बार-बार पार्टी को असहज कर रही है विवादों की क्वीन
कभी फिल्मों की क्वीन कही गई मंडी से भाजपा सांसद कंगना आजकल विवादों की क्वीन बनती जा रही है। उनके बयानों के कंगन बार-बार आवाज करके भाजपा को असहज कर रहे हैं। लेकिन कंगना है कि ना तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सम्मान, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की नसीहत और पार्टी लाइन की पालना कर रही है। बस,जब मर्जी आए,बयान खनका देती है और भाजपा को हर बार उनसे किनारा करना पड़ता है।
कृषि कानूनों और उसके खिलाफ आंदोलन करने वाले किसानों को लेकर कंगना की जुबान हमेशा आग उगलती रही है। दो दिन पहले उन्होंने यह कहकर फिर भाजपा को मुसीबत में डाल दिया कि केंद्र सरकार जो तीन कृषि कानून लाई थी,उन्हें वापस लाया जाना चाहिए। इसकी मांग खुद किसानों को करनी चाहिए। इसका विरोध केवल कुछ राज्यों में ही किसानों ने किया था।
जाहिर है उस हरियाणा में,जो किसान आंदोलन के केंद्र में था और जहां बड़ी संख्या में किसान और जाट मतदाता हैं, विधानसभा चुनाव के चलते होने वाले नुकसान की आशंका को देखते हुए भाजपा को तुरंत कंगना के बयान से खुद को अलग करना पड़ा और उसने इसे कंगना की निजी राय बताते हुए इसे पल्ला झाड़ लिया। इसके बाद खुद कंगना ने भी इसके लिए माफी मांग ली।
जाट पहले ही भाजपा से नाराज चल रहे हैं और राजस्थान में विधानसभा चुनाव में उसने इसका नतीजा भी भुगता है। 10 साल से हरियाणा की सत्ता पर काबिज भाजपा के लिए लगातार तीसरी बार सत्ता में लौटना वैसे ही मुश्किल होता जा रहा है। ऐसे में कंगना के बयान ने आग में घी डालने का काम किया है और चुनाव से पहले कांग्रेस को एक बड़ा मुद्दा थमा दिया है।
इसके पहले कंगना ने एक इंटरव्यू में भारत के किसान आंदोलन की तुलना बांग्लादेश में हुए आंदोलन और सत्ता परिवर्तन से करते हुए कहा था कि यहां भी किसानों की ऐसी ही लंबी प्लानिंग थी और जैसा बांग्लादेश में हुआ,वैसा ही यहां करने का षड्यंत्र था। इसमें किसानों का साथ कई विदेशी ताकतें दे रही थी। जो बांग्लादेश में हुआ वह भारत होने में देर नहीं लगती अगर हमारा शीर्ष नेतृत्व मजबूत नहीं होता। इस बयान पर भी बीजेपी को तुरंत असहमति जतानी पड़ी और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने उन्हें घर बुलाकर इस बात के लिए फटकार लगाई और भविष्य में नीतिगत विषयों पर कुछ ना बोलने की हिदायत दी।
लेकिन कंगना तो कंगना है, फिल्मों से राजनीति में आने के बाद उन्हें खनकने का शौक कुछ ज्यादा ही हो गया है। इसलिए इस बार प्रधानमंत्री के सम्मान को भी नहीं बख्शा और उन कृषि कानूनों को वापस लाने की पैरवी की, जिनको खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वापस लेने की घोषणा की थी।
किसान आंदोलन में धरने पर बैठी महिलाओं पर लेकर दिए बयान के कारण कंगना को चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर सीआईएसएफ की एक महिला कांस्टेबल कुलविंदर कौर ने थप्पड़ भी रसीद की थी। वह कंगना के उस बयान से आहत थी, जिसमें उसने कहा था कि वहां सौ-सौ रूपए देकर महिलाओं को बैठाया गया। आंदोलन में कुलविंदर की मां ने भी हिस्सा लिया था,इसलिए वह इस बयान पर नाराज थी। विवादों के बयान खनकाने में कंगना का कोई मुकाबला नहीं है। वे राहुल गांधी के लिए कह चुकी है कि वह जिस तरह बदहवास बातें करते हैं, इसे देखते हैं उनका टेस्ट किया जाना चाहिए कि कहीं वह ड्रग्स तो नहीं लेते हैं। महाराष्ट्र की राजनीति को लेकर वह शंकराचार्य पर भी कटाक्ष कर चुकी हैं। कंगना वही है, जिन्होंने मोदी भक्ति में 2021 में एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में कहा था कि भारत को असली आजादी 2014 में मिली,1947 में तो भीख में आजादी मिली थी।
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ भी उन्होंने तब तू-तड़ाक वाली भाषा में बयान दिया था, जब उनके घर के अवैध निर्माण को तोड़ा गया था। तब कंगना ने एक वीडियो पोस्ट करके कहा था, उद्धव ठाकरे तुझे क्या लगता है तूने मेरा घर तोड़कर मुझे बहुत बड़ा बदला लिया है। आज मेरा घर टूटा है कल तेरा घमंड टूटेगा। यह वक्त का पहिया है हमेशा एक जैसा नहीं रहता।
फिल्मी दुनिया में भी कंगना रनौत अपने बयानों से विवाद खड़ा करती रही है। गीतकार जावेद अख्तर व अभिनेत्री शबाना आजमी को वह टुकड़े-टुकड़े गैंग का सदस्य बता चुकी है। जबकि निर्माता निर्देशक करण जौहर को वह नेपोटिज्म का झंडाबरदार। इसके अलावा कई फिल्म अभिनेत्रियों पर भी उन्होंने सीधे कटाक्ष किए।
दरअसल, विभिन्न क्षेत्रों की सेलिब्रिटीज को पार्टियां विधानसभा और संसद के चुनाव तब लड़ा देती है और वह अपनी लोकप्रियता के कारण जीत भी जाते हैं। लेकिन उसमें से अधिकांश इन विधायी सदनों और जनता में अपना प्रभाव छोड़ने में नाकाम रहते हैं। हां, दक्षिण भारत के फिल्मी सितारे जरूर इसका अपवाद है। कंगना भी फिल्मों और राजनीति के अंतर को शायद नहीं समझ पा रही है। फिल्मी दुनिया में विवादास्पद बोलने से पब्लिसिटी मिलती हो। लेकिन राजनीति में विवादास्पद बोलने से विपक्ष को अवसर मिलता है और खुद की पार्टी को परेशानी।
फिल्मी दुनिया में इसे बेबाकी कहते होंगे, राजनीति में बेवकूफी कहते हैं। फिर भी कंगना की लगातार बयानबाजी को देखते हुए कुछ राजनीतिक प्रेक्षकों का कयास यह भी है कि वह भाजपा में स्मृति ईरानी की जगह लेने को बेचैन है। सवाल यह भी है कि जब भी कोई नेता विवादास्पद बयान देता है और वह पार्टी को सूट नहीं करता है, तो वह उससे पल्ला झाड़कर उसे उसका निजी बयान बता देती है। राजनीति में ये चलन भी बंद होना चाहिए। सांसद, विद्यालय, मंत्री जब पार्टी के हैं,उनकी पहचान वही है,तो बयान व्यक्तिगत कैसे हुए।