बहुत मुश्किल होता है अपनी कम उम्र औलादों पर कुछ लिखना। और मुश्किल तब जब लिखने का विषय घिनौनी हरकतों से जुड़ा हो। सोचना पड़ता है कि समाज को हम किस मोड़ पर ले आए हैं। हमने अपने पारिवारिक संस्कारों को किस चौराहे पर ला खड़ा किया है। इतना शर्मनाक मोड़ जहाँ से हमको अपनी औलादों से जिÞयादा अपने आप के होने पर शर्म आती है।
जोधपुर की ऐतिहासिक जमीन पर ऐसी घटना कारित हुई जिसकी चर्चा करना भी अजीब लग रहा है मगर क्यों कि विषय चिन्ता जनक है इसलिए गंभीरता का तकाजा है कि विषय पर बात की जाए।
जोधपुर के एक छोटे से कस्बे में 13 साल के बच्चे ने सुनियोजित तरीके से 7 साल की बच्ची को अपना शिकार बना लिया। निश्चित रूप से इस घटना का सम्बंध हवस से ही है मगर सवाल ये भी की 13 साल की मासूम उम्र में हवस भी पैदा हो जाती है। इतनी वहशी हवस कि बच्चा अपनी दो सगी बहनों को कमरे से भिजवा दे और पड़ौस में रहने वाली सात साल की बच्ची को मोबाईल गेम खेलने के लिए रोक ले और उसके साथ दरिंदगी कर ले। आखिर उसके जिस्म में यह वहशियों वाली हरकत आई कहाँ से
माना कि फ़्रायड के सिद्धांत कहते हैं कि यह भावना जन्म जात होती है और माँ के दूध से बच्चे में आ जाती है किन्तु इसके विकास की रफ़्तार इतनी तो तेज नहीं होती कि 13 साल का बच्चा बेरहमी अपना ले।
मित्रों! इसके लिए हम! हमारा समाज! हमारा भौंतिक वादी सोच! हमारा खान पान! रहन सहन! उपलब्ध तकनीकी साधन! सब जिÞम्मेदार हैं।
जोधपुर की घटना के बाद 13 वर्षीय बच्चे को डिटेंड किया गया है। किया जाना तो बच्चे के अभिभावकों को था जिन्होंने मासूम बच्चे को खेलने कूदने की उम्र में जवान बना दिया। उसे मोबाईल और इंटर नेट से जोड़ कर उम्रदराज बना दिया।
जरा सोचिए कि पच्चीस साल पहले तक समाज कहाँ था? माता पिता किस स्तर तक अपने बच्चों से छिप कर मिलने का साहस कर पाते थे। माता पिता के सामने जवान बच्चे भी कतरा कर व्यवहार करते थे। पीढ़ी का अंतराल इतना प्रभावशाली था कि कई पीढ़ियां एक छत के नीचे बड़े ही शालीन तौर तरीकों से समायोजन करती थीं। हम बीबी से तो दूर की बात बच्चों से भी प्यार माता पिता के सामने नहीं कर पाते थे। आज तो प्री वैडिंग के नाम पर युवक युवतियाँ बाकायदा माता पिता को बता कर ऐश फरमा लेते हैं।
शादी के समय पूरे समाज के सामने प्रीवेडिंग के शूट बड़ी टी वी स्क्रीन पर दिखाए जाते हैं। ऐसे ऐसे दृश्य जिसे देख कर माँ बाप शर्म से झुक जाने चाहिए पर वे इसे शान समझते हैं। सच तो यह है कि अब हम नग्नता के दौर से गुजर रहे हैं। आधुनिकता के नाम पर हम अपने और अपनी पीढ़ियों को नग्न कर रहे हैं। फैशन के नाम पर छोटे छोटे बच्चों का शारिरिक प्रदर्शन किया जा रहा है। मैंने कभी एक व्यंग्य लिखा था जो देश भर में बड़ा मशहूर हुआ। आप भी सुन लें।
“यदि अंग प्रदर्शन ही फैशन है तो हम बहुत अभागे हैं,
क्यों कि जानवर इस दौड़ में हमसे बहुत आगे हैं।”
मित्रों! हो सकता है आप मुझे दकियानूस कह कर आधुनिकता के सैनापति बन जाएं मगर मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं कि हम अपनी पीढ़ियों को मानसिक रूप से पीड़ित बना रहे हैं।
अजमेर के पुलिस कप्तान देवेन्द्र विश्नोई से मेरी कई मर्तबा इस विषय पर बात हुई। उन्होंने भी मोबाईल और इंटरनेट के प्रयोग को अतिसंवेदनशील विषय बताया। उनका भी कहना है कि यह तकनीकी अविष्कार घातक हो सकता है। बच्चों के लिए इसका प्रयोग बेहद समझदारी और नियंत्रण के साथ किया जाना चाहिए।
आज स्थिति यह है कि पांच साल का बच्चा मोबाइल का प्रयोग इस खूबी के साथ करता है कि माँ बाप देख कर दंग हो जाते हैं। दो साल के बच्चे मोबाईल के दक्ष हैंडलर हो जाते हैं।
अजमेर में एक मासूम बच्ची ने इसलिए आत्महत्या कर ली कि उसके पिता ने उससे मोबाईल छीन लिया। माता पिता की व्यस्तता और आत्मकेंद्रित जिÞन्दगी बच्चों को मोबाईल के भरोसे छोड़ देती है और फिर वही होता है जो जोधपुर में हुआ।
भारत में जोधपुर जैसी घटनाएं अब आम हो चुकी हैं। आंध्रप्रदेश की घटना मुझे याद है जब 13 साल के दो तीन लड़को ने 7 साल की लड़की से न केवल सामुहिक जबरदस्ती की बल्कि उसकी हत्या कर नहर में फेंक दिया।
ऐसी वारदातें जो कभी होती ही नहीं थीं आज कल आम तौर पर होने लगी हैं। मैं चाहूँगा कि इस पर समाज चिंता करे! चिंतन करे! मनोवैज्ञानिक इस पर उपाय सुझाएँ! आप सब से भी आग्रह है कि यदि इस विषय पर अपने सार्थक विचार हों तो हमारे चैनल “बात आज की” पर आएं और विचार समाज तक पहुंचाए।
यहाँ बता दूँ कि हमारा चैनल अजमेर का नहीं राज्य का ऐसा इकलौता चैनल है जो सामाजिक समरसता के लिए समर्पित है और अछूते विषयों पर नवाचार करता है। पिछले दिनों पुलिस कप्तान श्री देवेन्द्र विश्नोई का साक्षात्कार इसी श्रंखला का हिस्सा था। सुप्रसिद्ध विचारक श्री हनुमान सिंह राठौड़ का साक्षात्कार भी। लगभग छह लाख टी.वी. दर्शकों और इससे कहीं अधिक सोशल मीडिया पर मेरे फॉलोवर्स ने उनका समर्थन किया।