अवसरों से ज्यादा अफसरों का देश है भारत

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इनके पालक, पोषक और संचालक नेता ही होते हैं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल अमेरिका में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए भारत को अवसरों का देश बताया। लेकिन मुझे तो भारत अवसरों से ज्यादा आज भी अफसरों का देश लगता है। हो सकता है पीएम मोदी को यह लगता हो कि 2014 से केंद्र में उनकी सरकार आने के बाद से देश में हर क्षेत्र में अवसर बढ़े हो। लेकिन यह भी हकीकत है कि अवसरों के साथ ही अफसरों के ठसके भी बढ़े हैं। जाहिर तौर पर अफसरों के पालक-पोषक-संचालक नेता ही होते हैं। जिसकी पार्टी की सरकार होती है,अफसर भी उसी के होकर अवसर तलाशते हैं।

कहा तो ये भी जाता है कि मोदी के शासन में दिल्ली से लेकर राज्यों में जहां भी भाजपा की सरकारें हैं,उनकी निगरानी के लिए उनके विश्वस्त और पसंदीदा अधिकारी तैनात हैं। जो राज्यों की राजनीतिक, प्रशासनिक और अन्य गतिविधियों पर नजर रखकर पीएमओ को रिपोर्ट करते हैं। राजस्थान सहित जिन राज्यों में भाजपा ने अपेक्षाकृत जूनियर औ? कम अनुभवी नेताओं को मुख्यमंत्री बनाया गया,उसके बाद से तो ये चर्चा और तेज हो गई कि ये सरकारें पंसदीदा अफसरों की निगरानी में ही काम कर रही है।

अफसर को अवसर कौन देते हैं? विधायक, मंत्री। किसी भी जिले में कलक्टर,एसपी के साथ ही विभिन्न विभागों में भारतीय प्रशासनिक सेवा, राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी,इंजीनियर,डाक्टर,टीचर,थानेदार, सिपाही,पटवारी,बाबू और कभी-कभी तोचपरासी इन्हीं की मर्जी और पंसद से लगाए जाते हैं। विधायकजी या मंत्री की नापसंद का अफसर अगर किसी अवसर पर उनके शहर में लगा भी दिया जाता है,तो वो खुद बिना अवसर गवाएं उसे चलता करा देते हैं।

कांग्रेस राज होता है,तो उसके नेताओं के पंसदीदा अफसरों को मलाईदार पदों पर लगने का अवसर मिलता है,तो भाजपा राज आने पर ठंड़े बस्ते में लगे उसके नेताओं के करीबियों को मौका भुनाने का अवसर मिलता है। इन दोनों से अलग कुछ अफसर ऐसे भी होते हैं,जो अपनी होशियारी से दोनों पार्टियों के नेताओं को पटाकर रखते हैं और सरकार किसी की भी हो,ऐसे अफसरों के सामने अवसरों का कोई संकट नहीं रहता। जब लाने वाले नेता है और हटवाने वाले भी नेता,तो अफसर जनता की परवाह क्यों करें? राजस्थान में भी चाहे सरकार अशोक गहलोत की रही हो या वसुंधरा राजे। या अब भजनलाल शर्मा की, अफसरों के अवसरों और रूतबे कमी कब आई।

आपने किसी अवसर पर देखा क्या कि कोई अफसर जनता के कामों प्रति चितिंत हो? मालिक ( विधायक-मंत्री) के प्रति जरूर चितिंत रहते हैं। उनके सामने वफादारी दिखाने का कोई अवसर नहीं छोड़ते। विभिन्न योजनाओं का लाभ उठाने के जो अवसर सरकारें आम लोगों को देती है। वह उन्हें आसानी से कहां मिलते हैं,अफसर ही तय करते हैं कि इसका अवसर उन्हें कब मिलेगा। तब तक खाते रहिए धक्के। रिटायरमेंट के बाद भी अफसरों के लिए अवसरों की कोई कमी नहीं होती। कितने ही अधिकारी सरकारी नौकरी से रिटायर होने के बाद अब विधायक और मंत्री हैं।

ये अफसरों की वो समझदार कौम होती है, जो नौकरी पर रहते ही भविष्य के अवसर तलाश लेती है और कभी किसी बड़े नेता की जीहुजूरी,तो कभी जातिवाद के आधार पर अपना भविष्य राजनीति में सुरक्षित कर लेती है। अफसरों में एक जमात ऐसी भी है,जो नौकरी में रहते हुए इतना पैसा कमा लेती है कि (तनख्वाह के अलावा) रिटायर होने के तुरंत बाद उन्हें उद्यमी और व्यवसायी बनने का आसानी से अवसर मिल जाता है। अब बताइए, भारत अवसरों की धरती हुई या अफसरों की।

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