ये भी साला कोई ब्लॉग है?

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हम आला दर्ज के राम भक्त हैं। हमारी भक्ति पर भगवान राम तक को गर्व होगा। अजमेर के राम भक्तों का सच में कहीं कोई मुकाबला नहीं। हमने राम और हनुमान मंदिरों की भले ही कभी सुधि न ली हो लेकिन राम के दुश्मन रावण को जरूर दर -ब -दर कर दिया है। आज अजमेर में रावण को जलाने के लिए कोई मुनासिब जगह ही नहीं बची। इससे बेहतर नगर निगम की उपलब्धि क्या हो सकती है।

एक समय था जब रावण का पुतला पटेल मैदान में बड़ी निर्ममता से जलाया जाता था। राम के प्रति हमारा सारा भावनात्मक लगाव। रावण के प्रति हमारी सारी दमित कुंठाएं। बुराई पर अच्छाई की जीत का नारा लगा कर निकल जाती थीं। नेता जी राम के अंदाज में तीर चलाकर रावण के पेट को फोड़ देते थे। पुतले के बदन में ठूंसे हुए पटाखे तेज आवाजों के साथ दर्शकों को प्रफुल्लित कर देते थे। बड़ा मजा लेता था हमारा अजमेर। रावण को राख में मिलाकर।

अजमेर शहर जब से स्मार्ट हुआ तब से रावण की बेकद्री करने के लिए हमारे पास मैदान ही नहीं रहे। पटेल मैदान में अधिकारियों ने सीमेंट बो कर साफ कर दिया कि इतना शानदार मैदान! रावण जैसे लोगों को फूँकने के काम में नहीं आएगा। न काम आएगा आधुनिक राम जैसे नेताओं की आम सभाओं के लिए।

आम जनता रावण को धूमधाम से मरते देखना चाहती थी। रोज हरामी रावणों से मुकाबला कर हारने वाले शहर वासी! साल में एक बार अपनी आंखों के सामने रावण को तड़पते हुए मरते देख लिया करते थे। साल भर का मलाल जाता रहता था।

अब नगर निगम रावण के पुतले को फूँकने के लिए मैदान ढूंढ रहा है। कभी रेलवे के मैदान तो कभी स्कूल कॉलेजों के! राम भक्त मेयर ब्रजलता जी! समझ नहीं पा रहीं कि बाहर के रावण को कहाँ ले जाकर मारा जाए। अंदर के रावण को भले ही मारा जा सके या नहीं मगर बाहर के रावण को मारने की औपचारिकता तो निभानी ही पड़ती है न।

मेरे एक नादान दोस्त ने मुझसे कहा कि इस बार रावण को इतनी आसानी से न मारा जाए। उसे फूंकने से पहले कुछ दिन अजमेर की सड़कों पर नंगे पांव दौड़ाया जाए। जिन सड़कों पर मंत्रियों की आलीशान कारें घूमती हैं उन पर रावण को दौड़ा दौड़ा कर जख़्मी किया जाए। उसे मोटरसाइकिल पर बिना हेलमेट पहनाए दुपहिया वाहन चलाने को विवश किया जाए।

मेरा नादान दोस्त क्या जानता था कि रावण अजमेर वासियों जितना कम अक़्ल नहीं! वह शास्त्रों का ज्ञाता! अत्यंत विद्वान है! यदि उसे सड़क पर दौड़ने की सजा दी गई तो वह जहर खाने को तय्यार हो जाएगा मगर अजमेर की सड़कों पर दौड़ कर नार्किक यातना नहीं भुगतेगा।

मित्र को जब यह बात बताई तो वह बोला फिर रावण को आनासागर में तैरा तैरा कर मारा जाए। जब वह तैरने लगे तो जनता उसके पत्थर मारे। नेता लोग उस पर निशाने बाजी करें।

मैंने उसको कहा बुद्धिमान राजा रावण। अजमेर के नगर निगम की मेयर जैसा नहीं! अधिकारियों जितना अल्पबुद्धि वाला नहीं! वह जानता है कि यदि उसने आनासागर में पैर भी डुबोया तो पाथ वे और सेवन वंडर्स टूट कर पानी में तैरने लगेंगे। स्मार्ट सिटी के अधिकारियों की पोल खुल जाएगी।

दरअस्ल जब स्मार्टसिटी विकसित किया जा रहा था बुद्धिमान रावण! पर काया प्रवेश कर चुका था। जितने भी अधिकारी और महान नायक योजना को कार्यरूप दे रहे थे रावण उनकी काया में बारी बारी से प्रवेश कर रहा था।

यह उस समय की बात है जब मैं अपने ब्लॉग्स में पटेल मैदान के साथ हो रही छेड़छाड़ के विरुद्ध कलम चला रहा था। चीख चीख कर कह रहा था कि पटेल मैदान को बर्बाद करने वाले निक्क्मों। इस शहर के बीच खाली पड़े इस मैदान को माफ कर दो! इसे बर्बाद मत करो! मैं तब नेताओं और जनता से विरोध करने के लिए आगे आने की बात कर रहा था।

हाँ, तभी यह कुटिल रावण अधिकारियों और नेताओं के बदन में प्रवेश कर चुका था। वह उनसे शहर को बर्बाद करने के सारे कुकर्म करवा रहा था। ये एलिवेटेड रोड्स! ये पाथ वे! ये सेवन वंडर! ये आनासागर के आस पास अतिक्रमण! ये आनासागर के हक की जमीन पर बने बड़े बड़े होटल रेस्टोरेंट! मोटी मोटी धनराशि हजम करने के जादू! सब अंदर बैठा रावण ही करवा रहा था।

आनासागर के भराव क्षेत्र को कम करने वाले दस्तावेज पर हस्ताक्षर! तत्कालीन निगम प्रशासन ने नहीं किये थे ! रावण ने ही किए थे! रावण तब भी जानता था कि राम भक्ति में डूबा शहर पानी में कैसे डूबेगा?

तब शहर के लोग मूक दर्शक बने हुए थे! बुद्धिमान दुबके बैठे थे! पर्यावरण विशेषज्ञों की अक़्ल घूंघट ओढ़ कर बैठ गई थी! पार्षद! मेयर! जन प्रतिनिधियों के दिमाग में रावण अट्टाहास लगा रहा था! रावण शहर की बबार्दी की कथा लिख रहा था और कुछ मूर्ख कथा वाचक उसका पठन पाठन कर रहे थे।

रावण ने जो करना था कर दिया! उसकी लंका को फूंके जाने का बदला वह ले चुका है! शहर में 80-90 बन्दर उछल कूद मचा रहे हैं। साधारण सभाएं आहूत की जा रही हैं। एजेंडों को एजेंट निगल रहे हैं।

मित्रों! रावण को जलाने के लिए ब्रजलता भाभी शायद कहीं जगह ढूंढ लें! रावण को बेरहमी से फूँक भी दिया जाए! मगर वो रावण जो हमारे अंदर छिप कर शहर को बर्बाद कर रहा है वह इतनी आसानी से फूंका नहीं जा सकेगा। उसके लिए किसी मयार्दा पुरुषोत्तम राम को पुन: अजमेर में पैदा होना पड़ेगा। फिलहाल हमारे अंदर का रावण सेवन वंडर के पास आठवां वंडर बन कर खड़ा हुआ है।

सुरेंद्र चतुर्वेदी

सुरेन्द्र चतुर्वेदी की साहित्य की कई विधाओं में पचास के करीब पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं | फिल्मी दुनिया से भी सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी का गहरा जुड़ाव रहा है ,जिसके चलते उन्होंने लाहौर, तेरा क्या होगा जानी, कुछ लोग, अनवर, कहीं नहीं, नूरजहां और अन्य तमाम फिल्मों में गीत लिखे, पटकथा लिखीं. पंजाबी, हिंदी, उर्दू आदि कई भाषाओं पर अधिकार रखने वाले सुरेन्द्र चतुर्वेदी अपने ऊपर सूफी प्रभावों के कारण धीरे-धीरे सूफी सुरेन्द्र चतुर्वेदी के रूप में पहचाने जाने लगे. यों तो उन्होंने अनेक विधाएं आजमाईं पर ग़ज़ल में उनकी शख्सि‍यत परवान चढ़ी. आज वे किसी भी मुशायरे की कामयाबी की वजह माने जाते हैं.उनकी शायरी को नीरज, गुलज़ार, मुनव्वर राणा जैसे शायरों ने मुक्तकंठ से सराहा है. गुल़जार साहब ने तो जैसे उन्हें अपने हृदय में पनाह दी है. वे राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा विशिष्ट साहित्यकार सम्मान एवं अन्य कई सम्मानों से नवाजे गए हैं | कानपुर विश्वविद्यालय से मानद डाक्टरेट की उपाधि से विभूषित चतुर्वेदी इन दिनों अजमेर में रह रहे हैं |

चौथी कक्षा में जिंदगी की पहली कविता लिखी | कॉलेज़ तक आते-आते लेख और कविताएं तत्कालीन पत्र पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित होने लगीं. जैसे धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, सरिता, दिनमान, सारिका, इंडिया टुडे आदि |

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