अब दस दिन भगवान शिव की शरण में

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भारत की सनातन संस्कृति में पुष्कर तीर्थ का विशेष महत्व माना गया है। सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी ने पुष्कर में जिस स्थान पर बैठकर यज्ञत किया, उसी स्थान पर आज पवित्र सरोवर बना हुआ हे। लोग इस सरोवर में स्नान कर पुण्य की प्राप्ति करते हैं। जब भी धर्म और आध्यात्म की चर्चा होती है तो पुष्कर क्षेत्र का उल्लेख अवश्य होता है। मैं इसी अध्यात्म के क्षेत्र से निकलकर 16 सितंबर को भगवान शिव की शरण में उत्तराखंड स्थित आदि कैलाश पर्वत पर जा रहा हंू।

इस दस दिवसीय धार्मिक और आध्यात्मिक यात्रा में मुझे उम्मीद है कि सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा की कृपा से कैलाश पर्वत पर भगवान शिव के दिव्य दर्शन होंगे। चूंकि धार्मिक यात्रा में लिखने का अवसर नहीं मिल पाएगा, इसलिए पाठकों को 25 सितंबर तक मेरे ब्लॉग पढ़ने को नहीं मिलेंगे। शुभचिंतकों और पाठकों का मेरे प्रति जो स्नेह है उसमें भी मुझे उम्मीद है कि कैलाश पर्वत यात्रा सुरक्षित होगी। मेरे साथ अजमेर के सुप्रसिद्ध कारोबारी देवेश गुप्ता, कपड़ा कारोबारी रमेश चंदीराम, महाकाल मटका कुल्फी के निमार्ता राजेश मालवीय और आध्यात्मिक गुरु पंडित कैलाश जी भी साथ है। भारत की सनातन संस्कृति में शिव के साथ पार्वती के महत्व को ध्यान में रखते हुए हम सब की पत्नियां भी यात्रा में सहभागी है।

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