कांग्रेस के पीएम की इफ्तार पार्टी में सीजेआई उपस्थित रहे तो यह कौमी एकता, लेकिन सीजेआई की गणेश पूजा में नरेंद्र मोदी मौजूद रहे तो संविधान को खतरा

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यही सोच भारत को कट्टरपंथ की ओर ले जा रही है
पहली बार बंगाल में ममता के नेतृत्व को चुनौती मिली। इस्तीफे की बात नौटंकी

सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ मराठी परंपराओं का निर्वाह करते है। इसलिए इस बार भी गणेश उत्सव के दौरान जस्टिस चंद्रचूड ने अपने दिल्ली स्थित सरकारी आवास पर गणेश प्रतिमा की स्थापना की। 9 दिन चलने वाली पूजा में 11 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाग लिया। पीएम मोदी के सीजेआई चंद्रचूड़ के घर पर गणेश पूजा करने पर अब कांग्रेस सहित विपक्ष के अनेक नेताओं को ऐतराज है। विपक्षी नेताओं ने संविधान और न्यायपालिका पर ही खतरा बता दिया है।

कांग्रेस के साथ महाराष्ट्र में गठबंधन करने वाली शिवसेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे तो यहां तक आरोप लगा दिया कि अब उनकी पार्टी के केस में जस्टिस चंद्रचूड न्याय नहीं कर पाएंगे। कहा जा रहा है कि चंद्रचूड़ सीजेआई के जिस पद पर बैठे हुए हैं उसमें उन्हें अपने घर पर गणेश प्रतिमा की स्थापना नहीं करनी चाहिए थी। सब जानते हैं कि गणेश उत्सव भारत की सनातन संस्कृति की परम्पराओं में से एक है। इस उत्सव को सभी भारतवासी धूमधाम से मनाते हैं।

गणेशजी को सुख शांति और समृद्धि का दाता माना जाता है। यदि देश के प्रधानमंत्री और प्रधान न्यायाधीश मिलकर देश में सुख शांति के लिए पूजा करे तो इस पर एतराज की क्या बात हैं? लेकिन इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि राजनीतिक स्वार्थ के खातिर पूजा अर्चना का भी विरोध किया जा रहा है। राजनीतिक और वोटो के स्वार्थ की खातिर पीएम व सीजेआई की गणेश पूजा का विरोध हो रहा है, जबकि वर्ष 2009 में जब कांग्रेस सरकार के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने सरकारी आवास पर जब रमान माह में इफ्तार पार्टी दी, तब सीजेआई केजी बालाकृष्णन भी उपस्थित रहे। तब सीजेआई की उपस्थिति को कौमी एकता बताया गया, लेकिन आज पीएम और सीजेआई की गणेश पूजा पर ऐतराज जताया जा रहा है। यही सोच भारत को कट्टरपंथ की ओर ले जा रही है।

इतिहास गवाह है कि भारत के मंदिरों को किन लोगों ने तोड़ा, लेकिन फिर भी गणेश पूजा पर ऐतराज हो रहा है। इसे राजनीतिक स्वार्थ का अंधापन ही कहा जाएगा कि उद्धव ठाकरे जैसे नेता भी ऐतराज जता रहे है। जबकि उद्धव के पिता स्वर्गीय बालासाहेब ठाकरे ने तो सनातन धर्म की रक्षा के बड़े बड़े आंदोलन किए। आज महाराष्ट्र की राजनीति में उद्धव ठाकरे का जो वजूद है, उसके पीदे पिता बाला साहब की मेहनत है। उद्धव ठाकरे अपने राजनीतिक स्वार्थों के खातिर पिता की मेहनत पर पानी फेर रहे हैं।

पहली बार चुनौती

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि वे इंतजार करे और मिलने के लिए कोई न आए। 12 सितंबर को ममता के साथ कल्पना से परे घटना हुई। कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में हुई रेप और मर्डर की घटना के बाद पश्चिम बंगाल के सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर हड़ताल पर है। 12 सितंबर को ममता ने वार्ता के लिए डॉक्टरों को बुलाया। ममता सचिवालय में डॉक्टरों का इंतजार करती रही, लेकिन कोई डॉक्टर मिलने नहीं आया। संभवत: यह पहला अवसर रहा, जब ममता के नेतृत्व को चुनौती मिली है।

वार्ता के लिए न जाने के डॉक्टरों ने अपने तर्क है। चूंकि ममता को पहली बार सीधे तौर पर चुनौती मिली इसलिए ममता ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे की पेशकश कर दी। जो लोग ममता की राजनीति को समझते हैं, उनका मानना है कि इस्तीफे की बात कहकर ममता सिर्फ नौटंकी कर रही है। बंगाल की मुख्यमंत्री बने रहने के लिए ममता बनर्जी किसी भी स्थिति में इस्तीफा नहीं देंगी। ममता सिर्फ रेप और मर्डर केस से ध्यान भटकाने का काम कर रही है। ममता की वजह से ही पूरे पश्चिम बंगाल में अराजकता का माहौल है। राज्यपाल सीबी आनंद तो बंगाल में गुंडाराज होने तक की बात कह चुके हैं। बंगाल में भारतीय संविधान के बजाए ममता बनर्जी का कानून चलता है।

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