रूसवा मत होना, हर बदइंतजामी से कुछ तो इससे भी इंतजाम हो ही जाते हैं

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अजमेर की टूटी सड़कों और उन पर बने गाय के बाड़े का सकारात्मक पक्ष भी है। आप पूछेंगे, वो क्या? तो देखिए, इनके कारण अजमेर में दुपहिया वाहनों के टकराने से होने वाली छोटी-मोटी सड़क दुर्घटनाएं बहुत कम हो गई है। क्योंकि गड्ढों से बचते हुए दोपहिया वाहनों को साइकिल से भी धीमी रफ्तार रखनी पड़ती है। कई बार तो सड़कों पर साइकिल वाले ही वाहन चालकों को ओवरटेक कर उन्हें चिढ़ाते हुए आगे निकल जाते हैं। क्योंकि जल्दबाजी की और तेज वाहन चलाने की हिमाकत की, लेकिन चूक गए, तो फिर गिरने से अब हाथ पैर नहीं टूट रहे, सीधे यमराज का बुलावा ही आ रहा है। ऐसे हादसे शहर में हो भी चुके हैं। शहर में कहीं सड़कें तो इतनी ज्यादा छलनी है कि उन पर तो पैदल चलने वाले ही वाहन चालकों से तेज चलते हुए नजर आते हैं।

मुख्य सड़कों पर जगह-जगह गायों का जमावड़ा शहर में अघोषित स्पीड ब्रेकर का काम कर रहा है,क्योंकि इनके कारण दुपहिया और चारपहिया वाहन चालकों को रफ्तार नियंत्रण में रखनी पड़ रही है। पता नहीं कब आगे गाय बैठी मिल जाए या भागते हुए रोड क्रॉस कर आपको ले बैठे। आप देख लीजिए, इन दिनों शहर में बाइक सवार तेज रफ्तार में बाइक उडा़ते नजर नहीं आते। कार चालक भी टॉप गियर लगाना भूल चुके हैं।

एक फायदा ये भी है कि जिन चौराहों पर लाखों रूपए खर्च कर ट्रैफिक लाइटें लगाने के बाद भी जो प्रशासनिक कुशलता के कारण जल नहीं रही हैं,वहां भी अभी यातायात सुव्यवस्थित है। गड्ढे और गाय यातायात पुलिस से भी बेहतर तरीके से ट्रैफिक कंट्रोल किए हुए है। वाहन चालक चौराहे पर लाल बत्ती देख भले ही ना रूके, लेकिन गाय और गड्ढो़ का कोम्बोपैक देखकर उसे घबराकर रूकना ही पड़ता है। ये कोम्बोपैक यातायात पुलिस में स्टाफ की कमी भी पूरा कर रहा है। वैसे भी जो यातायात पुलिस ड्यूटी पर रहती भी है, उसके पास ट्रैफिक कंट्रोल करने के अलावा कई काम है। जैसे बिना हेलमेट पहने वाहन चलाने वाले चालकों को पकड़ना। दूसरे राज्यों के नम्बर वाले चौपहिया वाहनों पर झपटना। इन कामों से सरकारी और व्यक्तिगत दोनों राजस्व में वृद्धि होती है।

मेरा तो प्रशासन को सुझाव है कि जिन मुख्य सड़कों पर यातायात बेलगाम है और लोग तेज रफ्तार से वाहन चलाते हैं,वहां पर स्थाई रूप से थोड़ी-थोड़ी दूरी पर गड्ढे कर इनमें थोड़ा-थोड़ा पानी भर देना चाहिए। ताकि ओवरस्पीड पर अंकुश लगाया जा सके। इसका एक फायदा यह भी होगा कि हर बरसात में सड़कों पर पानी भरे गड्ढे देखकर चिकचिक करने वाले लोग साल भर इन्हें देखेंगे,तो इनके आदतन हो जाएंगे और नेताओं और अफसरों को कोसेंगे नहीं, बल्कि इसे सरकारी व्यवस्था का हिस्सा मान लेंगे। साथ ही जिन चौराहों पर अभी ट्रैफिक लाइट है या ट्रैफिक पुलिस के जवान नहीं रहते, वहां चारों तरफ कुछ आवारा गाएं छोड़ दी जाए, ताकि अपने आप ट्रैफिक नियंत्रित हो सके। चाहे तो घोड़ों की तरह पुलिस गाय भी पाल सकती है और घुड़सवार दस्ते की तरह गाय दस्ता भी बनाया जा सकता है। गायों से सुबह-शाम दूध दुहकर उन्हें चौराहों पर छोड़ दिया जाए। यानी आम के आम,गुठलियों के भी दाम। अभी पशुपालक भी तो इसी फामूर्ले पर काम कर रहे हैं।

टूटी सड़कों के कारण वाहन मैकैनिकों को अतिरिक्त काम मिलता है। एक मैकेनिक बता रहा था कि बारिश के दो महीनों में काम चार गुना बढ़ जाता है। बारिश में शहर की अधिकांश सड़कें नदी-नाले बन जाती है। इस कारण इनमें से गुजरने वाले वाहन बंद हो जाते। इन्हें स्टार्ट करने में पांच-सात मिनट लगते हैं। लेकिन हम पैसे मुंहमांगे लेते हैं। बारिश में फंसा वाहन चालक बिना झिकझिक जेब ढीली कर देता है। इसलिए हमेशा टूटी सड़कों, गड्ढों, गायों की मौजूदगी को हमेशा कोसिए मत, इसके फायदे भी देखिए।

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