-जहां हर शख्स अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूल में दाखिला दिलाने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है।
-जहां हिंदी बोलने वालों को अंग्रेजी बोलने वालों की तुलना में अभी भी हेयदृष्टि से देखा जाता हो।
-जहां सरकारें खुद हिन्दी माध्यम स्कूलों को इंग्लिश मीडियम में बदल रही हो।
-जहां सरकारी और अदालत के कामकाज में अंग्रेजी का बोलबाला हो।
-जहां हर तरह की तकनीकी शिक्षा इंग्लिश मीडियम में ही दी जा रही हो।
-जहां हिन्दी फिल्मों में काम करके करोड़ों रूपए कमाने वाले अभिनेता-अभिनेत्रियां भी अंग्रेजी में इंटरव्यू और बातचीत को प्राथमिकता देते हो।
-जहां अंग्रेजी बोलना स्टेट्स सिंबल माना जाए।
-जहां अंग्रेजी कोचिंग की कक्षाएं तो देखने को मिल जाएगी,लेकिन कहीं हिंदी कोचिंग की कक्षा नहीं मिलेगी।
-जहां हिन्दी के अखबार भी हिन्दी के आसान शब्दों की जगह उनके अंगेजी शब्द काम में लेने लगे हो।
उस देश में हिंदी का सम्मान कैसे होगा? अंग्रेज देश छोड़ गए, लेकिन गुलामी के निशान गहरे दे गए हैं। आज बच्चों की स्थिति (अधिकांश युवाओं की भी) ये है कि वो हिन्दी की वर्णमाला बोलना तो दूर,अक्षर तक नहीं पहचान पाते। जैसे पुराने लोगों को अंग्रेजी पढ़ने, लिखने और समझने में परेशानी होती है। वैसी परेशानी आज के बच्चों और अंग्रेजीदां युवाओं को हिंदी से होती है।
हिन्दी का सम्मान,महत्व और उपयोगिता अपनी जगह है। लेकिन कड़वी सच्चाई यही है कि अंग्रेजी जाने बिना आज किसी भी क्षेत्र में कामयाबी मिलना मुमकिन नहीं हैं। हिन्दी पर प्रवचन झाड़ने वाले नेताओं,अधिकारियों और खुद शिक्षकों के बच्चे भी अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में ही पढ़ रहे हैं। हिंदी को बेहतर तरीके से जानने और समझने वाले भी अंग्रेजी बोलने में खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं। ऐसे में हिंदी दिवस का महत्व तभी है,जब एक दिन नहीं हमेशा हिन्दी को बढ़ावा दिया जाए। अंग्रेजी जानने, बोलने और जहां जरूरत हो काम करने में कोई बुराई नहीं है। लेकिन अंग्रेजी बोलने वाले को सिर पर चढ़ाने या उसे ज्यादा बुद्धिमान समझने की मानसिकता से बाहर आना है। हिन्दी को मातृभाषा कहने से कुछ नहीं होगा, उसे वैसा ही सम्मान और दर्जा देना भी होगा।
हिन्दी की लोकप्रियता और स्वीकार्यता देश भर में बढे। इसी उम्मीद के आप सभी को हिन्दी दिवस कीशुभकामनाएं।