आम आदमी पार्टी पर आरोप लगाने से पहले भाजपा और कांग्रेस के नेताओं को अपने गिरेबां में भी झांकना चाहिए
आतिशी को दिल्ली का मुख्यमंत्री घोषित करने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें अरविंद केजरीवाल की कठपुतली मुख्यमंत्री बताया है। साथ ही दिल्ली भाजपा ने इस पर एक पोस्टर भी जारी किया है। यही आरोप कांग्रेस का भी है। दोनों पार्टियों का मानना है कि इस्तीफा देने के बाद भी परदे के पीछे असली सीएम केजरीवाल ही होंगे। सुप्रीम कोर्ट से जमानत की शर्तों में पावरलैस होने के कारण उन्होंने मजबूरी में भले ही इस्तीफा दे दिया हो, लेकिन आतिशी नाम की सीएम होगी, सरकार केजरीवाल ही चलाएंगे।
लेकिन सवाल ये है कि आतिशी को कठपुतली बताने वाली भाजपा और कांग्रेस ने क्या आप पर आरोप लगाने से पहले अपने गिरेबान में झांका।
भाजपा एवं कांग्रेस दोनों जब भी केंद्र में सत्ता में रहे, राज्यों में उसके मुख्यमंत्री दिल्ली की कठपुतली की तरह ही काम करते रहे। दिल्ली से मुख्यमंत्री का नाम आना और उस पर विधायक दल की सर्वसम्मति का मतलब ही यह होता है कि वो जो सीएम बनने जा रहा है,वह केंद्रीय नेतृत्व की पंसद है और उसके इशारों पर ही उसे काम करना है। इंदिरा गांधी जब तक प्रधानमंत्री रही और कांग्रेस का देश में कई राज्यों में शासन था, उन्होंने अपनी मनमर्जी से मुख्यमंत्री बनाए और जो उनके इशारों पर नहीं चला,उसे हटाने में भी देर भी नहीं की।
कांग्रेस पर तो खैर हमेशा से ही गांधी परिवार का कब्जा रहा और इंदिरा गांधी के बाद राजीव,सोनिया और राहुल-प्रियंका ही अपने निष्ठावानों को सीएम बनाते रहे।
आलाकमान यानी गांधी परिवार से किसी नेता का नाम आता और उस पर राज्य में मोहर लगवाने के लिए गांधी परिवार के ही विश्वस्त नेता जाते और विधायकों से उसे मुख्यमंत्री चुनवाकर आ जाते। कहीं परेशानी होती या आलाकमान की पंसद के अलावा कोई दूसरा दावा ठोक देता,तो विधायकों से एक लाइन का प्रस्ताव पास करा लिया जाता था कि उन्हें आलाकमान का फैसला मंजूर होगा। क्या इस तरह सीएम बनने वाले नेता कठपुतली नहीं होते थे?
भाजपा में भी कौन से मुख्यमंत्री विधायकों में बहुमत के आधार पर चुने जाते हैं।
2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद तो जिन राज्यों में भाजपा सत्ता में आई,मोदी और उनके सबसे विश्वस्त गृहमंत्री अमित शाह ही अपनी पसंद के नेताओं को मुख्यमंत्री बना रहे हैं। इसके लिए उन्होंने कई राज्यों से स्थापित नेताओं को सिर्फ इसीलिए बर्फ में लगा दिया,ताकि जो मुख्यमंत्री बने,वह उनके इशारों पर ही काम करता रहे। पिछले साल राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जो हुआ, वह सभी ने देखा है। कांग्रेस में कम से कम विधायक दल की बैठक या प्रस्ताव पास कराने की नौटंकी तो होती थी,लेकिन जिस तरह भाजपा ने इन तीन राज्यों के मुख्यमंत्री चुने, वह नई मिसाल थी।
कांग्रेस आज भी पर्ची वाली सरकार कहती है
तीनों के नाम दिल्ली से पर्यवेक्षक एक पर्ची में लिखकर लाए। जो विधायकों की बैठक में खोली गई और नाम की घोषणा कर दी गई। राजस्थान में मुख्यमंत्री पद की प्रबल दावेदार रही वसुंधरा राजे ने जब उस पर्ची को पर्यवेक्षक रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की मौजूदगी में खोला,तो वह खुद बुरी तरह से चौंक गई। क्योंकि उसमें पहली बार विधायक बने भजनलाल शर्मा का नाम मुख्यमंत्री के रूप में लिखा था। जिनके बारे में शायद किसी ने सोचा भी नहीं था। इसीलिए कांग्रेस इसे आज भी पर्ची वाली सरकार कहती है।
यही स्थिति मध्य प्रदेश में मोहन यादव व छत्तीसगढ़ में विष्णु देव साय को सीएम बनाने में थी। इससे पहले भी मोदी और शाह की जोड़ी ही अन्य राज्यों में अपनी पंसद के मुख्यमंत्री बनाती रही है। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस जोड़ी के दबाव में नहीं आए,तो पिछले दिनों उनके खिलाफ उप मुख्यमंत्री केशवप्रसाद मौर्य को बढ़ावा देना भी सभी ने देखा है। लेकिन फिर भी योगी को हटा नहीं सके।
ऐसे में अगर केजरीवाल ने आतिशी को मुख्यमंत्री बनाने का ऐलान किया है,तो उन्हें भी अधिकार है कि वो भाजपा और कांग्रेस की तरह अपनी कठपुतली चुन सके। आखिर वो भी तो अपनी पार्टी के सर्वेसर्वा हैं।
दरअसल, हर पार्टी के बड़े नेताओं की ये कोशिश रहती है कि राज्यों में कोई ऐसा क्षत्रप तैयार ना हो जाए,जो उन्हें चुनौती दे सके या उनके निदेर्शों और फैसलों पर सवाल खड़ा करे।
इसी नीति पर चलते हुए मोदी ने तो लगभग सभी राज्यों में भाजपा के स्थापित, बड़े और जनाधार वाले नेताओं को साइड लाइन कर अपने को समपिर्त और निष्ठावान नेता तैयार कर लिए हैं। तभी तो भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने यह तक खाने में गुरेज नहीं किया कि अब भाजपा को संघ की जरूरत नहीं है। जबकि कांग्रेस में तो बड़ा और कामयाब नेता ही वह है,जो गांधी परिवार के प्रति समर्पित और निष्ठा रखता है।
केजरीवाल शातिर राजनीतिज्ञ हैं। उन्होंने आतिशी को मुख्यमंत्री इसीलिए बनाया है, क्योंकि उनका कोई जनाधार नहीं है और वो हमेशा उनकी वफादार रही है। अगर दिल्ली में आप फिर चुनाव जीतती है,तो केजरीवाल को वापस मुख्यमंत्री बनने में आतिशी कोई बाधा उत्पन्न नहीं कर सकती है। वो तो खुद ही कल सीएम बनाने की घोषणा के बाद कह चुकी है कि मेरे पास सिर्फ दो काम है। केजरीवाल को फिर से सीएम बनाना और दिल्ली के लोगों की भाजपा के षड्यंत्र से रक्षा करना। अब इससे ज्यादा वफादारी और कौन दिखा सकता है।
वैसे आतिशी को मुख्यमंत्री बनाकर केजरीवाल ने न सिर्फ महिला कार्ड खेला है, बल्कि स्वाति मालीवाल प्रकरण में मिली बदनामी से डैमेज कंट्रोल का भी प्रयास है।
हालांकि अब स्वाति मालीवाल आतिशी के माता-पिता को आतंकी अफजल गुरु को फांसी से बचाने की कोशिश करने का आरोप लगा रही है। इसके बाद आप ने उनसे राज्यसभा से इस्तीफा मांगा है। मालीवाल आप के टिकट पर राज्यसभा सदस्य हैं। जाहिर है वह इस्तीफा देने से रही। बहरहाल, भारतीय राजनीति में कठपुतलियां बनाने और उन्हें अपने इशारों पर नचाने का पुराना रिवाज रहा है और इससे कोई भी दल अछूता नहीं है। चाहे वह राष्ट्रीय राजनीतिक दल हो या फिर क्षेत्रीय। इसलिए किसी को भी किसी को अंगुली उठाने का हक ही नहीं है।