देव मन्दिर की परिक्रमा महत्त्व एवं विधान

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परिक्रमा करना कोरा अंधविश्वास नहीं, बल्कि यह विज्ञान सम्मत है। जिस स्थान या मंदिर में विधि-विधानानुसार प्राण प्रतिष्ठित देवी-देवता की मूर्ति स्थापित की जाती है उस स्थान के मध्य बिंदु से प्रतिमा के कुछ मीटर की दूरी तक उस शक्ति की दिव्य प्रभा रहती है, जो पास में अधिक गहरी और बढ़ती दूरी के हिसाब से कम होती चली जाती है। ऐसे में प्रतिमा की पास से परिक्रमा करने से शक्तियों के ज्योतिर्मंडल से निकलने वाले तेज की हमें सहज ही प्राप्ति हो जाती है।

चूंकि दैवीय शक्ति की आभा मंडल की गति दक्षिणवर्ती होती है, अत: उनकी दिव्य प्रभा सदैव ही दक्षिण की ओर गतिमान होती है। यही कारण है कि दाएं हाव की ओर से परिक्रमा किया जाना श्रेष्ठ माना गया है। यानी दाहिने हाथ की ओर से घूमना ही प्रदक्षिणा का सही अर्थ है। हम अपने इष्ट देवी-देवता की मूर्ति की, विविध शक्तियों की प्रभा या तेज को परिक्रमा करके प्राप्त कर सकते हैं उनका यह तेजदान वरदान स्वरूप विघ्नों, संकटों, विपत्तियों का नाश करने में समर्थ होता है। इसलिए परंपरा है कि पूजा-पाठ, अभिषेक आदि कृत्य करने के बाद देवी-देवता की परिक्रमा अवश्य करनी चाहिए।

कहा जाता है कि प्रतिमा की शक्ति की जितनी अधिक परिक्रमा की जाए, उतना ही वह लाभप्रद होती है। फिर भी कृष्ण भगवान की तीन परिक्रमा की जाती है। देवी जी की एक परिक्रमा करने का विधान है। आमतौर पर पांच, ग्यारह परिक्रमा करने का सामान्य नियम है। शास्त्रों में भगवान शंकर की परिक्रमा है। करते समय अभिषेक की धार को न लांघने का विधान बताया गय इसलिए इनकी पूरी परिक्रमा न कर आधी की जाती है और आधी वापस उसी तरफ लौटकर की जाती है। मान्यता यह है कि शंकर भगवान् के तेज की लहरों की गतियां बाईं और दाई दोनों ओर होती हैं।

उलटी यानी विपरीत वामवर्ती (बाएं हाथ की तरफ से) परिक्रमा करने से दैवीय शक्ति के ज्योतिर्मंडल की गति और हमारे अंदर विद्यमान दिव्य परमाणुओं में टकराव पैदा होता है। परिणामस्वरूप हमारा तेज नष्ट हो जाता है। इसीलिए वामवर्ती परिक्रमा को वर्जित किया गया है। इसे पाप स्वरूप बताया गया है। इसके घातक परिणाम उस दैवीय शक्ति पर निर्भर करते हैं, जिसकी विपरीत परिक्रमा की गई है। जाने या अनजाने में की गई उलटी परिक्रमा का दुष्परिणाम तो भुगतना ही पड़ता है।

परिक्रमा करने वाले श्रद्धालुओं को कुछ बातों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। जिस देवी-देवता की परिक्रमा की जा रही है, उसकी परिक्रमा के दौरान उसका मंत्र जाप मन में करें। मन में निंदा, बुराई, दुर्भावना, क्रोध, तनाव आदि विकार न आने दें। जूते, चप्पल निकाल कर नंगे पैर ही परिक्रमा करें। हंसते-हंसते, बातचीत करते-करते, खाते-पीते, धक्का-मुक्की करते हुए परिक्रमा न करें। परिक्रमा के दौरान दैवी शक्ति से याचना न करें देवी-देवता को प्रिय तुलसी, रुद्राक्ष, कमलगट्टे की माला उपलब्ध हो, तो धारण करें। परिक्रमाएं पूर्ण कर अंत में प्रतिमा को साष्टांग प्रणाम कर पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ आशीर्वाद हेतु प्रार्थना करें।

पदम्पुराण में हरिपूजा विधि वर्णन के अंतर्गत श्लोक 115-117 में कहा गया है –
हरिप्रदक्षिणे यावत्पदं गच्छेत शनै: शनै:। पदपदेऽश्वमेधस्य फलं प्राप्नोति मानव: ॥ यावत्पादं नरो भक्त्या गच्छेद्विष्णुप्रदक्षिणे।
तावत्कल्पसहस्राणि विष्णुना सह मोदते ॥ प्रदक्षिणीकृत्य सर्वं संसारं यत्फलभवेत् । हरि प्रदक्षिणीकृत्यं तस्मात्कोटिगुणं फलम ॥

अर्थात् भक्तिभाव से जो मनुष्य भगवान विष्णु की परिक्रमा करने में धीरे-धीरे जितने भी कदम चलता है, उसके एक-एक पद के चलने में मनुष्य एक-एक अश्वमेध यज्ञ करने का फल प्राप्त किया करता है। जितने कदम प्रदक्षिणा करते हुए भक्त चलता है, उतने ही सहस्र कल्पों तक भगवान विष्णु के धाम में उनके ही साथ प्रसन्नता से निवास करता है। संपूर्ण संसार की प्रदक्षिणा करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, उनके भी करोड़ गुणा अधिक श्रीहरि की प्रदक्षिणा करने में फल प्राप्त हुआ करता है।

किस देवता की, कितनी परिक्रमा करें

शास्त्रों के अनुसार अलग-अलग देवी-देवताओं के लिए परिक्रमा की अलग संख्या निर्धारित की गई है। इस संबंध में धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि भगवान की परिक्रमा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और इससे हमारे पाप नष्ट होते है। सभी देवताओं की परिक्रमा के संबंध में अलग-अलग नियम बताए गए हैं।

1. महिलाओं द्वारा “वटवृक्ष” की परिक्रमा करना सौभाग्य का सूचक है।

2. “शिवजी” की आधी परिक्रमा की जाती है शिव जी की परिक्रमा करने से बुरे खयालात और अनर्गल स्वप्नों का खात्मा होता है। भगवान शिव की परिक्रमा करते समय अभिषेक की धार को न लांघे।

3. “देवी मां” की एक परिक्रमा की जानी चाहिए।

4. “श्रीगणेश जी और हनुमानजी” की तीन परिक्रमा करने का विधान है। गणेश जी की परिक्रमा करने से अपनी सोची हुई कई अतृप्त कामनाओं की तृप्ति होती है गणेशजी के विराट स्वरूप व मंत्र का विधिवत ध्यान करने पर कार्य सिद्ध होने लगते हैं।

5. “भगवान विष्णुजी” एवं उनके सभी अवतारों की चार परिक्रमा करनी चाहिए। विष्णु जी की परिक्रमा करने से हृदय परिपुष्ट और संकल्प ऊजार्वान बनकर सकारात्मक सोच की वृद्धि करते हैं।

6. सूर्य मंदिर की सात परिक्रमा करने से मन पवित्र और आनंद से भर उठता है तथा बुरे और कड़वे विचारों का विनाश होकर श्रेष्ठ विचार पोषित होते हैं। हमें भास्कराय मंत्र का भी उच्चारण करना चाहिए, जो कई रोगों का नाशक है जैसे सूर्य को अर्घ्य देकर “ॐ भास्कराय नम:” का जाप करना।

देवी के मंदिर में महज एक परिक्रमा कर नवार्ण मंत्र का ध्यान जरूरी है। इससे सँजोए गए संकल्प और लक्ष्य सकारात्मक रूप लेते हैं।

परिक्रमा करते समय यह मंत्र पढ़े

यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च।
तानि सवार्णि नश्यन्तु प्रदक्षिणे पदे-पदे।।

इस मंत्र का सरल शब्दों में अर्थ हुआ कि, हे भगवान! जाने अनजाने में मेरे द्वारा किए गए और पूर्वजन्मों के भी सारे पाप इस प्रदक्षिणा के साथ-साथ नष्ट हो जाए। भगावन मुझे अच्छी बुद्धि प्रदान करें।

परिक्रमा के संबंध में नियम

1. परिक्रमा शुरू करने के पश्चात बीच में रुकना नहीं चाहिए। साथ परिक्रमा वहीं खत्म करें जहां से शुरू की गई थी। ध्यान रखें कि परिक्रमा बीच में रोकने से वह पूर्ण नही मानी जाती है।

2. परिक्रमा के दौरान किसी से बातचीत कतई ना करें। जिस देवता की परिक्रमा कर रहे हैं, उनका ही ध्यान करें।

3. उलटी अर्थात बाये हाथ की तरफ परिक्रमा नहीं करनी चाहिये। इस प्रकार देवी-देवताओं की परिक्रमा विधिवत करने से जीवन में हो रही उथल-पुथल व समस्याओं का समाधान सहज ही हो जाता है। इस प्रकार सही परिक्रमा करने से पूर्ण लाभ की प्राप्ति होती है।

गीले कपड़ों में क्यों करनी चाहिए परिक्रमा?

कभी आपने सोचा है कि प्राचीन मंदिरों में कुंआ या कोई जलाशय क्यों होता है? कभी इस बात पर विचार किया है कि हम परिक्रमा क्यों लगाते हैं और यह परिक्रमा एक खास दिशा में ही क्यों होती है? इन सबके पीछे वैज्ञानिक कारण हैं।

प्रदक्षिणा का अर्थ है परिक्रमा करना। उत्तरी गोलार्ध में प्रदक्षिणा घड़ी की सुई की दिशा में की जाती है। इस धरती के उत्तरी गोलार्ध में यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। अगर आप गौर से देखें तो नल की टोंटी खोलने पर पानी हमेशा घड़ी की सुई की दिशा में मुडकर बाहर गिरेगा। अगर आप दक्षिणी गोलार्ध में चले जाएं और वहां नल की टोंटी खोलें तो पानी घड़ी की सुई की उलटी दिशा में मुडकर बाहर गिरेगा। बात सिर्फ पानी की ही नहीं है, पूरा का पूरा ऊर्जा तंत्र इसी तरह काम करता है।

उत्तरी गोलार्ध में अगर कोई शक्ति स्थान है और आप उस स्थान की ऊर्जा को ग्रहण करना चाहते हैं तो आपको घड़ी की सुई की दिशा में उसके चारों ओर परिक्रमा लगानी चाहिए। जब आप घड़ी की सुई की दिशा में घूमते हैं तो आप कुछ खास प्राकृतिक शक्तियों के साथ घूम रहे होते हैं।

कोई भी प्रतिष्ठित स्थान एक भंवर की तरह काम करता है, क्योंकि उसमें एक कंपन होता है और यह अपनी ओर खींचता है। दोनों ही तरीकों से ईश्वरीय शक्ति और हमारे अंतरतम के बीच एक संपर्क स्थापित होता है। घड़ी की सुई की दिशा में किसी प्रतिष्ठित स्थान की परिक्रमा करना इस संभावना को ग्रहण करने का सबसे आसान तरीका है। खासतौर से भूमध्य रेखा से 33 डिग्री अक्षांश तक यह संभावना काफी तीव्र होती है, क्योंकि यही वह जगह है जहां आपको अधिकतम फायदा मिल सकता है।

अगर आप ज्यादा फायदा उठाना चाहते हैं तो आपके बाल गीले होने चाहिए। इसी तरह और ज्यादा फायदा उठाने के लिए आपके कपड़े भी गीले होने चाहिए। अगर आपको इससे भी ज्यादा लाभ उठाना है तो आपको इस स्थान की परिक्रमा नग्न अवस्था में करनी चाहिए। वैसे, गीले कपड़े पहनकर परिक्रमा करना नंगे घूमने से बेहतर है।

इसका कारण यह है कि शरीर बहुत जल्दी सूख जाता है, जबकि कपड़े ज्यादा देर तक गीले रहते हैं। ऐसे में किसी शक्ति स्थान की परिक्रमा गीले कपड़ों में करना सबसे अच्छा है, क्योंकि इस तरह आप उस स्थान की ऊर्जा को सबसे अच्छे तरीके से ग्रहण कर पाएंगे।

यही वजह है कि पहले हर मंदिर में एक जल कुंड जरूर होता था, जिसे आमतौर पर कल्याणी कहा जाता था। ऐसी मान्यता है कि पहले आपको कल्याणी में एक डुबकी लगानी चाहिए और फिर गीले कपड़ों में मंदिर भ्रमण करना चाहिए, जिससे आप उस प्रतिष्ठित जगह की ऊर्जा को सबसे अच्छे तरीके से ग्रहण कर सकें। लेकिन आज ज्यादातर कल्याणी या तो सूख गए हैं या गंदे हो गए हैं।

अलग-अलग तरह की परिक्रमा का महत्व

देव मंदिर परिक्रमा- इस परिक्रमा का मतलब सीधे तौर पर जगन्नाथपुरी, रामेश्वरम, तिरुवन्नमल, तिरुवनन्तपुरम, शक्तिपीठ और ज्योतिर्लिंग आदि की परिक्रमा से जोड़कर देखा जाता है।

देव मूर्ति परिक्रमा. जब हम मंदिरों में जाकर भगवान शिव, देवी दुर्गा, भगवान गणेश, भगवान विष्णु, भगवान हनुमान, इत्यादि मूर्तियों की परिक्रमा करते हैं तो इन्हें देव मूर्ति परिक्रमा कहा जाता है।

नदी परिक्रमा. तीसरी परिक्रमा नदी परिक्रमा होती है जिसे बेहद ही मुश्किल कहा जाता है। इसमें प्रमुख और पावन नदियों जैसे मां नर्मदा, सिंधु नदी, सरस्वती, गंगा, यमुना, सरयू, शिप्रा, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, इत्यादि नदियों की परिक्रमा का विधान बताया गया है। नदियों की परिक्रमा करने वालों को सालों साल पहाड़ों जंगलों आदि से होकर गुजरना पड़ता है। ऐसे में स्वाभाविक है कि यह परिक्रमा बिल्कुल भी आसान नहीं होती है।

पर्वत परिक्रमा. नाम से ही जाहिर है यह परिक्रमा पर्वतों की होती है। क्योंकि भारत देश में पर्वत भी पूजे जाते हैं ऐसे में लोग कई बार पर्वतों की भी परिक्रमा करते हैं। जैसे गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा, गिरनार पर्वत की परिक्रमा, कामदगिरी, मेरु पर्वत, हिमालय, नीलगिरी, तिरुमलै आदि पर्वतों की परिक्रमा।

वृक्ष परिक्रमा. हिंदू धर्म में जो भी वृक्ष या पेड़ पौधे पूजनीय माने जाते हैं लोग उनकी भी परिक्रमा करते हैं और इसे वृक्ष परिक्रमा कहा जाता है। जैसे पीपल के पेड़ की परिक्रमा की जाती है, बरगद के पेड़, तुलसी के पौधे की परिक्रमा की जाती है, इत्यादि। इस परिक्रमा का विशेष महत्व बताया गया है।

तीर्थ परिक्रमा. तीर्थ स्थल वाले शहरों की परिक्रमा को तीर्थ परिक्रमा कहा गया है। जैसे चौरासी कोस की परिक्रमा, अयोध्या, उज्जैन, पंचकोशी प्रयाग यात्रा, इत्यादि।

चार धाम परिक्रमा. हिंदू धर्म के प्रमुख चार धामों की परिक्रमा को चार धाम परिक्रमा कहा जाता है। जैसे छोटी चार धाम की यात्रा जिसमें केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री, और गंगोत्री आते हैं या फिर बड़ी चार धाम की यात्रा जिसमें बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथ और रामेश्वरम की यात्रा करना आता है।

भरतखंड परिक्रमा. जब पूरे भारत की परिक्रमा की जाती है तो इसे भारत खंड परिक्रमा कहते हैं। मुख्य तौर पर संत और साधु यह यात्रा करते हैं। यह यात्रा बेहद ही मुश्किल और चुनौतीपूर्ण होती है। यह सिंधु से शुरू होकर कन्याकुमारी में खत्म होती है।

विवाह परिक्रमा. हिंदू धर्म की शादियों में वर और वधू अग्निकुंड के चारों तरफ सात बार परिक्रमा करते हैं। इसके बाद ही विवाह संपन्न होता है और इसे विवाह परिक्रमा कहा जाता है।

शव परिक्रमा. अंतिम में आता है शव परिक्रमा। इसमें हिंदू धर्म में जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उस व्यक्ति के मृत शरीर की परिक्रमा की जाती है जिसे शव परिक्रमा कहा जाता है।

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