राजनीति में भाषा का घटियापन और कुछ भी बोलने का चलन लोकतंत्र के लिए घातक

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लब खोल, मर्जी आए वो बोल

-राहुल गांधी देश के नंबर वन आतंकी हैं। उन पर तो इनाम होना चाहिए। देश के किसी सबसे बड़े दुश्मन को एजेंसियों को लाना चाहिए, तो वह राहुल गांधी हैं।
-केंद्रीय मंत्री रवनीत सिंह बिट्टू
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-राहुल गांधी देश का नंबर वन आतंकवादी है, क्योंकि देश को डिवाइड एंड रूल….अंग्रेज मर गए और औलाद छोड़ गए। इसका ना तो कोई धर्म है। दादा थे मुसलमान। बाप फिर क्रिश्चियन हो गए। क्रिश्चियन से शादी कर ली। न ये मुसलमान रहे। न हिंदू रहे। ना क्रिश्चियन रहे। ये तो पांचवीं जाति बन गई।
-रघुराज सिंह,उत्तर प्रदेश के मंत्री
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-राहुल गांधी ने विदेश में कहा है वे आरक्षण खत्म करना चाहते हैं। इससे कांग्रेस का चेहरा उजागर हो गया है। मैं राहुल गांधी की जीभ काटने वाले को 11 लाख रुपए दूंगा।
– संजय गायकवाड, विधायक शिवसेना शिंदे
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ये वो तीन बयान है, जो विपक्ष के नेता राहुल गांधी के खिलाफ तीन नेताओं ने दिए हैं। दो भाजपा के और एक उसके सहयोगी दल शिवसेना-शिंदे के नेता ने। तीनों बयान भाषा और राजनीति की मयार्दा से परे हैं। जाहिर है तीनों बयानों से भारतीय जनता पार्टी ने अपना पल्ला झाड़ लिया और इन्हें नेताओं का व्यक्तिगत बयान बताया। केंद्रीय मंत्री बिट्टू के बयान पर भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि यह भाषा हमारे संस्कार नहीं है। तो, महाराष्ट्र में सरकार की सहयोगी भाजपा ने गायकवाड़ के बयान पर कहा ये भाजपा की सोच नहीं है। पिछले दिनों अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने आरक्षण और सिखों पर जो बयान दिए थे, उन्हें लेकर यह तीनों नेता अपनी नाराजगी जता रहे थे। लेकिन शब्दों की मयार्दा को भूलकर।

बिट्टू पिछले लोकसभा चुनाव में ही कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे, लेकिन चुनाव हार गए थे। वो दो बार कांग्रेस से सांसद रहे हैं। हार के बावजूद भाजपा ने उन्हें केंद्रीय मंत्री बनाया और फिर राजस्थान से राज्यसभा में ले जाया गया। बिट्टू का पूरा परिवार कांग्रेसी रहा है। उनके दादा बेअंत सिंह पंजाब के मुख्यमंत्री और पिता वहां मंत्री रहे हैं। 6 महीने पहले तक कांग्रेस में रहे बिट्टू को अब राहुल गांधी आतंकवादी और देश के सबसे बड़े दुश्मन लगने लगे हैं। भाजपा अक्सर ये आरोप लगाती रही है कि कांग्रेस में जो नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए सबसे ज्यादा बुरा बोलता है।

पार्टी उसे प्रमोशन देती है। तो क्या अब यह माना जाए की यह नीति भाजपा ने भी अपना ली है कि जो राहुल गांधी के लिए सबसे ज्यादा ओछी भाषा बोलेगा, उसे पदों से नवाजा जाएगा। पहले सांसद कंगना रनोत और अब बिट्टू इसके ताजा उदाहरण हैं। नकवी का यह कहना कि ये भाषा भाजपा के संस्कार नहीं है,एक तरह से कांग्रेस पर ही सीधा हमला है, क्योंकि बिट्टू कांग्रेस से ही भाजपा में दाखिल हुए हैं।

राजनीति में पिछले कुछ सालों से बयानबाजी करते हुए नेता जिस तरह की घटिया भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं, वह किसी भी दृष्टि से देश के लोकतंत्र के लिए उचित नहीं है। राजनीति अब विचारधारा के बजाय व्यक्तिगत लड़ाई बनती नजर जा रही है। जिसमें विपक्षियों का सार्वजनिक अपमान करने में भी कोई शर्म महसूस नहीं की जाती। इसमें कोई शक नहीं की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी बीते कुछ सालों में सबसे ज्यादा अपमानजनक बयानों और घटिया शब्दों का सामना करना पड़ा है। कांग्रेसी नेताओं ने उन्हें नीच आदमी, चायवाला, अस्वस्थ मानसिकता से पीड़ित, तानाशाह, हिटलर, मोस्ट स्टुपिड पीएम,जहर की खेती करने वाला, मौत का सौदागर, जवानों के खून का दलाल, सांप, बिच्छू, गंदी नाली का कीड़ा रावण, नालायक, वायरस, भस्मासुर, गंगू तेली और भी पता नहीं क्या-क्या कहा।

लेकिन ये भी सच है कि खुद पीएम सहित अन्य भाजपा नेताओं ने भी सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी पर खूब व्यक्तिगत और ओछी टिप्पणियां की। भाजपा के निशाने पर ममता बनर्जी, केजरीवाल, लालू यादव, नितीश कुमार (अब भाजपा के ही साथ) जैसे विपक्षी नेता भी रहे हैं। घटिया बयानबाजी का ये सिलसिला चुनावों में ज्यादा गरमाता है।

विडंबना ये भी है कि किसी भी पार्टी को नेता जब कोई बयान देता है और वह विवाद में आ जाता है, तो वह पार्टी तुरंत उसे संबंधित नेता का व्यक्तिगत बयान बताकर खुद को अलग कर लेती है। क्यों? अगर वह नेता उस पार्टी में नहीं होता तो उसकी बात का वजन क्या होता। बिट्टू को ही लीजिए, अगर वह पंजाब के एक नेता के रूप में राहुल पर बयान देते, तो उनकी बात पर कौन ध्यान देता। जाहिर है एक केंद्रीय मंत्री के नाते उन्होंने राहुल गांधी को आतंकवादी कहा तो विवाद होना ही था।

अब तो ऐसा लगता है मानो विपक्षी नेताओं को घटिया शब्दों और बातों से नवाजना राजनीति का फैशन बन गया है। किसी भी टीवी चैनल पर डिबेट देख लीजिए, पार्टी प्रवक्ता ऐसे-ऐसे शब्दों का प्रयोग करते हैं, जिसे आम आदमी भी इस्तेमाल नहीं करता हैं। एक बात और है। अपनी पार्टी के नेताओं को घटिया बयान को रोकने के बजाय यह दल अपने नेता के बयान को वाजिब ठहराने के लिए दूसरे नेता के इस तरह के बयान को सामने लाते हैं। यानि उन्होंने भी घटिया भाषा बोली है,तो हम भी बोलेंगे।

वैसे, यह बात राहुल गांधी को भी समझनी होगी कि अब वह संवैधानिक पद पर हैं और नेता प्रतिपक्ष है,केवल सांसद नहीं। इसलिए विदेश में जाकर उनकी कही गई हर बात पर न सिर्फ देश,बल्कि दुनिया की नजर भी रहती है। ऐसे में उन्हें ऐसे बयानों से बचना चाहिए,जिससे देश की प्रतिष्ठा को आघात पहुंचता है। अपने देश में राजनीतिक मतभेद और प्रतिद्वंदता एक बात है। लेकिन विदेशों में जाकर भारत और उसकी नीतियों को लेकर बयान देना दूसरी बात है। दुनिया में ये संदेश नहीं जाना चाहिए कि भारत एकजुट नहीं है।

अमेरिका में तीन दिन की यात्रा पर भी उनके बयानों के कारण विवाद होता रहा। इसके पहले भी वह जब-जब विदेश गए हैं,ऐसा ही हुआ है। हो सकता है राहुल को लगता हो कि देश की मीडिया में उन्हें ज्यादा जगह नहीं मिलती। इसलिए अगर वह विदेश जाकर कुछ बोलेंगे, तो उसकी गूंज भारत सहित अन्य देशों में भी होगी। लेकिन उन्हें यह भी समझना होगा कि पहले वे सिर्फ सांसद थे। लेकिन अब वह नेता विपक्ष है और खुद को प्रधानमंत्री पद का दावेदार भी मानते रहे हैं।

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1 thought on “राजनीति में भाषा का घटियापन और कुछ भी बोलने का चलन लोकतंत्र के लिए घातक”

  1. भारतीयों की जितनी बेइज्जती भारतीय नेता करवाते हैं उतनी कोई नहीं करवा सकता | यह आपके सड़ते ढांचे के ही हिस्से हैं | इन सभी को पका पकाया खाने के लिए मिल गया इसलिए इज्जत नहीं कर रहे |
    आपको अपनी टी वी डीबेट पर जो शब्दावली सुनने के लिए मिलती है | उससे लाख गुना अच्छी तमीज सब्जी मंडी के दुकानदारों में होती है |
    और यह सब करने के अधिकार आपके सविंधान ने दिए हैं |

    आप याद कीजिये पहले केवल एक टी वी चेंनेल दूरदर्शन होता था | उसके सवांददाताओं का भाषा पर पकड़ याद कीजिये | उसे याद करते हुए आज का दूरदर्शन देख लीजिये | घिन्न न आने लग जाये तो कहियेगा | बर्बादी तो इनकी पहले से शुरू हो गयी थी 2014 के बाद से गुंडागर्दी तक लाइव होने लगी | आपने जिंदगी में कभी सोचा था आप टी वी पर लाइव मर्डर देखंगे | कोई आदमी गलत है सही है फैसला अदालतें करेगी | लेकिन अधिकारों के नाम पर गुंडागर्दी की इजाजत कैसे मिल रही हैं ?

    मोदी गर्म दिमाग इंसान है और मोदी के भक्त उद्दंड | लेकिन राहुल गाँधी भी दूध का धुला चरित्र नहीं है | इसके बारे में सोशल मिडिया में बहुत कुछ मिलता है |
    यहाँ आप किसी का भी पक्ष नहीं ले सकते | दोनों ही पार्टियों में एक से बढ़ कर एक चरित्र हैं | इनके प्रवक्ताओं की भाषा ही देख लीजिये | अभी तो यह लगता है की एक प्रतियोगिता चल रही है कौन सी पार्टी कितना घटिया चरित्र दिखा सकती है |
    मोदी राहुल से ऊब जाएँ तो समाजवादी के प्रवक्ता को सुन लें | शिव सेना वाले कौन से कम हैं ?
    अनार्की के सबसे बड़े चेहरे अरविन्द केजरीवाल या ममता बनर्जी को सुन लें |

    आप उन लोगों को याद कीजिये जिन्होंने भारत को आज़ाद करवाने के लिए गोलियाँ खायी थी |
    अपने आप से पूछना क्या इन लोगों के लिए क्रांतिकारियों का अपने जीवन को बलिदान देना जरूरी था ?

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