राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अब अपना! भारतीय जनता पार्टी का! और हिंदुओं का भविष्य! सुनिश्चित करने का अंतिम निर्णय लेने को तैयार है। केरल के पलक्कड़ में 31 अगस्त से तीन दिवसीय मंथन बैठक शुरू हो चुकी है। इसमें संघ के 32 सहयोगी संगठन हिस्सा ले रहे हैं। बैठक में संघ का शायद ही कोई पदाधिकारी हो जो शामिल नहीं हो रहा हो।
समन्वय बैठक भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा के उस बयान के बाद पहली बार हो रही है जिसमें उन्होंने कहा था कि भारतीय जनता पार्टी को संघ की कोई जरूरत नहीं। पार्टी के लिए उसका वजूद प्रासंगिक नहीं रहा है।
संघ की यह बैठक बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे भयंकर अत्याचार के बाद भी पहली बार हो रही है।
यह बैठक लोकसभा चुनाव में भाजपा की 400 पार की घोषणा फेल होने के बाद भी पहली बार हो रही है।
बैठक भाजपा शासित राज्यों में संघ और संगठन और सरकार के बीच दरके हुए रिश्तों के बाद भी पहली बार हो रही है।
कुल मिलाकर गुजराती भाइयों की तानाशाही और अहंकारी प्रवृत्ति को ठिकाने लगाने के लिए यह बैठक आहूत की जा रही है। उम्मीद की जा रही है कि यह बैठक देश की सियासत को नया रास्ता दिखाएगी और सत्ता को बताएगी कि संघ के बिना भाजपा का दम्भ कितना नकली है?
गुजराती गलतफहमियों के विरुद्ध यह बैठक बेहद आक्रामक रूप इख्तियार करने वाली है। कहने को इस बैठक में भाजपा के संगठन मंत्री बी एल संतोष भी पहुंच चुके हैं मगर उनकी भूमिका दिल्ली के पक्ष में कोई पैरवी करने वाली नहीं होगी।
इस बैठक पर देश भर के सियासती धुरंधरों की नजर टिकी हुई है, क्योंकि बैठक में मोदी और शाह के भविष्य का भी फैसला होना है।
मानकर चला जा रहा है कि संघ प्रमुख मोहन भागवत इन दोनों गुजराती नेताओं से बहुत तपे हुए हैं। संघ का नड्डा द्वारा करवाया गया निरादर उनको किंचित भी सहन नहीं हुआ है और इस बार संघ यह तय कर देगा कि किसको किसकी जरूरत है, किसको नहीं। संघ के बिना यदि भाजपा जीवित रह सकती है तो संघ पार्टी के लिए कोई नया फैसला भी ले सकता है।
फिलहाल शुरू हुई बैठक में आर एस एस के सभी दिग्गज नेताओं ने भाजपा को तो अविभाजित रखने का मानस बना रखा है मगर कुछ अहंकारी नेताओं की नाक में नकेल डालने का भी फैसला ले रखा है।
यह तय है कि भाजपा का कोई भी नेता सर उठाकर नड्डा की तरह बयान देने की हिम्मत आगे नहीं जुटा पाएगा।
भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष इसी बैठक में से निकलकर सामने आएगा।
बांग्लादेश में मंदिरों को जलाने और हिंदुओं के साथ होने वाले अत्याचारों पर भी दो टूक फैसला सरकार को सुनाया जाएगा।
उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान के उपचुनावों पर भी संघ का दखल बरकरार रखने के निर्देश भी जारी होंगे। केरल में संघ और भाजपा के शक्ति संपन्न होने के उपायों पर भी विचार होगा।
संघ केवल भाजपा के पुनर्गठन पर ही विचार नहीं करेगा बल्कि संघ के अंदर पनप रही बादशाही प्रवृत्तियों पर भी अंकुश लगाने पर विचार करेगा। भाजपा शासित राज्यों में सत्ता के संगठन महासचिवों की पांच सितारा कार्यशैली पर भी सख़्ती से विचार किया जाएगा। ऐसे पदाधिकारी जो सत्ता के मोह में अय्याशी का शिकार होकर ऐशो आराम के तलबगार हो गए उन्हें भी नसीहत दी जाएगी।
कुल मिलाकर सार ये है कि संघ इस बार इस बैठक में कई ऐसे ठोस निर्णय लेने जा रहा है जिसकी कल्पना हम आप या कोई और नहीं कर सकता।