आज निजी तौर पर आप सब को खुद से जोड़ने का मन है। मन इसलिए हुआ कि हाल ही में मेरे ब्लॉग्स को लेकर कुछ मित्रों ने सवाल खड़े किए और उनका जवाब भी कुछ मित्रों ने दे दिया। अब मैं भी अपना पक्ष रखना चाहता हूं।
विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी जब विधानसभा का चुनाव लड़ रहे थे। जब रामचन्द्र चौधरी और भागीरथ चौधरी लोक सभा का चुनाव लड़ रहे थे तब अलग अलग समय में मैं अलग अलग विचारों के साथ ब्लॉग्स लिख रहा था। किसी के पक्ष में तो किसी के लिए विपक्ष में।
इस पर कुछ मित्रों ने सवाल उठाए। सवाल कुछ यूं थे। आप विधानसभा चुनावों में देवनानी जी के विपक्ष में लिख रहे थे अब खुल कर उनके पक्ष में लिख रहे हो! क्यों?
विधानसभा चुनाव में किशनगढ़ के लिए आप भागीरथ चौधरी के खिलाफ लिख रहे थे लोकसभा चुनाव में उनके पक्ष में! क्यों?
लोकसभा चुनाव में आप रामचन्द्र चौधरी के खिलाफ राय जाहिर कर रहे थे अब उनको दुग्ध क्रांति का मसीहा बता रहे हो! क्यों?
ऐसे ही दर्ज़नों सवाल। इसका उत्तर देने से पहले मैं ब्यावर के वरिष्ठ पत्रकार और बेबाक विश्लेषक विजेन्द्र प्रजापति की टिप्पणी यहां उध्दृत करना चाहूंगा। रामचन्द्र चौधरी पर लिखे ब्लॉग को लेकर उन्होंने जो अपने चैनल और ग्रुप में दी।प्रस्तुत है ज्यों की त्यों।
“संजय जब धृतराष्ट्र को महाभारत का आँखों देखा हाल सुना रहा था तब संजय ने बड़ी ईमानदारी से जो हो रहा था वहीं दृष्टांत वृतांत कर रहा था। कई बार धृतराष्ट्र संजय पर क्रोधित भी हुए पर संजय ने बड़े ही धीरज से धृतराष्ट्र के क्रोध को सहन करते हुए दुर्योधन वध या महाभारत की समाप्ति तक संजय ने सच का साथ नहीं छोड़ा। आज की पत्रकारिता का दौर चाटुकारिता में बदल गया है यहाँ तक कि E मिडिया से लेकर P मिडिया तक *चरणवंदना पत्तलकारिता* कर रहे है . ओर हक़ीक़त भी सच सुनने ओर पढ़ने की क्षमता इस दौर में रही नही . लेकिन *S JOURNALISTS कुछ ऐसे हैं जो आज भी संजय का अनुसरण कर रहे है आपने रामचंद्र जी चौधरी के बारे चुनाव में बहुत कुछ लिखा लेकिन जब परिणाम आये तो वो यथार्थ में भी बदला . श्वेत क्रांति के नायक रामचंद्र जी चौधरी अजमेर के विरले पुरोधा है जिन्होंने दूध क्रांति से कई दूधियो की किस्मत बदल दी . राजनीति इनके लिए बनी ही नहीं. आज जब चौधरी जी ने उल्लेखनीय कार्य किया तो आपने उनकी यशोगाथा में कोई कमी नहीं रखी। यह बात आम पाठक को समझना चाहिए कि अभी भी पत्तलकारिता के युग में कुछ पत्रकार अभी भी जीवित हैं जो यथार्थ से मुहब्बत करके हकीकत बयां करने की हिम्मत रखते है सुरेन्द्र जी भाईसाब आप यथार्थ की स्याही से हिम्मत की कलम से कोरे कागज पर शब्द ब्रह्मा को मूर्त रूप अनवरत देते जाये ङ्घ..!!!!! देश में गोडावण ओर पत्रकार कम ही बचे है।”
मैं आभारी हूँ मित्र विजेंदर प्रजापति का। उन्होंने मेरे मन की बात बड़ी रोचक भाषा में रख दी।
मित्रों! यह सच बात है कि पत्रकार दूसरी दुनिया का व्यक्ति नहीं होता। वह भी जन्म ही लेता है अवतार नहीं लेता। वह भी हम आपके ही बीच में पला बड़ा होता है। समाज से उसके सरोकार भी उतने ही जुड़े होते हैं जितने हमारे आपके।
मानवीय खूबियां और कमियां उसमें भी होती हैं। यही वजह है कि वह लिखते समय अपने अंदर के किसी भाव से प्रभावित होकर लिख सकता है।
मगर….यहाँ मैं अपने बारे में स्पष्ट कह सकता हूँ कि मैं किसी के पक्ष में यदि लिखता हूँ तो उसकी चाटुकारिता नहीं करता। चरणवन्दना नहीं करता। उसके सच को स्वीकारते हुए ही कलम चलाता हूँ। ठीक विपरीत यदि किसी के विरुद्ध भी लिखता हूँ तो उसके प्रति दुश्मनी का भाव नहीं रखता। अपनी कोई दमित रडक नहीं निकालता। किसी की कोई कमी मेरे लिए स्थाई नहीं होती । किसी की कमी और खूबी दोनों ही मेरे लिए महत्वपूर्ण होती हैं।
और दोस्तों यह बात सिर्फ़ मेरे लिए ही नहीं उन सब पत्रकारों पर भी लागू होती है जो पत्रकारिता से पेट नहीं पालते। पत्रकारिता को पूजा मानते हैं।
यहाँ बता दूँ की अजमेर जिÞले के अधिकांश सच्चे पत्रकार निहायत ही ईमानदार निडर और निष्पक्ष हैं। वह अभिव्यक्त होते समय किसी के प्रति आग्रह या दुराग्रह नहीं पालते। टुकड़ों पर पलना उनको स्वीकार ही नहीं। यही वजह है कि किसी व्यक्ति की खूबियों और कमियों के बीच वह संतुलन बनाकर रखते हैं।
मैं देश के कभी सबसे बेबाक और आक्रामक कहे जाने वाले न्याय अखबार से निकला हुआ पत्रकारिता का छात्र हूँ। बाबा विश्व देव शर्मा उस पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति थे। उन्होंने अपने यहाँ पत्रकारिता सीखने वाले हर छात्र को इतना सलीके दार बनाया कि क्या मजाल कोई लड़खड़ा जाए। उस विश्वविद्यालय के प्रोफेसर भी जांबाज पत्रकार रहे। सम्मानीय विश्व विभूति विदेह जिनके पुत्र मनीष और मोहित आज दिल्ली और अहमदाबाद से अखबार निकाल रहे हैं। विदेह बाबा के बड़े पुत्र थे। उनके दूसरे पुत्र राजहंस जी उर्फ़ राजू भाईसाहब थे जिन्होंने मेरे जैसे पचासों पत्रकारों को मरजीवडा पत्रकार बनाया। उनसे छोटे पुत्र और मेरे प्रोफेसर बृहस्पति शर्मा हैं जो आज जयपुर में पत्रकारिता का परचम फहरा रहे हैं। इनके अलावा हमारे दो प्रोफेसर राकेश और योगीराज भी थे जो बाबा के ही पुत्र थे। बाबा के ही दो अन्य पुत्र सनत शर्मा और ऋषी राज शर्मा भी क्रमश:अहमदाबाद और जयपुर में ईमानदारी से पत्रकारिता कर रहे हैं। यहाँ जिÞक्र करना जरूरी समझता हूँ स्व विजय शर्मा का जो बाबा के सबसे छोटे पुत्र थे और न्याय के अलवर एडीशन को संभालते थे सड़क हादसे ने उस महान पत्रकार को हमसे छीन लिया।
यहाँ बताना चाहूँगा कि न्याय में तब मेरे जैसे नए पत्रकारों को रगड़ रगड़ कर पत्रकार बनाने वाले दो विशेषज्ञ भी हुआ करते थे। गुरु सतीश शर्मा और प्यारे मोहन त्रिपाठी। दोनों आज भी पत्रकारिता के पुरोधा माने जाते हैं।
यहाँ उन पत्रकारों का भी जिक्र करना चाहूँगा जिन्होंने न्याय विश्वविद्यालय के नाम को ऊंचाईयों तक पहुंचाया और उनमें से अधिकांश तो आज भी न्याय की पताका फहरा रहे हैं। दैनिक नवज्योति की रीढ़ माने जाने वाले स्व श्याम सुन्दर शर्मा न्याय विश्वविद्यालय के ही होनहार छात्र थे। देश के विख्यात साहित्यकार रहे रमेश उपाध्याय भी न्याय में ही संपादक रहे। स्व महेश श्रीवास्तव ने भी न्याय का नाम ऊँचाई तक पहुंचाया। संस्कृत भाषा के विद्वान बद्री प्रसाद पंचोली भी बरसों तक न्याय के संपादकीय लिखते रहे।
इनके अलावा बता दूँ कि आज के लोकप्रिय और चर्चित पत्रकार वेद माथुर, इंदु शेखर पंचोली, गिरिधर तेजवानी, ओम माथुर, वीरन्द्र आर्य, विजय शर्मा भी पत्रकारिता क्षेत्र में न्याय की पैदाइश हैं।
एक नाम लिए बिना मैं इस ब्लॉग को अधूरा मानूंगा। यह जीवित पत्रकार कभी न्याय में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हुआ करते थे। नाम था बी पी गोस्वामी। कभी चेन्नई चले गए। आज वहाँ से तीन अखबार निकाल रहे हैं। अभी उनको तमिलनाडु हिंदी साहित्य का सबसे बड़ा पुरस्कार मिला है।
हो सकता है बहुत से नाम मुझसे छूट गए हों। अंत मे यही कहना चाहूंगा कि जिस विश्वविद्यालय में बाबा विश्वदेव शर्मा से हमने पत्रकारिता सीखी उसका नाम हम किसी हाल कमतर नहीं होने देंगे। जय न्याय! जय बाबा विश्वदेव।
सुरेंद्र चतुर्वेदी
सुरेन्द्र चतुर्वेदी की साहित्य की कई विधाओं में पचास के करीब पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं | फिल्मी दुनिया से भी सुरेन्द्र चतुर्वेदी का गहरा जुड़ाव रहा है ,जिसके चलते उन्होंने लाहौर, तेरा क्या होगा जानी, कुछ लोग, अनवर, कहीं नहीं, नूरजहां और अन्य तमाम फिल्मों में गीत लिखे, पटकथा लिखीं. पंजाबी, हिंदी, उर्दू आदि कई भाषाओं पर अधिकार रखने वाले सुरेन्द्र चतुर्वेदी अपने ऊपर सूफी प्रभावों के कारण धीरे-धीरे सूफी सुरेन्द्र चतुर्वेदी के रूप में पहचाने जाने लगे. यों तो उन्होंने अनेक विधाएं आजमाईं पर ग़ज़ल में उनकी शख्सियत परवान चढ़ी. आज वे किसी भी मुशायरे की कामयाबी की वजह माने जाते हैं.उनकी शायरी को नीरज, गुलज़ार, मुनव्वर राणा जैसे शायरों ने मुक्तकंठ से सराहा है. गुल़जार साहब ने तो जैसे उन्हें अपने हृदय में पनाह दी है. वे राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा विशिष्ट साहित्यकार सम्मान एवं अन्य कई सम्मानों से नवाजे गए हैं | कानपुर विश्वविद्यालय से मानद डाक्टरेट की उपाधि से विभूषित चतुर्वेदी इन दिनों अजमेर में रह रहे हैं |
चौथी कक्षा में जिंदगी की पहली कविता लिखी | कॉलेज़ तक आते-आते लेख और कविताएं तत्कालीन पत्र पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित होने लगीं. जैसे धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, सरिता, दिनमान, सारिका, इंडिया टुडे आदि |