राजीव गांधी के फैसले से तिलमिला उठी थी अनुरा दिसानायके की पार्टी

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भारतीय सामानों का किया बहिष्कार, क्या इतिहास के पन्ने पलट पाएंगे नए राष्ट्रपति

वामपंथी नेता अनुरा कुमार दिसानायके श्रीलंका के नए राष्ट्रपति चुने गए हैं। 55 साल के दिसानायके नेशनल पीपुल्स पावर अलायंस के प्रमुख हैं। उनकी पार्टी जनता विमुक्ति पेरामुना पिछले 50 सालों से ज्यादा वक्त से श्रीलंका की राजनीति में सक्रिय है। यह पहला मौका है जब उसे सत्ता मिली (श्रीलंका इलेक्शन रिजल्ड) है। श्रीलंका में राष्ट्रपति बनने के लिए किसी भी उम्मीदवार को कुल वोट का 50% पाना जरूरी है।

पहले राउंड की गिनती में किसी भी उम्मीदवार को 50 फीसदी वोट नहीं मिला। फर्स्ट राउंड में अनुरा कुमार दिसानायके को 42.31% और उनके प्रतिद्वंदी सजीथ प्रेमदासा को 32.76% वोट मिले। इसके बाद दूसरे राउंड की गिनती हुई, जिसमें दिसानायके को जीत मिली। प्रेमदासा दूसरे और निवर्तमान राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे को तीसरा स्थान मिला।

पीएम मोदी का फोन और दिसानायके का जवाब
अनुरा कुमार दिसानायके की जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें बधाई दी। पीएम मोदी ने ट्विटर पर लिखा, श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव में जीत पर अनुरा कुमार दिसानायके को बधाई। भारत की नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी और विजन में श्रीलंका का विशेष स्थान है। पीएम के बधाई संदेश का जवाब देते हुए दिसानायके ने लिखा, आपके बहुमूल्य शब्दों के लिए धन्यवाद प्रधानमंत्री मोदी। मैं हमारे देशों के बीच संबंधों को मजबूत करने की आपकी प्रतिबद्धता से सहमत हूं। हम साथ मिलकर अपने लोगों के लिए सहयोग बढ़ाने की दिशा में काम कर सकते हैं।

श्रीलंका के नए राष्ट्रपति ने भारत के साथ मिलकर आगे बढ़ने की बात कही है लेकिन उनकी पार्टी का इतिहास कुछ और कहता है। दिसानायके की पार्टी जनता विमुक्ति पेरामुना कभी भारत से इतना चिढ़ गई थी कि भारतीय सैनिकों पर हमले और भारतीय सामानों का बहिष्कार तक कर दिया था।

थोड़ा पीछे चलते हैं

साल 1987 में श्रीलंकाई तमिलों ने अलग तमिल ईलम देश की मांग शुरू कर दी। उन्हें लग रहा था कि बहुसंख्यक सिंहली उनकी नौकरियां छीन रहे हैं। इसको लेकर तमिलों और सिंहलियों के बीच झड़पें शुरू हो गईं। तमिलों की अलग देश की मांग की अगुवाई लिट्टे कर रहा था। आरोप लगा कि भारत, खासकर दक्षिण के नेता लिट्टे की चोरी-छिपे मदद कर रहे हैं और उन्हें समर्थन कर रहे हैं। दक्षिण की पार्टियों का केंद्र पर भी दबाव था। उस वक्त केंद्र में राजीव गांधी की सरकार थी। उन्होंने श्रीलंका सरकार से बातचीत की और दोनों देशों के बीच एक शांति समझौता का रास्ता बना।

क्या था इंडिया श्रीलंका शांति समझौता

इंडिया श्रीलंका पीस एकॉर्ड के तहत श्रीलंका की केंद्रीय सरकार को कुछ शक्तियां प्रांतों को ट्रांसफर करनी थीं और तमिल भाषा को आधिकारिक दर्जा देने की बात थी। इसके एवज में तमिल उग्रवादियों, खासकर लिट्टे के लड़ाकों के के समर्पण की बात थी। भारत और और श्रीलंका के बीच जब शांति समझौता हुआ तो इसका भारी विरोध शुरू हो गया। श्रीलंका के लोगों, खासकर सिंहलियों को लग रहा था कि भारत उनके आंतरिक मामले में दखल दे रहा है।

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