राजनेता! पुलिस! और प्रशासन भी कड़ी होते हैं संघठित अपराधों की
पुलिस ठान ले तो किसी तरह का कोई अपराध नहीं हो सकता। संगठित अपराध में सरकारी तंत्र के लोग भी शामिल होते हैं। वह पुलिस में से भी कोई हो सकता है। राजनेताओं में से भी।
यह महा वाक्य जो व्यावहारिक रूप से सत्य हैं मैं नहीं कह रहा, बल्कि राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा कह रहे हैं।
मुख्यमंत्री ने इस महासत्य का रहस्य उद्घाटन राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर में दो दिवसीय पुलिस कॉन्फ्रेंस में किया। उनकी दो टूक बातें सुनकर लगा कि इस सच्चाई को स्वीकारने वाले वह देश के पहले राजनेता हैं।
संगठित अपराध राजनेताओं और पुलिस अधिकारियों के गठबंधन बिना संभव ही नहीं होता। बदले में उन्हें क्या मिलता है यह बताने की जरूरत नहीं! चांदी के जूते साफ करने में अधिकारी और राजतंत्र प्रस्तुत हो जाते हैं।
राजस्थान में एक वाक्य बड़ा चर्चित है। थानों का बंधना। किसी भी शहर के! किसी भी थाना क्षेत्र में! अपराध कारित हो रहा होता है तो उस क्षेत्र के थाने मासिक किस्तों में बंधे होते हैं। थाना बंधा हुआ है यानी थाने पर मासिक बंदी जा रही है। जुआं, सट्टा , नशे का कारोबार, वेश्यावृत्ति सहित जितने भी अपराध होते हैं अपराधी माफिया अपना कारोबार फैलाने से पहले उस क्षेत्र की पुलिस के चरित्र को खरीदते हैं। थाना क्षेत्र से हुई मासिक वसूली ऊपर कहां तक जाती है? यह भी जांच का विषय नहीं सर्वविदित है।
मुख्यमंत्री भजनलाल ने साफ कहा कि पंजाब से आने वाला अवैध शराब का ट्रक 7 जिले पार कर गुजरात कैसे पहुंच जाता है? क्या कारण है कि वह किसी भी जिले की पुलिस द्वारा पकड़ा नहीं जाता? उनका आशय साफ है थाने बंधे हुए हैं! पुलिस यदि चाहे तो अवैध शराब का यह काला कारोबार पूरी तरह बंद किया जा सकता है।
उन्होंने अवैध खनन के लिए भी वन विभाग! पुलिस विभाग! राजनीतिक प्रभाव ! और जिला तंत्र को दोषी बताया।
अब सवाल यहां यह उठता है कि मुख्यमंत्री भजनलाल को जब अपराध जगत की इतनी गहरी जानकारियां हैं तो वह इस तंत्र के चक्रव्यूह को तोड़ क्यों नहीं रहे?
उनके कोई राजनेता यदि इस अपराध के कारोबार में लिप्त हैं तो वह उसे रेखांकित क्यों नहीं कर पा रहे? पूरे राजस्थान में जनता जानती है कि कौन सा नेता किस माफिया को सरपरस्ती दे रहा है?फिर उन पर लगाम क्यों नहीं कसी जाती?
मुख्यमंत्री जी कहते हैं कि पुलिस तंत्र के लोग भी माफियाओं से जुड़े हुए हैं। यदि ऐसा है तो पुलिस विभाग तो उनके ही अंडर में आता है। गृह मंत्रालय जो उनके पास ही है। क्या अधिकांश पुलिस अधिकारी उनको अंधेरे में रखकर यह काम कर रहे हैं?
खान माफिया के बारे में तो यहाँ तक कहा जाता है कि सरकार ही वे चलाते हैं !सच यही है कि वे राजनेताओं के लिए सोने के अंडे देने वाली मुर्गियां बने हुए हैं। यही नहीं सरकारी तंत्र भी उनकी मुट्ठी में कैद रहता है।
ऐसे में क्या मुख्यमंत्री इस भ्रष्ट तंत्र के मुखिया नहीं हो जाते?
जब वे सार्वजनिक रूप से अपने गिरेबां में झांक ही रहे हैं तो फिर कोई ऐसी कार्य योजना भी बनाएं ताकि राज्य में क्राइम रेट पर नकेल कसी जा सके। माफियाओं में खौफ पैदा हो सके। क्या यह होना संभव है? या फिर यह भी मुख्यमंत्री जी की मौखिक क्रांति का एक हिस्सा है?