प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का सपना देख रहे हैं। इस सपने को पूरा करने के लिए ही 28 अगस्त को मोदी मंत्रिमंडल ने देश के 10 राज्यों में 12 इंड्रस्टियल स्मार्ट सिटी बनाने का फैसला लिया है। सरकार का मानना है कि इसमें चालीस लाख लोगों को रोजगार मिलेगा और डेढ़ लाख करोड़ रुपए का निवेश होगा, लेकिन 28 अगस्त को ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नरेंद्र मोदी को जो धमकी दी है उससे जाहिर है कि देश बहुत नाजुक दौर से गुजर रहा है।
जम्मू कश्मीर में सितंबर माह में विधानसभा के चुनाव होने हैं। इन चुनावों में कट्टरपंथी सोच वाले संगठनों से जुड़े लोग सक्रिय हैं। यदि ऐसे तत्वों की जीत होती है तो फिर जम्मू कश्मीर के हालात भी बिगड़ सकते हैं। पहले बात बंगाल की। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सार्वजनिक तौर पर पीएम मोदी का नाल लेते हुए कहा कि यदि बंगाल को छेड़ा गया तो फिर असम, नार्थ ईस्ट, झारखंड, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश आदि राज्य भी बच नहीं पाएंगे। यहां जो आग लगेगी उसे मोदी संभाल नहीं पाएंगे।
सब जानते हैं कि कोलकाता में 9 अगस्त को ट्रेनी लेडी डॉक्टर के साथ रेप और हत्या की घटना के बाद पूरे पश्चिम बंगाल में ममता सरकार के खिलाफ आंदोलन हो रहे हैं। ऐसे हालातों को देखते हुए ही बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग हो रही है। राष्ट्रपति शासन मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को ही लगाना है, इसलिए ममता बनर्जी ने देश के कई राज्यों में आग लगने की बात कही है। पिछले 13 सालों से ममता बनर्जी किस सोच के साथ शासन कर रही है, यह किसी से भी छिपा नहीं है। अब जब बंगाल में हालात खराब है तो ममता बनर्जी देश के अन्य राज्यों के हालात बिगाड़ने की धमकी दे रही है।
देखा जाए तो ममता बनर्जी ने राष्ट्रपति शासन लगाने के बाद क्या हालात होंगे, इसके बारे में पहले से ही जानकारी दे दी है। यानी ममता बनर्जी रेप और हत्या की घटना का विरोध भी नहीं होने देना चाहती। 28 अगस्त को बंगाल बंद के दौरान ममता के समर्थकों ने जिस प्रकार प्रदर्शनकारियों को पीटा उससे भी पता चलता है कि देश नाजुक दौर से गुजर रहा है। ममता बनर्जी ने सीधे पीएम मोदी को जो धमकी दी है उससे नहीं लगता कि अब बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू हो पाएगा।
कश्मीर में कट्टरपंथी सक्रिय:
देश में लोकतंत्र को हर कीमत पर बनाए रखना है, इसलिए जम्मू कश्मीर में भी विधानसभा के चुनाव सितंबर माह में करवाए जा रहे है, लेकिन डरने की बात यह है कि चुनाव में कट्टरपंथी सोच के संगठनों से जुड़े लोक सक्रिय हो गए हैं। इसमें जमाए-ए-इस्लामी जैसे प्रतिबंधित संगठन के कार्यकर्ता भी शामिल है। इस संगठन को जम्मू कश्मीर में पाकिस्तान का चेहरा माना जाता रहा है। इसलिए पूर्व में संगठन पर प्रतिबंध भी लगाया गया। अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के हटने के बाद कश्मीर में कट्टरपंथी सोच रखने वालों का प्रभाव कम हुआ, इसलिए कश्मीर घाटी के जिलों में बाजार खुले और पर्यटन भी बढ़ा, लेकिन अब चुनाव की आड़ में कट्टरपंथी सोच के लोग फिर सक्रिय हो गए हैं।
अभी तो यही कहा जा रहा है कि ऐसे लोग मुख्यधारा से जुड़ना चाहते हैं, लेकिन कश्मीर घाटी का इतिहास बताता है कि कट्टरपंथी सोच के लोग हमेशा से ही भारत विरोधी रहे हैं। यदि कट्टरपंथी सोच के लोग विधानसभा में पहुंचेंगे तो फिर नेशनल कॉन्फ्रेंस का वह वादा पूरा हो जाएगा, जिसमें अनुच्छेंद 370 को बहाल करने की बात कही गई है। लोकतंत्र के खातिर भले ही जम्मू कश्मीर में चुनाव करवाए जा रहे हो, लेकिन इसके परिणाम घातक होंगे। जम्मू कश्मीर खासकर कश्मीर घाटी में कट्टरपंथी सोच के लोग ही चुनाव जीतेंगे। यह सही है कि अभी जम्मू कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश है, लेकिन जब लोकतंत्र की आड़ में पाकिस्तान समर्थक लोग चुनाव जीतेंगे तो हालातों को संभालना मुश्किल होगा। जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र को पहले शांति और अमन कायम रखने की चिंता होनी चाहिए। यह वही कश्मीर घाटी है जिससे चार लाख हिंदुओं को प्रताड़ि कर भगा दिया गया। तब किसी ने भी लोकतंत्र की दुहाई नहीं दी।