शिक्षक दिवस पर विशेष

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काश ! मैं भी सम्मानित हो पाता

कल मेरी मुलाकात मेरे एक शिक्षक मित्र अरविन्द तिवारी जी से हुईं। उन्होंने बताया कि आज शिक्षक दिवस है। उन्होंने जो जो बताया वह सब कुछ तो नहीं लिख सकता मगर उनका दर्द बयां जरूर करना चाहूंगा। यह उनको समर्पित मेरा स्पेशल ब्लॉग है।

फिर आ गया शिक्षक दिवस! शिक्षकों के प्रति आभासी प्रेम का इजहार करता हुआ। हर साल आता है। जब आता है तब तब शिक्षकों की महिमा मंडन करता है। शिक्षकों के लिए यह “मिड डे मील” की तरह है उनके कुपोषण पर चर्चा होती है, और उम्मीद की जाती है कि शिक्षक अभाव में रहकर देश का निर्माण करेगा। करता भी है। इसमें कोई शक नहीं, पर उसकी हैसियत समाज में कितनी है? यह किसी से छुपा नहीं। हम उम्र भर शिक्षक रहे पर ऐसे शिक्षक रहे कि गर्व करने लायक कुछ भी नहीं! अब तो परिवार वालों को भी यकीन नहीं होता कि हम कभी शिक्षक रहे थे।

कल एक संस्था वाले आए थे हमारा सम्मान करना चाहते थे। इस शिक्षक दिवस पर। लेकिन बेटे ने उन्हें यह कहकर चलता कर दिया कि हम शिक्षक नहीं रहे बल्कि शिक्षा विभाग में कर्मचारी रहे। पिछले साल भी सम्मान टल गया था। संस्था वालों ने पूछा था आपसे पड़े छात्र क्या-क्या बन गए? हम क्या बताते? क्योंकि कोई कुछ बना ही नहीं। एक छात्र की जानकारी थी जो किसी प्राइवेट बस में हेल्पर हो गया था। हमने बता दिया तो हमारा नाम सम्मान सूची से गायब हो गया।

सम्मान के लिए आवश्यक योग्यता है कि आपके चेले या तो सियासत में हों या इलाके के गुंडे हों! हम ऐसा एक भी चेला तैयार नहीं कर पाए! लानत है हम पर! हम एक ऐसा चेला भी तैयार नहीं कर पाए जिसका नाम लेने भर से समाज में प्रतिष्ठा हो जाती! वे शिक्षक जिनके चेले मारधाड़ में पारंगत थे, राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित हो चुके हैं। जिस चेले ने अपने शिक्षक को भरी स्कूल में कई बार पीटा था। इस चेले ने उन्हें बड़ा नेता बनकर, राष्ट्रीय पुरस्कार दिलवा दिया। एक अन्य शिक्षक का चेला गैंगस्टर हो गया। एक का कोई बड़ा नेता। दोनों गुरु रातों-रात मशहूर हो गए। दूध वाले से लेकर सब्जी वाला तक उन्हें फ्री में सौदा देता है। समाज में उनकी बात बड़े ध्यान से सुनी जाती है।

हम शिक्षक काल के दौरान शिष्य से पर्याप्त दूरी बनाए रखते थे। यही कारण था कि कोई शिष्य आज हमसे नमस्कार तक नहीं करता। दो शरारती चेलों से हमें उम्मीद थी कि वह हमारा नाम रोशन करेंगे पर हाय री किस्मत एक सरिए का व्यापारी तो दूसरा गुड का व्यापारी हो गया। आदर्श शिक्षक बनने के चक्कर में हमने अपने लिए ही कांटे बो दिए। इस राष्ट्र को अब ऐसे शिक्षकों की आवश्यकता नहीं । अब तो वह शिक्षक चाहिए जो अपने चेलों को नकल कराए! पेपर लीककर दे! पास होने का शॉर्टकट बताए। ट्यूशन करे! मैं अपने शिक्षक चरित्र से तंग आ गया हूं! काश! मेरा कोई शिष्य किसी घोटाले में पकड़ा जाता तो मेरा शिक्षक होना सार्थक हो जाता। व्यवहारिक जीवन में आदर्श शिक्षक का कोई स्थान नहीं है। आदर्श शिक्षक किसी टीटी की सहायता से ट्रेन के ए सी कोच में यात्रा नहीं कर सकता।

आदर्श शिक्षक का पेट पारदर्शी होता है। बेईमानी का एक दाना भी उसके पेट में चला जाए तो दूर से दिखाई देता है। आदर्श शिक्षक बेईमान नागरिकों का निर्माण नहीं कर सकता जबकि आज देश को बेईमान नागरिकों की सख्त जरूरत है।

कुछ दिनों पहले पुलिस ने प्रेम कुमार नाम के एक व्यक्ति को लड़की भगाने के आरोप में गिरफ्तार किया! मुझे कुछ उम्मीद जागी क्योंकि हमारा एक शिष्य का नाम प्रेम कुमार ही था! मेरा मन उम्मीदों से भर गया। चलो एक शिष्य तो नाम उजागर करने वाला मिला। मैं थाने चला गया पर हवालात में बंद प्रेम कुमार ने मुझे पहचानने से इनकार कर दिया। अब मुझे प्रतिष्ठा बचाने के लिए किसी झूठ का सहारा लेना होगा। कोई गुंडा पकड़ा जाएगा तो ऐलान करूंगा कि मैंने 12वीं कक्षा तक उसे पढ़ाया था। वह मुझे भूल गया है पर मैं उसे नहीं भुला पाया हूँ। देश में न सही पर अपने मोहल्ले में तो मुझे सम्मान मिलना ही चाहिए।

सुरेंद्र चतुर्वेदी

सुरेन्द्र चतुर्वेदी की साहित्य की कई विधाओं में पचास के करीब पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं | फिल्मी दुनिया से भी सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी का गहरा जुड़ाव रहा है ,जिसके चलते उन्होंने लाहौर, तेरा क्या होगा जानी, कुछ लोग, अनवर, कहीं नहीं, नूरजहां और अन्य तमाम फिल्मों में गीत लिखे, पटकथा लिखीं. पंजाबी, हिंदी, उर्दू आदि कई भाषाओं पर अधिकार रखने वाले सुरेन्द्र चतुर्वेदी अपने ऊपर सूफी प्रभावों के कारण धीरे-धीरे सूफी सुरेन्द्र चतुर्वेदी के रूप में पहचाने जाने लगे. यों तो उन्होंने अनेक विधाएं आजमाईं पर ग़ज़ल में उनकी शख्सि‍यत परवान चढ़ी. आज वे किसी भी मुशायरे की कामयाबी की वजह माने जाते हैं.उनकी शायरी को नीरज, गुलज़ार, मुनव्वर राणा जैसे शायरों ने मुक्तकंठ से सराहा है. गुल़जार साहब ने तो जैसे उन्हें अपने हृदय में पनाह दी है. वे राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा विशिष्ट साहित्यकार सम्मान एवं अन्य कई सम्मानों से नवाजे गए हैं | कानपुर विश्वविद्यालय से मानद डाक्टरेट की उपाधि से विभूषित चतुर्वेदी इन दिनों अजमेर में रह रहे हैं |

चौथी कक्षा में जिंदगी की पहली कविता लिखी | कॉलेज़ तक आते-आते लेख और कविताएं तत्कालीन पत्र पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित होने लगीं. जैसे धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, सरिता, दिनमान, सारिका, इंडिया टुडे आदि |

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