कुछ नहीं ‘बिगाड़’ पाएगा तगड़े से तगड़ा स्कैमर
नई दिल्ली। आजकल हर कोई इंटरनेट का इस्तेमाल करता है, चाहे किसी को आनलाइन खरीददारी करनी हो, बैंकिंग सेवाओं का लाभ लेना हो या सोशल मीडिया पर जुड़ना हो। लेकिन जैसे-जैसे तकनीक बढ़ रही है, वैसे-वैसे साइबर अपराधी भी पहले से ज्यादा होशियार होते जा रहे हैं। आप किसी दिन सुबह उठते हैं और देखते हैं कि आपके नाम से कोई दूसरा व्यक्ति आॅनलाइन फ्रॉड कर चुका है। ऐसा होता है आज की नई जनरेशन की टेक्नोलॉजी जेनरेटिव एआई की वजह से, जो आवाज, वीडियो, और तस्वीरें हूबहू असली जैसी बनाकर लोगों को धोखा देती है। यही वजह है कि अब बीमा कंपनियां छोटे-छोटे सैशे कवर लेकर आई हैं, जो आपको इस तरह के साइबर खतरों से बचा सकते हैं।
बीमा कंपनियां अब छोटे-छोटे साइबर सुरक्षा कवर पेश कर रही हैं, जो साइबर धोखाधड़ी की बढ़ती घटनाओं से बचाने के लिए डिजाइन किए गए हैं। ये बीमा कवर, जो सिर्फ 3 रुपये प्रति दिन की लागत से उपलब्ध हैं, व्यक्तियों और व्यवसायों को आइडेंटिडी चोरी, साइबर जबरन वसूली और आॅनलाइन बदमाशी से बचाते हैं।
कैसे होती है साइबर धोखाधड़ी?
टाइम्स आॅफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक साइबर अपराधी नकली वीडियो, आवाज क्लोन या टेक्स्ट मैसेज का इस्तेमाल करते हुए परिवार के सदस्य, अधिकारी या कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों का रूप धारण करते हैं। जेनरेटिव एआई बेहद असली दिखने वाले वीडियो और आॅडियो बना सकता है। एचडीएफसी एर्गो जनरल इंश्योरेंस के निदेशक पार्थनील घोष ने बताया, धोखेबाज एआई की मदद से असली जैसी तस्वीरें, वीडियो और आवाज बनाकर गैर-कानूनी गतिविधियों में शामिल हो रहे हैं।
डेलॉयट की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत का साइबर इंश्योरेंस मार्केट, जो 2023 में 50-60 मिलियन डॉलर का था, अगले पांच वर्षों में 27-30% की दर से बढ़ने की उम्मीद है। जैसे-जैसे बाजार और संबंधित जोखिम बढ़ते जा रहे हैं, अक आधारित धोखाधड़ी के लिए बीमा कवरेज को सीमित सीमा के साथ पेश किया जा रहा है।
अब केवल पैसे तक सीमित नहीं साइबर अपराध
पहले साइबर जोखिम एसएमएस फिशिंग, धोखाधड़ी कॉल और ओटीपी चुराने तक सीमित थे। अब लोग इन तरीकों से सावधान हो गए हैं। लॉक्टन इंडिया के सीईओ संदीप दडिया के अनुसार, जेन एआई के साथ जोखिम अब वित्तीय नुकसान से आगे बढ़कर प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने और उत्पीड़न से उत्पन्न भावनात्मक तनाव की ओर बढ़ गए हैं। इसके अलावा, डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट भी व्यक्तिगत डेटा के उल्लंघन से सुरक्षा प्रदान करता है।
रोकथाम इलाज से बेहतर
जैसे-जैसे एआई तकनीक आगे बढ़ रही है, डीपफेक वीडियो की सटीकता भी बढ़ती जा रही है, जिससे पारंपरिक आथेंटिकेशन के तरीके, जैसे कि आवाज और चेहरे की पहचान अब उतनी विश्वसनीय नहीं रह गई हैं। एचडीएफसी के घोष ने बताया कि तकनीक के लगातार बदलते रहने के कारण इन धोखाधड़ियों को पहचानना मुश्किल हो जाता है। उनकी कंपनी नियमित रूप से कर्मचारियों को साइबर खतरों के प्रति सचेत करती है और डीपफेक्स को पहचानने के तरीकों पर ट्रेनिंग देती है।
आईसीआईसीआई के गौरव अरोड़ा के अनुसार, बीमा सुरक्षा के अलावा, संगठनों को वित्तीय लेनदेन और संवेदनशील डेटा की सुरक्षा के लिए मल्टी-फैक्टर आथेंटिकेशन लागू करना चाहिए और डीपफेक और कम्युनिकेशन में विसंगतियों का पता लगाने के लिए एआई आधारित उपकरणों का उपयोग करना चाहिए।