जम्मू कश्मीर में कट्टरपंथियों के आपसी गठजोड़ से मुसलमानों के मुखौटा बने राहुल गांधी, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, विजयन, लालू प्रसाद जैसे नेताओं को सबक लेना चाहिए

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झारखंड में कट्टरपंथियों की घुसपैठ को भी पीएम मोदी ने स्वीकारा है

जम्मू कश्मीर में हो रहे विधानसभा के चुनाव में उत्पन्न हो रहे हालातों पर मैं लगातार ब्लॉग लिख रहा हंू। मैंने जो आशंकाएं व्यक्त की वे सब धीरे धीरे सामने आ रही है। ताजा खबर है कि प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी के उम्मीदवारों और टेरर फंडिंग के आरोपी सांसद अब्दुल राशि की अवामी इत्तेहाद पार्टी के बीच गठबंधन हो गया है। यानी जमात और इंजीनियर राशि के उम्मीदवार मिलकर कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के उम्मीदवारों से मुकाबला करेंगे। इसमें कोई दो राय नहीं कि इंजीनियर राशिद और जमात के उम्मीदवारों का कश्मीर घाटी में खासा प्रभाव है। सब जानते हैं कि जमात की देश विरोधी गतिविधियों के कारण ही प्रतिबंध लगाया गया था।

जमात की विचारधारा बांग्लादेश पर हाल ही में कब्जा करने वाली विचारधारा है। दुनिया ने देखा है कि शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश में कट्टरपंथियों ने किस प्रकार से हिंदुओं और उनके धार्मिक स्थलों को निशाना बनाया। जब भी कट्टरपंथी विचारधारा मजबूत होती है तो भाईचारा तो खत्म होता ही है साथ ही नरम पंथी मुसलमानों को पीछे धकेल दिया जाता है। जम्मू कश्मीर खासकर घाटी में अब तक अब्दुल्ला और मुफ्ती खानदार के लोगों ने ही मुसलमानों के वोट हासिल किए, लेकिन अब घाटी में कट्टरपंथियों के दबदबे के कारण अब्दुल्ला और मुफ्ती के खानदानों वाली पार्टियों को पीछे धकेला जा रहा है। दबदबे का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लोकसभा चुनाव में इंजीनियर राशिद ने ही पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला को हराया था।

इंजीनियर राशि और जमात के बीच चुनावी गठबंधन हो जाने से एनसीपी, पीडीपी और कांग्रेस के उम्मीदवारों को खतरा हो गया है। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, केरल में पिनराई विजयन, बिहार में लालू प्रसाद और कई प्रदेशों में राहुल गांधी मुस्लिम वोटों की जो राजनीति करते हैं उन्हें जम्मू कश्मीर में कट्टरपंथी और अलगाववादी विचारधाराओं के गठबंधन से सबक लेना चाहिए। यह समझना चाहिए कि राहुल, अखिलेश, ममता आदि सिर्फ मुखौटा है। जब भी कट्टरपंथी मजबूत होते हैं तब सिर्फ कश्मीर की तरह इन नेताओं को भी हटा दिया जाएगा।

सब जानते हैं कि कट्टरपंथियों के कारण ही कश्मीर घाटी से चार लाख हिंदुओं को प्रताड़ित कर भगा दिया गया। कट्टरपंथियों ने पहले अब्दुल्ला और मुफ्ती खानदारों को वोट देकर घाटी को अपने कब्जे में किया और अब इन्हीं खानदानों को बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। कट्टरपंथी सोच वाले जो विधायक बन जाएंगे तब जम्मू कश्मीर विधानसभा के हालातों का अंदाजा लगाया जा सकता है।

कट्टरपंथी भले ही अनुच्छेद 370 की बहाली न करवा सके, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मंच पर यह दिखाने का प्रयास किया जाएगा कि कश्मीर के लोग 370 की बहाली चाहते हैं। तब जो हालात उत्पन्न होंगे उनका जवाब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार भी नहीं दे सकेगी। 15 सितंबर को ही खुद पीएम मोदी ने झारखंड में एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि झारखंड मुक्ति मोर्चा के लोग बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों के साथ खड़े है। घुसपैठिए और कट्टरपंथी सत्तारूढ़ जेएमएम को भी कब्जे में ले रहे है। यानी जो हालात कश्मीर घाटी में हो चुके हैं, वो अब झारखंड में होने जा रहे हैं। एक दिन यही हालात यूपी से लेकर पश्चिम बंगाल तक में होंगे।

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