ख्वाजा साहब की दरगाह की सियासत में पीएम मोदी को नहीं उलझना चाहिए

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मोदी के जन्मदिन पर पकने वाली देग का खादिमों की संस्था अंजुमन ने विरोध किया
इंडियन माइनॉरिटी फाउंडेशन और चिश्ती फाउंडेशन ने 17 सितंबर को देग का तबर्रुक (प्रसाद) वितरण की तैयारी की है
वक्फ एक्ट में संशोधन पर भी अंजुमन और दीवान आमने-सामने

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह पता नहीं होगा कि अजमेर स्थित ख्वाजा साहब की दरगाह में 17 सितंबर को उनके जन्मदिन पर देग का तबर्रुक प्रसाद वितरण किया जाएगा, लेकिन पीएम के जन्मदिन पर देग का तबर्रुक वितरित करने पर दरगाह में घमासान मचा हुआ है। इंडियन माइनॉरिटी फाउंडेशन और फाउंडेशन के प्रतिनिधि अशफान चिश्ती ने कहा कि दरगाह की सूफी परंपरा के अनुरूप 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन के उपलक्ष में बड़ी देग में तबर्रुक तैयार किया जाएगा और फिर इसे जरूरतमंद व्यक्तियों को वितरित किया जाएगा।

दरगाह की परंपरा के अनुरूप यह तबर्रुक चालव सूखे मेवे और देशी घी से तैयार होगा। बड़ी देग में तबर्रुक बनाने की अनुमति ले ली गई है। चिश्ती का कहना है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश ने पिछले दस वर्षों में विकास की नई इबारत लिखी है। देश में अमन चैन कायम रहे इसके लिए 17 सितंबर को दरगाह में दुआ प्रार्थना भी की जाएगी।

उन्होंने कहा कि पीएम मोदी हमेशा सांप्रदायिक सद्भावना में भरोसा रखते हैं, इसलिए ख्वाजा साहब के सालाना उर्स में अपनी ओर से चादर और संदेश भी भेजते हैं। पीएम के संदेश में ख्वाजा साहब की शिक्षाओं का अनुसरण करने की बात कही जाती है। लेकिन वहीं दरगाह के खादिमों की प्रतिनिधि संसिा अंजुमन सैयद जादगान ने पीएम मोदी के जन्मदिन पर दरगाह में देग का तबर्रुक वितरित किए जाने का विरोध किया है।

अंजुमन के सचिव सरवर चिश्ती ने कहा कि भाजपा, कांग्रेस, सपा आदि दलों के नेताओं का जन्मदिन दरगाह से बाहर बनाना चाहिए। चिश्ती ने दावा कि मोदी के जन्मदिन पर तैयार होने वाले तबर्रुक का दरगाह में आने वाले जायरीन से लेकर खादिमों तक ने एतराज जताया है। उन्होंने कहा कि जायरीन और खादिमों की भावनाओं को देखते हुए 17 सितंबर को मोदी के नाम पर देग को नहीं पकाया जाना चाहिए।

दीवान और अंजुमन आमने-सामने:

वक्फ एक्ट में संशोधन के मुद्दे पर भी खादिमों की संस्था अंजुमन और दरगाह दीवान जैनुल आबेदीन के परिवार के बीच विवाद रहा है। दीवान आबेदीन के उत्तराधिकारी और विभिन्न दरगाहों की कौंसिल के अध्यक्ष सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने जहां वक्फ एक्ट में संशोधन का समर्थन किया, वहीं अंजुमन ने विरोध। अंजुमन की ओर से 11 वा 12 सितंबर को दरगाह के निकट एक कैंप भी लगवाया। इस कैंप में मुसलमानों खासकर खादिमों के परिवारों के सदस्यों से अपने अपने मोबाइल फोन के साथ आमंत्रित किया गया। सभी ने क्यूआर कोड के माध्यम से वक्फ एक्ट में संशोधन का विरोध किया।

यहां यह उल्लेखनीय है कि ख्वाजा साहब की दरगाह के आंतरिक प्रबंधन में केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक मंत्रालय के अधीन काम करने वाली दरगाह कमेटी का भी दखल होता है। यानी दरगाह में तीन प्रमुख केंद्र है। एक खादिमों की संस्था अंजुमन, दो दरगाह दीवान और तीन दरगाह कमेटी। दरगाह दीवान सैयद जैनुल आबेदीन स्वयं को ख्वाजा साहब का वंशज बताते हैं तो अंजुमन दरगाह की धार्मिक रस्मों पर एकाधिकार जताती है। दरगाह कमेटी के पास दरगाह के अंदर साफ सफाई और रोशनी और जायरीन की सुविधाओं की जिम्मेदारी है।

देग का पांच सौ वर्षों का इतिहास

ख्वाजा साहब की दरगाह में तबर्रुक पकाने (तैयार करने) के लिए दो देग है। इतिहासकारों के अनुसार मुगल बादशाह अकबर ने 15वीं शताब्दी में बड़ी देग तथा जहांगीर ने 16वीं शताब्दी में छोटी देग का निर्माण करवाया था। दरगाह की परंपरा के अनुरूप जायरीन की मन्नत पूरी होने पर देग पकाई जाती है। अच्छी बात यह है कि यह देग पूरी तरह शाकाहारी होती है। यहां तक की प्याज का इस्तेमाल नहीं होता। देग को चावल सूखे मेवे और देशी घी में ही तैयार किया जाता है। ऐसा नहीं कि नेताओं के नाम पर पहली बार देग पक रही है। इससे पहले भी फिल्म स्टार, राजनेता अन्य महापुरुषों के जन्मदिन पर देग का तबर्रुक वितरित होता रहा है। कभी भी देग के तबर्रुक के वितरण पर ऐतराज नहीं किया गया। ऐसा प्रतीत होता है कि दरगाह की सियासत में पीएम मोदी को बेवजह उलझाया जा रहा है। अच्छा हो कि सांप्रदायिक सद्भावना का संदेश देने वाली ख्वाजा साहब की दरगाह से कोई गलत संदेश न जाए।

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