राजस्थान का शिक्षा विभाग धन्य हो गया है। अब स्कूली बच्चों की निशुल्क कटिंग करवाने के लिए शिक्षकों को तैनात किए जाने की मंजूरी मिल गई है। यह कल्याणकारी आदेश कोटा के शिक्षा कार्यालय से जारी हुए हैं।
हुआ दरअसल यूँ कि किसी महान सैलून वाले (नाई) ने स्कूल के बच्चों की निशुल्क कटिंग करने की प्रार्थना कर डाली। शिक्षा विभाग तो जैसे इस नेक काम की प्रतीक्षा ही कर रहा था। कोटा के सयुंक्त निदेशक ने तुरंत सैलून मालिक को न केवल मंजूरी प्रदान कर दी बल्कि स्कूल के प्रधानाचार्य को इसके लिए शिक्षकों को तैनात करने के आदेश भी दे दिए।
कोटा की इस परंपरा का पूरा राज्य यदि पालन करे तो यह महान कार्य बेहद लोकप्रिय हो सकता है। जनता की हजामत के लिए तो सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में वैसे ही धड़ल्ले से काम हो रहा है अब स्कूलों में भी होने लगेगा।
राज्य के शिक्षक नेताओं को यह आदेश पच नहीं रहा। शिक्षक संघ राधाकृष्णन के नेता जी विजय सोनी ने शिक्षकों की ड्यूटी बाल कटवाने में लगाए जाने को तुगलकी आदेश बताया है। बच्चों को लाइन बनाकर सैलून ले जाने और फिर एक एक करके उनके बाल कटवाने पर उन्होंने घोर विरोध किया है।
शिक्षक नेता भले ही इसका विरोध करें मगर मेरी नजर में यह नेक काम है जो राजस्थान के हर स्कूल में होना चाहिए। सरकारी स्कूल में अमूमन गरीब बच्चे पढ़ते हैं। कटिंग करवाने में पैसा खर्च करना उनके अभिभावकों के लिए परेशानी का काम होता है। एक तो गरीबों के यहां बच्चे भी बहुतायत में होते हैं। सबकी कटिंग करवाना उनके लिए दुष्कर कार्य होता है। यही वजह है कि उनके स्कूली बच्चों में बाल बढ़ाने की परंपरा बन जाती है।
कोटा के शिक्षा विभाग ने निशुल्क कटिंग के लिए जो अनुमति प्रदान की है । यह इस दिशा में बढाया गया पहला कदम है। शिक्षक शिक्षिकाओं को इस नेक काम में लगाकर विभाग ने उनको गरीबों की सेवा करने का जो अवसर प्रदान किया है वह सराहनीय है।
मेरा तो यह मानना है कि स्कूल से बच्चों को सैलून तक ले जाने में शिक्षकों को परेशानी हो सकती है अत: राज्य के हर स्कूल में एक नाई को सैलून चलाने के लिए निशुल्क कक्ष प्रदान किया जाना चाहिए। नाई क्यों कि निशुल्क कटिंग करेंगे इसलिए यह काम जिÞयादा समय चलने वाला नहीं । इसके लिए विभाग को एक आदेश और प्रसारित करना चाहिए। शिक्षकों की तनख्वाह से मासिक पैसा काट कर सैलून संचालक को मासिक रूप से दिया जाना चाहिए।
इस नेक काम के लिए यह भी किया जा सकता है कि सरकार स्कूलों के लिये विशेष बजट सैलूनों के लिए स्वीकृत करे। इसके लिए यह भी किया जा सकता है कि हर स्कूल के एक शिक्षक और एक शिक्षिका को बच्चों के बाल कतरने की ट्रेनिंग दिलवा दी जाए। जैसे हर स्कूल में पी टी आई! लाइब्रेरियन! लैब असिस्टेंट! कम्प्यूटर आपरेटर! होते हैं वैसे ही सैलून टीचर भी नियुक्त हो जाएं। इससे बच्चों को स्कूल में एक ही छत के नीचे यह सुविधा भी फोकट में उपलब्ध हो जाएगी। बच्चों को बाहर ले जाने का रिस्क भी नहीं रहेगा।
यह अच्छी शुरूआत है और भी इसी तरह की बालुपयोगी सुविधाएं शालाओं में विकसित करनी चाहियें। जैसे बच्चों के निशुल्क कपड़े सिलवाने के लिये टेलर मास्टर! कपड़े धोने के लिए लाँड्री टीचर! भोजन के लिए कुक टीचर! और भी सुविधाओं के लिए सोचा जा सकता है।
सरकार अरबों रुपए राज्य से बतौर टैक्स वसूलती है जिसका बहुत बड़ा भाग अधिकारियों की जेब में चला जाता है। यदि इस पैसे का उपयोग गरीब बच्चों की सुविधाओं के लिए किया जाए तो देश का कितना कल्याण हो सकता है। आज के बच्चे कल के नागरिक हैं। इनका आज सुरक्षित रहेगा तो कल अपने आप सुरक्षित हो जाएगा।
आज हमारे राज्य में जितने मंत्री और विधायक हैं लगभग सभी सरकारी स्कूलों से निकले हुए हैं। जरा सोचिए कि इनके जमाने में यदि निशुल्क कटिंग की सुविधा मिल गयी होती तो ये कितना अहसानमंद होते।
मुझे तो कभी कभी लगता है कि भेड़ों के शरीर से जिस तरह बाल उतारे जाते हैं उसी तरह से आम जनता के बाल उतारने की भी निशुल्क सुविधा दी जानी चाहिए। माना कि जनता की हजामत करने के लिए सरकार के पास बहुत से साधन हैं मगर प्रत्यक्ष साधन कोई नहीं।
अच्छा हो यदि गांव गांव! शहर शहर! अधिकारियों की तर्ज़ पर बाल कतरन अधिकारी भी नियुक्त कर दिए जाएं। मुझे यकीन है कि आपको मेरे सुझाव पसंद आए होंगे। बाल उखाड़ने के लिए नहीं काटने के लिए होते हैं यह बात आप भी जानते हैं। कृपया सरकार तक यह बात पहुंचाए। धन्यवाद।