दिल्ली से 405 किलोमीटर, अल्मोड़ा से 25 किलोमीटर तथा नैनीताल से 101 किमी है।
एस पी मित्तल
वर्ष 2016 में मेरी उम्र 54 वर्ष है और मैं करीब 40 वर्षों से पत्रकारिता कर रहा हूँ | पत्रकारिता की घुट्टी जन्मजात है। मेरे पिता स्व.कृष्ण गोपाल जी गुप्ता जो भभक पाक्षिक पत्र निकालते रहे। उससे मैंने पत्रकारिता का सबक सीखा। मेरी पत्रकारिता की यात्रा में दैनिक राष्ट्रदूत, दैनिक भास्कर, दैनिक नवज्योति, दैनिक पंजाब केसरी आदि अखबारों का सहयोग तो रहा ही है, लेकिन वर्ष 2000 में जब मैंने सम्पूर्ण उत्तर भारत में पहली बार केबल नेटवर्क पर न्यूज चैनल शुरू किया तो मुझे सीखने का जोरदार अवसर मिला। जिलेभर के केबल ऑपरेटरों की मदद से जब एक घंटे की न्यूज का प्रसारण हुआ तो अजमेर सहित राजस्थान भर में तहलका मच गया। हालांकि साधनों के अभाव और बड़े मीडिया घरानों के केबल में कूद पडऩे से मुझे अपना अजमेर अब तक नामक चैनल बंद करना पड़ा। 17 नवम्बर 2005 को जब मैंने देश के राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से अजमेर के सर्किट हाऊस में व्यक्तिगत मुलाकात की तो मुझे एक सुखद अनुभूति हुई। यूं तो मेरे लिखे की गूंज राजस्थान विधानसभा से लेकर लोकसभा तक में हुई है, लेकिन मेरी पत्रकारिता की सबसे बड़ी सफलता यही है कि मैं आज भी नियमित लिख रहा हूँ | यदि किसी पाठक के पास कोई सुझाव हो तो अवश्य दें | आपका एस.पी.मित्तल