सुप्रीम कोर्ट ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी के अपराध पर लगाम लगाने के लिए केंद्र सरकार को समग्र रूप से यौन शिक्षा कार्यक्रम लागू करने का सुझाव दिया है।
मैं व्यक्तिगत रूप से कोर्ट के इस फैसले का सम्मान करता हूं। स्वागत करता हूँ। चाहता हूँ कि कानून की यह मंशा किसी भी हाल में पूरे देश में लागू हो। मेरा मानना है कि इस कार्यक्रम में चाइल्ड पोर्नोग्राफी के कानूनी और नैतिक परिणाम को भी शामिल किया जाना चाहिए। इससे अपराधो को रोकने में मदद मिल सकती है। इस कार्यक्रम में यौन शिक्षा को लेकर फैले भ्रमों को दूर कर युवाओं को सहमति और उत्पीड़न की स्पष्टता समझाइए जानी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने यह बातें चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखने और उसकी सामग्री रखने को पोक्सो और आईटी कानून में अपराध बताने वाले फैसले में कहीं हैं। यह बात सोलह आने सही है कि यौन शिक्षा के बारे में किशोरों को सही जानकारी नहीं दी जाती। इशारों से शब्द लपेट कर अधकचरी जानकारियां दी जाती हैं। भारत में यौन शिक्षा पर बातचीत में हिचक होती है और ऐसी शिक्षा को लेकर फैले भ्रम की स्थिति सबसे बड़ी बाधा है।
भारत में यौन शिक्षा को लेकर व्यापक गलत फहमियां हैं। यहां तक की बहुत से माता-पिता और शिक्षक भी इसको लेकर भ्रामक नजरिया रखते हैं। सेक्स के बारे में बात करना अनुचित व अनैतिक समझते हैं।
इस सामाजिक कलंक ने यौन स्वास्थ्य पर खुलकर बात करने के प्रति हिचकिचाहट पैदा की है जिसके कारण किशोरों में जानकारी का महत्वपूर्ण अंतर आ जाता है। एक भ्रम यह भी है कि सेक्स एजुकेशन से युवाओं का व्यवहार गैर जिम्मेदाराना और स्वेच्छाचारी हो जाएगा। आलोचना करने वाले कहते हैं कि यौन स्वास्थ्य और कन्ट्रासेप्टिव के बारे में जानकारी देने से किशोरों में यौन गतिविधियां बढ़ जाएंगी। यहाँ बता दूँ कि एब्नॉर्मल चाइल्ड साइकोलॉजी में मैंने अपने शोध पत्र में बताया है कि सेक्स एजुकेशन वास्तव में सेक्सुअल एक्टिविटी में देरी लाती है और जो लोग सेक्शुअली एक्टिव हैं उन्हें सुरक्षित बनाती है।
भारत में यह भी सोच है कि सेक्स एजुकेशन पश्चिम की धारणा है और यह भारतीय पारंपरिक मूल्यों से मेल नहीं खाती। इस सोच के चलते कई राज्यों में स्कूल में सेक्स एजुकेशन प्रतिबंधित है। इस तरह की विरोध सामग्री यौन स्वास्थ्य कार्यक्रम लागू करने में बाधक है। इसके कारण बहुत से किशोर किशोरियों को सही जानकारी नहीं मिल पाती। इसके चलते किशोर और युवा इंटरनेट की ओर आकर्षित होते हैं। जहां उन्हें बिना निगरानी और बिना फिल्टर हुई सूचना मिलती हैं।
यह भी एक गलत धारणा है की सेक्स एजुकेशन सिर्फ संतान उत्पत्ति के बायोलॉजिकल पहलू तक ही सीमित है। प्रभावी सेक्स एजुकेशन में व्यापक विषय शामिल होते हैं, जिसमें रिलेशनशिप, सहमति, लिंग आधारित समानता और विविधता का सम्मान शामिल होता है।
लिंग आधारित सम्मान को बढ़ावा देने और यौन हिंसा को कम करने के लिए इन विषयों पर ध्यान देना जरूरी है।
यहां मेरा मानना है कि बाल यौन उत्पीड़न सबसे जघन्य अपराधों में से एक है और चाइल्ड पोर्नोग्राफी का अपराध भी उतना ही जघन्य है। यौन उत्पीड़न और चाइल्ड पोर्नोग्राफी के पीड़ित बच्चों पर इसका प्रभाव उम्र भर पीछा करता है। इसका लगातार असर बना रहता है।
बाल एवं उत्पीड़न की सामग्री गंभीर रूप से बच्चे की गरिमा को कम करती है। यौन शक्ति यौन संतुष्टि के लिए बच्चों का इस्तेमाल एक वस्तु की तरह होता है जिससे उनकी मानवता का आनंद और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है।
बाल उत्पीड़न करने वालों को कड़ा दंड देने के साथ ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए शिक्षा और जागरूकता के उपायों पर जोर दिया जाना चाहिए। कानून अवश्य ही मजबूत होना चाहिए और उसे कड़ाई से लागू किया जाना चाहिए ताकि अपराधियों की सजा सुनिश्चित हो । बच्चे नुकसान से संरक्षित हों। अदालतों को ऐसे मामलों में जरा भी नरमी नहीं बरतनी चाहिए।
ऐसे मामलों में मैंने देखा है कि यौन उत्पीड़न के शिकार बच्चों पर घटना का कितना दूरगामी असर होता है। उसकी मानसिक! भावनात्मक! और सामाजिक स्थिति बिगड़ जाती है। कई बार उत्पीड़न की खबरें अखबारों में प्रकाशित हो जाती हैं और उसे पढ़कर बच्चों के सामाजिक सरोकार बुरी तरह प्रताड़ित हो जाते हैं। कई बार बच्चे विद्रोही होकर अपराधी तक बन जाते हैं। कई बार बच्चे अवसाद में आ जाते हैं जिनका उपचार ही सम्भव नहीं होता।
चाइल्ड पोर्नोग्राफी से पीड़ित बच्चे पर उसका लगातार असर बना रहता है। जब वह रिकॉर्ड होता है या जब उसका वीडियो या फोटो प्रसारित होता है तो ऐसे पीड़ित बच्चों पर कितना दुष्प्रभाव मनो मस्तिष्क पर पड़ता है हम सोच नहीं सकते। ऐसे समय मे उनको सहानुभूति पूर्ण मदद की जरूरत होती है ताकि वे घटना से उभर सके और सामान्य जीवन में लौट सकें।
हो सकता है कुछ धर्मभीरू और सीमित मानसिकता के लोगों को सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला पसंद न आए मगर समाज के बदले हुए परिवेश को देखते हुए यह फैसला लम्बे समय से जरूरी था। हां, पचास साल पहले भारत में जो सामाजिक स्थितियां थीं तब जरूर यह फैसला अमान्य हो सकता था। आज विश्व मे सैक्स जब अपराध से जुड़ चुका है हमारे बच्चों को सच्चाइयों से रूबरू करवाना बड़ा जरूरी हो गया है।