बदहाली की कहानी, शहर की जुबानी
ब्रह्मा की नगरी पुष्कर और ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के कारण पूरी दुनिया में मेरी विशेष पहचान है। मैं अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान की राजधानी रहा हूं। मेरे आगोश से निकली कहीं हस्तियों ने देश और दुनिया में नाम कमाया है। लेकिन पिछले काफी समय मैं हैरान हूं,परेशान हूं और अपने ही बच्चों से निराश भी हूं। मेरे रूप-स्वरूप और आंगन को जिस तरह से नष्ट किया गया है,यह उसी का नतीजा है कि इन दिनों बारिश के बाद मेरे अपने ही बच्चे परेशान हैं। मुझे भी एक अभिभावक के नाते इसका बहुत दुख है। कई लोग बेघर या पानी में कैद होकर रह गए हैं। मैं यह कभी नहीं चाहता कि आप परेशान हो,लेकिन क्या कंरू। आपने भी तो मेरी परवाह करना छोड़ दिया। सौंदर्यीकरण के नाम पर मुझे रौंद दिया और स्मार्ट बनाने के चक्कर में मेरा हुलिया बिगाड़ दिया।
मुझे अपने आगोश में आनासागर झील होने का गुमान था। ये अपनी पूरी गहराई और क्षेत्र में मस्ती में लहराती थी। आप में से जो अभी 50 साल के आसपास होंगे,उन्होंने भी मेरे आनासागर का स्वछंद नजारा देखा होगा। आनासागर लिंक रोड से उतर कर वैशाली नगर से रीजनल कालेज के सामने से होते हुए पुष्कर रोड तक इसके पानी को उन्होंने सड़क पर लहराते हुए छुआ होगा। लेकिन आपने इसकी खूबसूरती को बनाए रखने की बजाय इस पर ही कब्जा करना शुरू कर दिया। इसकी छाती पर ही कालोनियां बसा दी गई। चारों तरफ से इसे छोटा करने की साजिश की गई और इसमें भूमाफिया ही नहीं,सरकार की एजेंसियां भी शामिल रही। फिर सरकारी मूर्खता की पराकाष्ठा हुई और स्मार्ट सिटी के नाम पर झील में ही पाथवे और सैवन वंडर्स बनाकर इसे एक चौथाई छोटा कर दिया।
सोलह फीट से तेरह पर ले आए। इसके साथ ही झील में ही होटल, माल, व्यावसायिक काम्पलैक्स, अस्पताल, शोरूम, दुकानें बनाई। तब किसी ने ये नहीं सोचा, जब अच्छी बरसात होगी और ये भरेगा, तो उस एक चौथाई हिस्से का पानी कहां जाएगा? झील भी क्या करेगी, वह तो कब्जाए क्षेत्र को अपना ही समझती रही और इस बार पानी आया तो वह तो अपनी हद में ही फैली। लेकिन कब्जों के कारण पानी कैसे समेटती, इसलिए पानी आपके घरों, मौहल्लों, रास्तों में आ गया।
आनासागर के साथ ही फायसागर और बांडी नदी को भी आप लोगों ने कहां बख्शा। बांडी नदी की छाती पर तो पत्थरों के जंगल ही उगा दिया। इतनी कालोनियां बसा दी कि एक बार में तो उनके नाम तक कोई नहीं बता सकता। तब सरकारी एजेंसियों को जमीन के सौदागर नहीं दिखे। क्यों एग्रीकल्चर लैंड को भी नहीं छोड़ा। बांडी भी क्या करती, उसे क्या पता वह रास्ते में कई जगह नाले,तो कई जगह नाली में बदल चुकी है। वह तो अपने नाम की तरह नदी की तरह बही, लेकिन नाले-नालियों के कारण क्या करती अपना रास्ता ढूंढती हुई कालोनियों,घरों में घुसकर जम गई।
शहर में पानी भर जाने के कारण जब मुख्य रास्ते बंद हो जाते हैं, तो जैसे आप लोगों को गलियों से आगे बढ़ने में परेशानी आती है और जाम लग जाता है। वैसे ही झील-नदी को भी तो बहने के लिए उसका मुख्य रास्ता चाहिए। छोटे रास्ते होंगे,तो पानी का भी जाम ही लगेगा। कभी मेरे बाजार कितने खुले खुले और चौडे़ होते थे। लेकिन कितने ही सालों से व्यापारी क्या कर रहे हैं? दुकानों को आगे बढ़ा रहे और सामने से निकलने वाले नालों को बंद करा उस पर निर्माण कराते हैं। फुटपाथ भी पता नहीं कौन खा गया। मैं देखता हूं बरसात में पानी को बहने के लिए उसे बाजारों में नाले तो क्या, नालियां तक नहीं मिलती। ऐसे में वो सड़कों से बहते हुए शहर के हर इलाके को बेचैन कर देता है। फिर बुद्धिजीवियों के शहर के लोगों की बुद्धि देखिए। अपने घरों के बाहर बनी नालियों पर रैंप बनाकर उन्हें बंद कर दिया है। जब नालियां नहीं रहेंगी, तो बारिश का पानी कॉलोनी में ही तो भरेगा। गलती करोगे,तो सजा भी भुगतनी होगी।
शिकायत मुझे शहर के नेताओं से भी है। मैं पाटीर्बाजी में नहीं उलझना चाहता। हकीकत यही है कि चाहे बीजेपी के नेता हो या कांग्रेस के, उन्होंने मुझसे कभी मौहब्बत की ही नहीं। सभी अपने-अपने स्वार्थ की राजनीति करते गए और मेरे साथ खिलवाड़। स्मार्ट सिटी के नाम पर डेढ़ हजार करोड़ रुपए फूंक दिए गए। लेकिन तब कभी भी किसी भी पार्टी के नेता ने इन घटिया और फालतू के कामों पर ना ध्यान दिया,ना निगरानी की। मेरे सीने पर एलिवेटेड रोड के नाम का ऐसा छुरा घोंप दिया गया, जिसने मेरी सुंदरता को ही लील लिया। ना कभी सत्ता पक्ष नेताओं ने मुझे संवारने की कोशिश की और ना ही कभी विपक्ष के नेताओं ने मुझे उजड़ते देख उसका विरोध किया।
राज में जो भी रहा, सत्ता के दलालों से घिरा हुआ दिखा। जिन्होंने खुद भी खाया और इन्हें भी खिलाया। क्या शहर में अवैध कॉलोनियों,नियम विरुद्ध कामर्शियल काम्पलैक्स, नालों पर दुकानें, गलियों में होटल बिना मिलीभगत से बन सकते हैं? कभी नहीं। इस मिलीभगत ने मुझे बर्बाद कर दिया। अफसर भी मेरी बबार्दी के बड़े गुनहगार है। लेकिन मैं उन्हें ज्यादा दोष इसलिए नहीं देता हूं,क्योंकि आज के सिस्टम में कोई भी अधिकारी,नेताओं के संरक्षण के बिना कोई काम नहीं करते,जो उनकी मर्जी और पसंद का ना हो। आखिर नियुक्ति और तबादले भी तो नेताओं की सिफारिश पर ही होते हैं। इसलिए ये इनके इशारों पर ही चलते, फिरते,उठते,बैठते हैं। रीढ़ की हड्डी वाले अफसर अब सिस्टम से लगभग खत्म हो चुके हैं। नेताओं,अफसरों और दलालों का गठजोड़ हमेशा से मेरी आंखों के सामने रहा है और मेरी बरबादी की कहानी लिखता रहा है।
मेरे साथ खिलवाड़ का नतीजा आप देख रहे हैं। इसलिए अब खुद भी संभलिए और मुझे भी संभालिए। आम लोग ही मेरे प्राण हैं। उन्हें अब खामोशी तोड़नी होगी। गलत को गलत कहने की हिम्मत करनी होगी। अपनी मुट्ठियां तान लीजिए और विरोध करना सीखिए। मुझ पर से रिटायर्ड और टायर्ड लोगों के शहर होने का ठप्पा हटाइए। नेता,विधायक, मंत्री आज हैं,कल नहीं रहेंगे। अफसर भी आते-जाते रहेंगे। स्थाई रूप से आप और आपके बच्चों को रहना है। आपकी पीढियां मेरा नाम सम्मान और गर्व के साथ ले,इसे सुनिश्चित करिए। कहने-लिखने को बहुत है,लेकिन फिर कभी और बात करेंगे।