मिट्टी के कट्टों पर आकर टिक गया है स्मार्ट सिटी अजमेर कोटा और उदयपुर भी स्मार्ट सिटी हैं मगर वहाँ मिट्टी के कट्टों का कोई भविष्य नहीं। अजमेर में चालीस हजार से जियादा मिट्टी से भरे कट्टे पानी का मुकाबला कर रहे हैं। सीमेंट फेल होने के बाद इन कट्टों को सम्मान हासिल हो रहा है। जिस तरह श्राद्ध पक्ष में कौओं की पूछ होती है उसी तरह बाढ़ पक्ष में मिट्टी के कट्टे ढूंढे जा रहे हैं। आज स्थिति यह है कि मिट्टी के इन मामूली कट्टों ने फायसागर की पाल को कंधा दे रखा है। आनासागर को भरोसा दिला रखा है। खानपुरा को बुरे वक़्त में साथ देने का वादा कर रखा है। सड़कों के जानलेवा खड्डों में खुद को दफना कर लोगों की जान बचा रखी है। नालों की टूटी दीवारों को बिखरने से रोक रखा है।
दोस्तों! ये मिट्टी के कट्टे अजमेर की जन्मपत्री के लग्नेश हैं। अजमेर के पाप ग्रहों की अंतर्दशा हैं। देखना यही किसी दिन टूट कर गिरने वाले एलिवेटेड रोड के लिए भी मददगार साबित होंगे।
मिट्टी के कट्टे! शहर के स्मार्ट प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को समझा रहे हैं कि तुम से तो हम ही बेहतर हैं जो खोखले शहर को सहारा तो दे रहे हैं। तुमने तो स्मार्ट सिटी के पूरे बजट की बन्दर बांट कर ही ली। सीमेंट के करोड़ों कट्टों और सरियों से अजमेर को जंगल से बना ही दिया। अब जाकर तुमको खयाल आया कि मिट्टी के कट्टे न होते तो तुम्हारे पाप खुल कर सामने आ जाते।
विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी शहर की बदहाली पर बेहद संवेदनशील हैं। उन्होंने बाड़ी नदी और आनासागर के किनारों पर हुए अतिक्रमणों को तत्काल हटाए जाने की बात कही है। उनकी इस बात का पूरा शहर समर्थन कर रहा है लेकिन यहाँ मैं देवनानी जी को बता दूँ कि बाड़ी नदी नहीं एक नाला है। शहर के आम नालों जैसा यदि उनको मेरी बात पर भरोसा न हो तो नगर निगम की मेयर ब्रजलता जी हाड़ा से पूछ लें। उनके अधिकारियों ने एन जी टी! (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) झीलों की सुरक्षा के लिए बने देश की सर्वोच्च अदालत को बाकायदा शपथ पत्र देकर बताया है की बाड़ी नदी एक नाला है। पिच्यासी फीट के फैलाव वाली नदी को मात्र 18 फीट की चौड़ाई तक पहुंचाने वाले निकम्मे अधिकारी कह रहे हैं कि बाड़ी नदी नहीं नाला है। अच्छा हुआ उन्होंने उसे नाला ही बताया नाली नहीं।
देवनानी जी! आपसे आग्रह है कि यदि आपने आनासागर और बाड़ी नदी के आस पास बने अतिक्रमणों को तत्काल हटाए जाने के आदेश दिए हैं तो अब आप तब तक चैन से न बैठें जब तक यह अतिक्रमण हटा न दिए जाएं। कहीं ऐसा न हो कि आपके आदेशों का सम्मान बचाए रखने में मिट्टी के कट्टे ही इस्तेमाल हों।
देवनानी जी! अजमेर अच्छी तरह से जानता है कि जब आप किसी के पीछे मेरा मतलब किसी काम के पीछे पड़ जाते हैं तो काम पूरा होने तक चैन से न तो बैठते हैं और न सामने वाले को बैठने देते हैं।
जनता को यकीन है कि यदि आपने आनासागर और बाडी नदी के आसपास से अतिक्रमण हटाने के आदेश दे दिए हैं तो अतिशीघ्र इसके परिणाम भी दिखाई देने लगेंगे।
आनासागर के क्षेत्रफल को कम करने वाले सभी निर्माण ध्वस्त कराए जाने बहुत जरूरी हैं वरना शहर के आस पास सीमेंट बनाने के नहीं मिट्टी के कट्टे बनाने के उपक्रम स्थापित करने पड़ेंगे।
देवनानी जी! एक और आग्रह है आपसे! आनासागर के आस पास के अतिक्रमण हटाने से पहले हमको सागर के अंदर बने पाथ वे और सेवन वंडर हटाने पड़ेंगे! इसके लिए तो नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने बाकायदा पहले से ही ध्वस्त करने का फैसला सुरेन्द्र सिंह शेखावत वाले केस में दे रखा है! नगर निगम के बुद्धिमान अधिकारी जबरदस्ती कुतर्कों से मामला टाले जा रहे हैं। यहां बता दूं कि ये निर्माण पूरी तरह से अवैद्य हैं और टालने से ये नहीं टलेंगे! एक न एक दिन इनको ध्वस्त करना ही होगा।
अब देखना होगा कि सम्मानीय देवनानी जी के निदेर्शों का पालन जिÞला प्रशासन कैसे और कब तक करेगा? फिलहाल तो मिट्टी के कट्टों से काम चल ही रहा है।