मार्बल नगरी किशनगढ़ के प्राचीन बाला जी के मन्दिर में लहरिया को लेकर हुई सियासत चर्चाओं में है। विधायक डॉ विकास चौधरी आहत हैं। कुछ प्राचीन परम्पराएं टूटी है। लहरिया का झंडा जो बरसों से विधायक के कर कमलों द्वारा लहराया जाता था इस बार सांसद और केन्द्रीय मंत्री भागीरथ चौधरी द्वारा चढ़वा दिया गया। मौजूद विधायक विकास चौधरी के सामने लहरिया जब भागीरथ जी को सौंपा गया तो विकास चौधरी जी का दिमाग खराब होना स्वभाविक था। वह कर तो कुछ नहीं पाए मगर तुरंत लौट कर अपनी नाराजगी दर्ज करवा दी।
इस घटनाक्रम से पैदा हुए हालातों पर कोई भी नेता खुल कर नहीं बोल रहा। हाँ, लोग परम्परा तोड़े जाने पर आश्चर्य जरूर व्यक्त कर रहे हैं। कांग्रेसी नेता इस रस्म परिवर्तन को दुर्भाग्यपूर्ण बता रहे हैं। अनेक बार किशनगढ के विधायक रहे लोकप्रिय जाट नेता नाथूराम सिनोदिया ने प्रेस के सामने इस मामले में प्रतिक्रिया दी है।
यदि इस पर त्वरित टिप्पणी की जाए तो किशनगढ़ के इतिहास में यह पहली बार नहीं हुआ जब किशनगढ़ के दो नेता अजमेर को नेतृत्व दे रहे हैं। पहले भी जब निर्दलीय नेता सुरेश टांक विधायक थे तब भी यह स्थिति आई थी। तब भी सांसद भागीरथ चौधरी ही थे मगर तब भी लहरिये की रस्म सुरेश टांक ने ही अदा की थी। बताया जाता है कि बाला जी के मंदिर में यह रस्म सवा सौ साल से चली आ रही है। पहले राज परिवार नेतृत्व करता था । राजा पेट से पैदा होते थे। फिर आजादी आई। प्रजातंत्र की स्थापना हुई। राजा पेट की जगह पेटी से पैदा होने लगे। तब यह रस्म विधायकों के कर कमलों में आ गई। बीच मे जब भागीरथ चौधरी विधायक थे तो उन्होंने इस रस्म को अदा किया।
यदि कोई यह तर्क दे कि इस बार भागीरथ जी सिर्फ़ सांसद ही नहीं केंद्रीय मंत्री भी हैं सो वह विधायक से जियादा समर्थ और सीनियर हैं तो इसे मैं सिरे से खारिज करूँगा। यह कोई तर्क नहीं हुआ। अजमेर के सांसद तो पहले भी केंद्रीय मंत्री रहे है। सचिन पायलट और सांवरलाल जाट भी इस तरह तो रस्म के हकदार हो सकते थे मगर क्या इस बार जान बूझकर परम्परा तोड़ी गई? क्या सोची समझी चाल के तहत विधायक चौधरी और सांसद चौधरी को एक साथ बुलाया गया? क्या भागीरथ जी से यह रस्म अदा करवाने के पीछे विकास चौधरी को अपमानित करने की कहानी लिखी गई थी।
इस बारे में जब मैंने डॉ. विकास चौधरी से बात की तो उन्होंने बड़े ही सलीके से अपनी बात रखी। उन्होंने यह स्वीकार किया कि बाला जी के मंदिर में वह बचपन से लहरिये की रस्म में उपस्थित रहते आए हैं। बचपन में वह बाला जी से यह प्रार्थना करते थे कि बाला जी कभी उनको विधायक बनाएं और वह भी झंडा चढ़ाने का गौरव प्राप्त करें। इस बार उनको यह गौरव प्राप्त हो सकता था मगर जब ऐसा नहीं हुआ तो एक पल को वह उदास जरूर हुए। क्षुब्ध मन से लौट भी आये मगर बाद में उन्होंने सोचा कि शायद बाला जी यही चाहते होंगे।
विकास चौधरी की इस बात ने मुझे ब्लॉग लिखने पर विवश कर दिया जब उन्होंने कहा कि यदि बाला जी इस बार मुझे लहरिये की रस्म अदा करने का अवसर देते तो मैं आदरणीय भागीरथ जी को आगे होकर झंडा अपने हाथ से उनके हाथ मे दे देता और हम साथ साथ रस्म अदा करते । उन्होंने कहा कि मेरे संस्कार मुझे अग्रजों के सामने सर झुकाने की बात कहते हैं मगर यहाँ तो लगा ही नहीं कि कोई बड़प्पन दिखा रहा है। दुख इस बात का रहा कि उनको नीचा दिखाने वाले भाव नजर आए।
विकास चौधरी के मन में क्या है यह वह जानें मगर सच तो यही है कि भागीरथ चौधरी को भी बरसों से चली आ रही परम्परा को सम्मान देना चाहिए था। ऐसा हो नहीं सकता कि वह कहें उनको परम्परा का पता नहीं था या वह अंजाने में ऐसा कर गए। कितना अच्छा होता यदि वह खुद विकास चौधरी को रस्म के लिए आमंत्रित करते। शायद इसके लिए आदमी के पास बड़ी सोच का होना जरूरी होता है।
यहाँ बता दूं कि भागीरथ चौधरी किशनगढ़ के नेता नहीं। वह पूरे अजमेर जिले के नेता हैं। किशनगढ़ के नेता तो डॉ विकास ही हैं और यह हक भी उनको जनता ने दिया है। उन्होंने बाकायदा चुनाव जीता है। वह भी भागीरथ जी को एक तरफा शर्मनाक तरीके से हरा कर।
डॉक्टर विकास चौधरी किसी के चाहने या न चाहने से विधायक होने का सम्मान खो नहीं सकते। अब तो अगले विधानसभा चुनाव में ही उनको हराने के लिए किसी को अपना पुत्र या पत्नी को मैदान में उतारना पड़ेगा। न केवल उतारना पड़ेगा बल्कि चुनाव जितवाना भी पड़ेगा।