पुष्कर नगर पालिका! अबोध बालिका हुई बालिग
सुरेश रावत ने कमल पाठक को बना दिया साहब
किसी फिल्म का एक गाना है। “साला मैं तो साहब बन गया! साब बनकर ऐसा ठन गया! जैसे छोरा हो कोई लंदन का।” किशोर कुमार की आवाज में गाया यह गाना बड़ा लोकप्रिय हुआ था। आजकल यही गाना तीर्थराज पुष्कर में गाया जा रहा है। नगर पालिका नगर परिषद में तब्दील कर दी गई है। कैबिनेट मंत्री सुरेश रावत ने अपने सियासती दबदबे को कायम रखते हुए यह महत्वपूर्ण फैसला सरकार से करवा लिया है। निश्चित रूप से यह फैसला उनके राजनीतिक कद को ऊंचाई देगा । पालिका अध्यक्ष कमल पाठक पुष्कर के पहले सभापति हो गए हैं। इच्छाधारी साहब बन गए हैं। उम्मीद की जाती है कि इस नई भूमिका में उनके लिए नया बजट भी आवंटित होगा और उसे ठिकाने लगाने में भी सभापति महोदय को पर्याप्त अवसर मिलेंगे।
सुरेश रावत के व्यक्तिगत प्रयासों से नगर पालिका से नगर परिषद की तब्दीली हो सकता है सियासाती तौर पर बहुत बड़ा फैसला हो मगर असलियत यही है कि जब तक सुरेश रावत अपना ध्यान तीर्थ गुरु पर केंद्रित नहीं करेंगे तब तक पुष्कर की पौराणिकता! उसकी आध्यात्मिकता ! उसकी पवित्रता! उसकी मयार्दा! पर इस तब्दीली से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। वह तो जिस तरह पहले क्रमबद्ध तरीके से रसातल में जाती रही आगे भी जाती रहेगी।
आजादी के बाद पुष्कर राज का कितना और कैसा विकास हुआ? यह पुष्कर के किसी भी बुजुर्ग तीर्थ पुरोहित से पूछा जा सकता है। पचास साल पहले का पुष्कर आज विकास के बाद कितना विकसित हो गया है? यह पुष्कर का हर निवासी जानता है।
पचास साल पहले पुष्कर सरोवर की पवित्रता! उसका जल कैसा था आज कैसा है? पहले डूब क्षेत्र का क्या हाल था? आज क्या है? कैसा हो गया है? पहले पुष्कर सरोवर के किनारे बने होटल कितने थे? आज कितने हैं? पहले सरोवर में सचमुच के कमल खिलते थे आज कमल पाठक खिले हुए हैं। असली कमल तो गए गुजरे दिनों की बात हो चुकी है।
मित्रों! नगर पालिका या नगर परिषद तो पुष्कर में गए कुछ वर्षों में ही पैदा हुए हैं। इससे पहले पुष्कर का जितना विकास हुआ वह विकास तो तीर्थ गुरु पुष्कर राज के पौराणिक महत्व को बनाए रखने के साथ हुआ था।
यहां पुष्कर की नई पीढ़ी को बता दूं कि वर्ष 1983 से 1994 तक पुष्कर में नगर पालिका नाम की कोई चिड़िया दाने नहीं चुगा करती थी। यहां नोटिफाइड एरिया कमेटी हुआ करती थी ! यहाँ पुष्कर सरोवर स्वछता सौंदर्यीकरण मयार्दा उप समिति हुआ करती थी। इससे पहले 1972 में पुष्कर तीर्थ विकास बोर्ड हुआ करता था। तत्कालीन मुख्यमंत्री बरकतुल्लाह खान इस बोर्ड के अध्यक्ष थे और जिला कलेक्टर सेक्रेटरी हुआ करते थे। पुष्कर के विकास को संतुलित करने के लिए राज्य के बड़े-बड़े चीफ इंजीनियर इसके सदस्य हुआ करते थे । इन सभी संस्थाओं के कार्यकाल में पुष्कर का जो विकास हुआ वह आज अकल्पनीय है। उनके समय में कभी सरोवर का पानी नहीं सूखा। कभी सरोवर में काई नहीं जमी। कभी किसी मछली ने गंदे पानी में आत्महत्या नहीं की। कभी ब्रह्मा जी के मंदिर पर सरकार का कब्जा नहीं रहा। कभी किसी तीर्थ पुरोहित की भावना को ठेस नहीं पहुंची। कभी सरोवर को गंदे नालों के पानी ने नहीं छुआ। कभी डूब क्षेत्र में कंक्रीट का जंगल नहीं उगा। कभी बारिश की गंदगी सरोवर में नहाने नहीं उतरी।
यह सारी नौबत नगर पालिका बनने के बाद ही आई। हो सकता है मेरी कलम कहीं बहक गई हो मगर पुष्कर वासी मेरी इस बात से इंकार नहीं करेंगे कि आज पुष्कर की जो दुर्दशा हो चुकी है उसकी कल्पना किसी बुद्धिजीवी नागरिक ने 50 साल पहले सपनों में भी नहीं की होगी।
विधायक चाहे प्रभा जी रही हों! चाहे रमजान खान रहे हों! चाहे मल्होत्रा जी रही हों! नसीम अख्तर रही हों या कोई और! सभी के कार्यकाल में पुष्कर की पौराणिकता पर हमले होते रहे! विकास की आड़ में जमीनें बेची गयीं। पुष्कर को धार्मिक नगरी की जगह मैरिज नगरी बना दिया गया। लोग पूजा पाठ की जगह हनीमून मनाने पुष्कर आने लगे। पुष्कर होटल व्यवसाय और भूमाफियाओं की पहली पसंद हो गया। जांच हो तो पता चले कि किस सांसद! किस विधायक! किस आई ए एस और आई पी एस अधिकारी? और किन अन्य अफसरों की कितनी बेशकीमती जमीनें पुष्कर क्षेत्र में कब्जे में हैं। बड़ों की तो छोड़ो छोटे मोटे अधिकारियों की भी यहाँ करोड़ों की जमीनें हैं। पुष्कर में तैनात होने वाला शायद ही कोई अधिकारी हो जिसने जम कर पैसा न बनाया हो। आज धर्मगुरु पुष्कर नशे के कारोबार का स्वर्ग बन चुका है।
आज जबकि नगर पालिका! 16 साल की बालिका! नगर परिषद बनाकर बालिग कर दी गई है, इसके सामने कई चुनौतियां हैं। समय और स्थान अभाव के कारण मैं ज्यादा नहीं बता रहा। शीघ्र ही पुष्कर की चुनौतियों पर भी मेरी कलम चलेगी।