जब अजमेर चीख रहा था आप हंस रहे थे

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अब अजमेर हंस रहा है आप चीखिए

कुछ नहीं होगा इस अजमेर का! रांडे रोती रहेंगी पांवड़े जीमते रहेंगे राजस्थान का सबसे बेकार शहर अजमेर! बदहाली के आंसू बहाता रहेगा। संसार में सबसे थके हरे लोग अजमेर में रहते हैं सारी दुनिया घूम कर अजमेर देखने वाले लोगों का कहना है कि अजमेर विश्व का सबसे दुखियारा शहर है यहां के लोग मरने के बाद स्वर्ग या नरक कहां जाएंगे मुझे नहीं पता मगर यह जानता हूं कि यदि वह नर्क गए तो वह भी उन्हें स्वर्ग जैसा लगेगा। क्योंकि नर्क के हाल भी इतने खराब नहीं होंगे जितने अजमेर शहर के हैं!

मूलभूत सुविधाएं तो दूर यहां तो इंसान रास्ते में चलता हुआ कब खड्डे में गिर कर मर जाए यह भी पता नहीं। पिछले एक महीने में दो लोग तो सड़कों के खड्डों में डूब कर मर चुके हैं। यहां तो लोग नालों में नहाते हुए भी मर जाते हैं।

कमाल का शहर है मेरा अजमेर मुझे तो शर्म आती है इस शहर को ऐतिहासिक कहते हुए! सम्राट पृथ्वीराज ने इस शहर को क्या सोचकर अपने साम्राज्य की राजधानी बनाया? मुझे नहीं पता! परमपिता ब्रह्मा जी ने क्या सोचकर इस नगर के उपनगर पुष्कर में जाकर तपस्या की मैं नहीं समझ पाया। मैं नहीं समझ पाया कि क्यों सूफी संत मोइनुद्दीन चिश्ती ने अजमेर आकर सजदे में सर झुकाया और इंसानियत के हक में बयान दिए।

यह शहर तो किसी हाल में इंसानों के रहने लायक नहीं बचा है। इस अनाथ और बेसहारा शहर के लोग आखिर किन पापों की सजा भुगत रहे हैं क्या मुझे कोई बता सकता है?

सरकार! प्रशासन! राजनेता! विकास प्राधिकरण! नगर निगम! कोर्ट कचहरी! सभी महकमों के दफ़्तर इस शहर की छाती पर मूंग दलने के लिए तैनात हैं। विकास के नाम पर अनाप शनाप धन भी खर्च किया जा रहा है मगर बावजूद इसके शहर को लकवा मारा हुआ है।

कोई भी शहर तब शहर कहलाता है जब वहां गंदगी ना हो! सड़के नालियां हों! पानी की कोई किल्लत ना हो! बिजली का कोई झंझट न हो! अस्पताल समृद्ध हों! शिक्षा के लिए शहर में समर्थ शिक्षण संस्थाएं हों! रहने को विकसित कालोनियां हों! मनोरंजन के साधन हों! सुगम यातायात हो! बाग बगीचे हों! स्वस्थ नागरिक और प्रबुद्ध नेता हों! जिÞम्मेदार निगम हो! यहां तो इनमें से कुछ भी उपलब्ध नहीं ! फिर हम कौन से शहर में रह रहे हैं?

इससे बेहतर तो जंगलों में रहना है जहां कम से कम अभाव भले ही हों मगर सांस लेने की सहूलियत तो हो।

अजमेर शहर भले ही अपने इतिहास पर गर्व करता रहे लेकिन अपने वर्तमान पर तो उसे शमिंर्दा ही होना पड़ेगा! शिक्षा, साहित्य, खेल, संगीत, कला, इन सब की परिकल्पना तो दूर की बात ! यहां तो सड़कों पर चलना और घरों में रहना भी सुरक्षित नहीं।

इस शहर को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए अरबों रुपया खर्च किया गया मगर किसी समझदार इंजीनियर ने इसके विकास को जरूरत के अनुसार योजना बद्ध नहीं किया! गैर जरूरी सारे काम, जिसमें जमकर पैसा खाया जा सकता था पूरे किए गए ! इलायची बाई के शहर अजमेर के राजनीतिक हिस्सेदार यह सब होता देखते रहे! जागरूक संस्थाएं तालियां बजाती रहीं! तथाकथित प्रबुद्ध इलायची बाई के जयकारे लगाते रहे!

मित्रों मैं तब भी चीख रहा था। लोगों को आने वाले संकट से आगाह कर रहा था! जनप्रतिनिधियों को कोस रहा था! नागरिकों को जगा रहा था! मगर मेरी आवाज मेरे ही गले में घुट कर मरती रही।

सीमेंट और कंकरीट के जंगल उगाए जाते रहे। नगर निगम के तत्कालीन मेयर ने आना सागर की भराव क्षमता को 16 से 13 फीट तक पहुंचा दिया। माफियाओ द्वारा मोटी रकम बतौर रिश्वत के देकर पहले तो निगम को खरीदा गया फिर भू माफिया, झील माफिया, प्रशासनिक कारिंदो, राजनीतिक करिंदो सबने एक गिरोह बनाकर झील के डूब क्षेत्र की जमीनों को खरीदा बेचा जाता रहा। डूब क्षेत्र की जमीन पर होटल और मॉल्स बनाए जाते रहे। भू माफियाओ ने एक कद्दावर निकम्मे नेता को अपने साथ लेकर विकास के नाम पर आनासागर में लाखों टन मलबा मिट्टी डलवा कर कृत्रिम जमीन बना डाली और उसपर व्यावसायिक गतिविधियाँ संचालित की जाने लगी। वेटलैंड पर अजूबे खड़े कर दिए गए ! कुछ निक्कमे लोगों की जिÞद पर एलिवेटेड रोड्स बना दी गईं।

……लेकिन प्यास बुझाने के लिए स्टोरेज नहीं बनाए गए। गंदे पानी की निकासी के लिए अलग से कोई ड्रेनेज सिस्टम विकसित नहीं किया! आनासागर के पानी को ब्लू वाटर बनाने के लिए कोई योजना नहीं बनाई गई! यातायात के लिए मजबूत सड़कों का निर्माण नहीं हुआ! स्वच्छ आबो हवा के लिए नए बाग बगीचे विकसित नहीं किए गए। बल्कि जो बगीचे पहले से थे उन पर भी सीमेंट की इमारतें उगा दी गईं। एस्केप चैनल को चौपाटी बना दिया गया। शहर के परम्परागत नालों पर निर्माण की बाढ़ आ गई।

जो सलूक हमने इस अनाथ शहर के साथ किया वह कलकत्ते की उस महिला डॉक्टर के साथ किए गए बलात्कार जैसा ही है जिसकी हवस पूरी होने के बाद उसकी निर्मम हत्या कर दी गई।

सच कह रहा हूँ दोस्तों ! उस वक्त जब यह सब हो रहा था आप नहीं चीख रहे थे अजमेर चीख रहा था! अब अजमेर हंस रहा है आप चीख रहे हैं। यूँ ही चीखते रहिए! चिल्लाते रहिए! चीरहरण की इस वेला में आपकी मदद करने कोई कृष्ण नहीं आएगा। धर्मयुद्ध में गाण्डीव खुद को उठाना पड़ता है हे अर्जुन!

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