*सांसद!! यानि दिल्ली की संसद में अपने लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधि! क्षेत्र की समस्याओं को संसद में ज़ोर शोर से उठाने वाला जन सेवक! यूँ कहो तो अपने क्षेत्र का भाग्यविधाता! और मोदी की ज़ुबान में कहो तो चौकीदार!*💁♂️
*अजमेर के भाग्य विधाता बनाम चौकीदार ! मूलतः कृषक के साथ साथ साथ भू कारोबारी हैं। बेहद उच्च क़िस्म के भू स्वामी! जनप्रतिनिधि होना उनकी अतिरिक्त ख़ूबी है। यह पहचान भले ही भू कारोबारी होने से ज़ियादा महत्वपूर्ण है मगर पूरा संसदीय क्षेत्र जानता है कि वह अपने कारोबार में अपेक्षाकृत अधिक ध्यान देते हैं। यही वज़ह है कि उनके नाम बेशक़ीमती ज़मीनें हैं ,जो किशनगढ़ से पुष्कर और न जाने कहाँ कहाँ फैली हुई हैं। यदि सर्वेक्षण किया जाए तो उनके भूपति होने का पता लगाया जा सकता है। यहाँ हमारे चौकीदार जी को भूपति बताने के पीछे मेरा और कोई मक़सद नहीं सिर्फ़ यह बताना चाहता हूँ कि राजनीति उनका शौक़ है पैसा कमाने का ज़रिया नहीं। अक्सर राजनेता नेतागिरी से पैसा कमाते हैं और देखते ही देखते बेशुमार दौलत के स्वामी हो जाते हैं। जीरो से राजनीति शुरू करते हैं और हीरो बनने तक कई पीढ़ियों को घर बैठे ख़र्च करने का सौभाग्य प्रदान कर देते हैं। देश मे ऐसे दर्जनों सांसद होंगे जिनकी पीढियां निहाल हो चुकी हैं। लेकिन दोस्तों हमारे चौकीदार जी की ये खासियत है कि कभी कोई सरकारी ज़मीन पर कब्जे से इनका नाम नहीं जुडा।*💯
*देश मे ऐसे भी सांसद हैं जो पूंजीवाद से पैदा हुए। चांदी की चम्मच और सोने की थाली में जिन्होंने भोजन गृहण करने का सौभाग्य प्राप्त किया। उदाहरण के बतौर गांधी परिवार को ही ले लीजिए! पीढ़ी दर पीढ़ी कभी किसी ने पैसों की कभी कमी नहीं भुगती।*❌
*मगर यहाँ मैं तो हमारे लोकप्रिय चौकीदार जी की बात कर रहा था। इसमें कोई दो राय नहीं कि वह आज अरब खरब पति हैं। पिछले चालीस साल पहले शायद उनके पास इतना पैसा नहीं था। वह एक सुप्रसिद्ध धनपति के यहां आम कर्मचारी थे। हो सकता है उनके समय और उम्र के ऐसे कई लोग हों जो आज भी कहीं नौकरी चाकरी करते हों मगर ईश्वर की इतनी कृपा रही कि हमारे चौकीदार साहब देखते ही देखते उनसे इतने आगे निकल चुके हैं कि अच्छे अच्छे धनपति उनके सामने मच्छर हैं।*🫢
*यह सब कैसे हुआ❓कड़ी मेहनत और लगन से! जी नहीं मेहनत तो पत्थर तोड़ने वाले ख़ानों के मजदूर उनसे ज़ियादा करते हैं! तो फिर❓ राजनीति से❓ जी नहीं! राजनीति तो पैसे वालों के पैर की जूती होती है। देख लीजिए पाटनी जी को! देश का हर छोटा बड़ा राजनेता उनके आगे बिछा रहता है। सैकड़ो नेता उनकी कृपा के लिए झोली फैलाए रहते हैं। यानि ये तय है कि राजनीति से तो हमारे चौकीदार जी ने धन उपार्जित नहीं किया!
*क्या कोई बता सकता है कि चौकीदार जी आम आदमी से इतने ख़ास आदमी कैसे बन गए❓
*यदि कोई आपसे पूछे कि सामान्य परिवार के राजऋषि आज इतने बड़े धनपति कैसे है❓कैसे खानों के मालिक हैं❓कैसे पैसा उनके आगे पीछे घूमता है❓हो सकता है आप कहें कि उन्होंने राजनीतिक हथकंडों से पैसा कमाया! उल्टे सीधे कामों से पैसा कमाया! मगर मैं ऐसा नहीं मानता।राजऋषि ने भी पैसा राजनीति से नहीं कमाया। कैसे कमाया यह बताऊंगा मगर एक ब्रेक के बाद।
*फ़िलहाल बताता हूँ कि हमारे चौकीदार जी जो ज़मीन की ख़रीदो फ़रोख़्त से धनपति बने राजनीति में क्यों समय और पैसा बर्बाद करते हैं❓
*दोस्तों! आम लोगों का ये सवाल है कि विधायक के चुनाव में शर्मनाक हार के बाद तो उनको राजनीति से तौबा कर लेनी चाहिए थी। इतना पैसा ख़र्च करके दो मामूली लोगों से चुनाव हारने वाले चौकीदार जी फिर क्यों लोकसभा की टिकिट ले कर आए❓क्यों पैसा पानी की तरह से बहाया❓क्यों उन लोगों के देवरे ढोके जो उनके सामने कोई हैसियत नहीं रखते❓
*ज़ाहिर है कि आप पूछें कि जो इंसान आए रोज़ महंगी से महंगी ज़मीन आँख मीच कर ख़रीद लेता हो उसका राजनीति में इतना रुझान क्यों है❓
*अब आप कहेंगे कि इतनी देर से मैं इधर उधर की हाँके जा रहा हूँ ख़ुलासा क्यों नहीं कर रहा❓
*मित्रों! इन सारे सवालों के बहुत आसान जवाब हैं। सवाल चाहे राजऋषि से जुड़ा हो या चौकीदार जी से !! उत्तर यही है कि दोनों मुक़द्दर के सिकन्दर हैं। एक को सियासत रास आ गई। तक़दीर ने उसे निहाल कर दिया। दूसरे की तक़दीर ने उसे अमूल्य ज़मीनों से नवाज़ दिया।
*अब सवाल यह कि इतना पैसा होने के बाद लोग बार बार जनता से ज़लील होने के बावज़ूद राजनीति में क्यों बने रहना चाहते हैं
*मित्रों! यह सवाल बड़ा महत्वपूर्ण है! ज़मीन तो चौकीदार जी से भी ज़ियादा कई लोगों के पास हैं! बेशक़ीमती भी! मगर लोग उनको भूमाफिया कहने से नहीं चूकते! उनका नाम सम्मान से नहीं लिया जाता! समाज में उनके कारोबार को डॉन वाला कारोबार कहा जाता है। पुलिस और राजनेता गाहे बगाहे उनकी गर्दन नापने में पीछे नहीं रहते! हर चुनावों में चंदे के नाम से उनकी गर्दन पर छुर्री चलाई जाती है। कुछ लोग तो यह जानते हुए भी कि भूमाफिया सांड है, फिर भी दूध निकालने से बाज़ नहीं आते। हमारे चौकीदार जी के साथ ऐसा कुछ नहीं। उनको कोई भूमाफिया कहने की हिम्मत नहीं कर सकता।
*यही वज़ह है कि समझदार ज़मीन के कारोबारी राजनीति में आ जाते हैं। कारोबार भी चलता रहता है और उनको सम्मान भी मिलता रहता है। और फिर इस बहाने जनता की सेवा भी हो जाती है। जनसेवा से मन को शांति भी मिल जाती है। प्रशासन भी चरणों में नत मस्तक रहता है।
*ऐसा ही एक प्रकरण हाल ही में अजमेर दरगाह क्षेत्र में सामने आया है। चर्चा है कि करोडो रूपये की इस बेशकीमती ज़मीन को तीन चार भू माफियाओ ने राजनीतिक संरक्षण के चलते सलटा लिया है। ये ज़मीन पिछले काफ़ी समय से विवादसपद थी जिसको सलटाने में कई माफिया एड़ी चोटी का जोर लगा चुके थे।
*अब तो समझ मे आ गया होगा कि क्यों ख़ास पैसों वालों को भी राजनीति में बने रहना पड़ता है❓