जानने के लिए चला था दांव
कांग्रेस में जाने की इच्छा जताने के बाद हुए विरोध और भविष्य में कमाई पर आने वाली आंच के डर से तुरंत लिया यू टर्न, अब फिर भाजपा के साथ ही
भजन गायक कन्हैया लाल मित्तल बहुत सयाने निकले। अपना राजनीतिक भविष्य तलाशने के लिए उन्होंने कांग्रेस में जाने से पहले इससे होने वाले नफा-नुकसान को जानने के लिए जो दांव चला,उसे बुरी तरह से पिटता देख तुरंत यू टर्न लिया और कांग्रेस में जाने की इच्छा को त्याग दिया,वो भी ऐसे मानो सनातनियों पर अहसास कर रहे हो।
देश में जितने भी कथावाचक और भजन गायक हैं, दरअसल उन्हें पहले अपने धंधे की चिंता है। धंधा यानी कथा और भजन गाने से होने वाली कमाई की। कथा और भजन संध्याओं के आयोजन करने के लिए ये लाखों रुपए लेते हैं। कहते हैं कि कन्हैयालाल भी एक भजन संध्या के 10 से 15 लाख रुपए लेते हैं। बताया जा रहा हैं कि अचानक कांग्रेस में जाने की इच्छा जताने के बाद 2 दिन में ही मित्तल की दर्जनों भजन संध्याएं देश भर में रद्द हो गई। साथ ही उनके लाखों चाहने वालों ने उन्हें सोशल मीडिया पर न सिर्फ अनफॉलो कर दिया, बल्कि जी भर के खरी-खोटी सुनाई।
किसी भी कारोबार की कामयाबी के लिए सोशल मीडिया ही अब सबसे बड़ा हथियार है और मित्तल इसी के जरिए करोड़ों लोगों से जुड़े हुए भी हैं और करोड़ों रुपए कमा भी रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस में जाने की इच्छा जताने पर हुई फजीहत और कमाई पर भविष्य में आने वाली आंच को देखते हुए कन्हैया ने तुरंत मन को काबू में किया और पलटना ही उचित समझा। जब बात कमाई पर आ जाती है, तो अच्छे-अच्छे पलटी मार लेते हैं।
वरना ना तो कन्हैया लाल के कांग्रेस में जाने से सनातन पर कोई आंच आनी थी और ना ही उनके ना जाने और भाजपा के ही साथ रहने से सनातन व भाजपा और मजबूत होनी हैं। सनातन किसी का मोहताज नहीं है। वह सदियों से है और रहेगा। इसके नाम से लोग अलग-अलग लाभ जरूर लेते हैं। कोई वोटों का,कोई पैसों का। सनातन पर किसी राजनीतिक पार्टी का पेटेंट भी नहीं है। लेकिन हमारे देश में कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के नेता समय-समय पर सनातन पर ऐसे बेहूदा बयान देते हैं कि वह खुद-ब-खुद लोगों को सनातन के दुश्मन लगने लगे हैं और जाहिर तौर पर भाजपा इसकी रक्षक। इसे यूं भी हिंदूवादी पार्टी ही माना जाता है।
मित्तल ने अपने पहले वीडियो में कहा था कि हो सकता है मैं कांग्रेस ज्वाइन कंरू। कब करंगा,क्या रहेगा। सबको बताऊंगा। ये कहकर उन्होंने इस बात की थाह लेने की कोशिश की थी, कि ये कहने का असर क्या रहने वाला है? वरना अगर वह सीधे जाकर कांग्रेस ज्वाइन भी कर लेते तो, उन्हें कौन रोक रहा था। जाते और थाम लेते हाथ। लेकिन राजनीति के साथ उन्हें अपने कारोबार को भी देखना था। इसलिए समर्थन-विरोध का स्तर मापना चाहते थे। इस वीडियो के आते ही उनकी आलोचना की आवाज उनके भजनों से भी ज्यादा गूंजने लगी,तो तुरंत पलटने में ही भलाई समझी। पता नहीं मित्तल को यह गलतफहमी कैसे हो गई कि वह अकेले ही भाजपा में रहकर सनातन को मजबूत कर रहे हैं। तो, वह साधु,संत और कथावाचक,जो भाजपा से जुड़े हुए नहीं है, लेकिन अपने धर्म की मजबूती के लिए काम कर रहे हैं। सनातन को मजबूत नहीं कर रहे क्या?
हकीकत ये है कि भाजपा के कारण मित्तल की आर्थिक मजबूती बढ़ रही थी। उत्तर प्रदेश के चुनाव में दो साल पहले जो राम को लाए हैं,हम उनको लाएंगे,गीत से उन्हें देशव्यापी लोकप्रियता मिली थी। इसके बाद वह लोकसभा चुनावों में कई जगह बीजेपी का प्रचार करने गए। उसके नेताओं के साथ मंच पर बैठे। लेकिन फिर भी इससे इंकार कर रहे हैं कि वह भाजपा में हैं और उन्होंने कभी बीजेपी को वोट देने की अपील की है। सवाल ये भी है कि सनातन की सेवा और उसे मजबूत तो वो भाजपा में रहकर भी कर रहे है,तो अचानक हरियाणा चुनाव में भाजपा से क्या तकलीफ हो गई कि उन्हें ये काम कांग्रेस में जाकर करने की याद आई।
जाहिर है, पंचकूला से भाजपा का टिकट नहीं मिलने से हताश और निराशा कन्हैयालाल ने कांग्रेस से टिकट की डील की होगी। लेकिन इससे पहले सोशल मीडिया के जरिए इसका आकलन करना भी जरूरी समझा होगा कि क्या पाला बदला जाए? इसीलिए मित्तल ने यह ड्रामा किया और फिर अपना विरोध देख तुरंत कांग्रेस का रास्ता छोड़ भाजपा की तरफ वापस मुड़ लिए।
विडंबना देखिए, जो मित्तल भाजपा ज्वाइन नहीं करने और उसके लिए कभी वोट नहीं मांगने की बात कह रहे थे। वही अपने माफीनामे वाले वीडियो में कह रहे हैं कि 2 दिन में मुझे पता चला कि मेरे सनातनी भाई और भाजपा का शीर्ष नेतृत्व मुझसे कितना प्यार और चिंता करता है। इसलिए मैं आप सबसे क्षमा चाहता हूं और कांग्रेस ज्वाइन करने वाली अपनी बात को वापस लेता हूं। जब भाजपा में है ही नहीं, तो शीर्ष नेतृत्व चिंता क्यों करेगा?
अब यू टर्न लेने के लिए भाजपा ने क्या चुग्गा डाला, ये भविष्य में ही सामने आएगा। दरअसल,हमारे देश में फिल्मी सितारे,खिलाड़ी, भजन गायक,कथावाचक आदि भरपूर पैसा कमाने के बाद राजनीति में जाने की इच्छा रखते हैं। विधायक-सांसद बनना चाहते हैं। पार्टियां भी इनकी लोकप्रियता भुनाना चाहती है। इसलिए ये सभी किसी न किसी पार्टी से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष के रूप से जुड़े रहते हैं। क्योंकि पिछले 11 साल से केंद्र में भाजपा की सत्ता और कई राज्यों में भी उसी की सरकारें है़, इसलिए इन क्षेत्रों के अधिकांश लोगों ने उसी का दामन थाम रखा है।