राज्य का एक अलग और अनोखा पुलिस अफसर?

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अजमेर जिला पुलिस के मुखिया देवेन्द्र विश्नोई
पुलिस कप्तान देवेंद्र विश्नोई

पुलिस का नाम सुनते ही अच्छे भले इंसान के रौंगटे खड़े हो जाते हैं। पुलिस यदि हिंदुस्तान की हो और दरवाजा खटखटा दे तो इंसान की रूह ही कांप जाती है। ऐसा मैं तब कह रहा हूँ जब खुद पुलिस अधिकारी के घर पैदा हुआ हूँ। किसी फिल्म में डायलॉग था कि हम अंग्रेजों के टाईम के जेलर हैं।

मित्रों! पुलिस को लेकर लोगों के कुछ ऐसे ही खयालात हैं मगर आज जिस पुलिस अधिकारी को लेकर आपकी अदालत में पेश हूँ वह जनता की जान से जुड़ा हुआ है। वर्दी पहनता है मगर उसकी वर्दी से इंसानी जज्बात और अहसासात की खुशबू महकती है। उसके विचार इंसानियत के हक में दिए जाने वाले बयान हैं। वह चौबीस घण्टे अपनी रियाया के लिए हाजिÞर नाजिÞर रहता है। रात के दो बजे भी कोई उसे फोन कर दे तो वह नींद से जाग कर न केवल फोन उठाता है बल्कि फरियाद सुनकर उसकी मदद करता है। फरियादी इधर फोन रखता है उधर सम्बंधित थाने या कंट्रोल रूम से फोन खनखनाता है। उठाने पर आवाज आती है। जी, मैं पुलिस कंट्रोल रूम से बोल रहा हूँ। बताईये आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ।

यह पुलिस आफिसर फिर सुबह उठ कर सम्बंधित फरियादी से फिर संपर्क करता है। वह सिर्फ़ वर्दी के रौब में डंडे नहीं घुमाता बल्कि स्कूलों में जाकर नई पीढी को जिन्दगी के अर्थ समझाता है। अक्समात आने वाली मुश्किलों से दो दो हाथ करने के गुर भी सिखाता है। बेटियों को बचाने और पढ़ाने के उपदेश ही नहीं देता बल्कि उनको बचने के हुनर और पढ़ने के गुर भी सिखाता है।

ऐसा कोई पुलिस वाला आपने देखा है क्या?

जी हाँ आज मैं आपका परिचय ऐसे ही एक पुलिस अधिकारी से करवा रहा हूँ। अजमेर जिला पुलिस के मुखिया देवेन्द्र विश्नोई ऐसे ही पुलिस अधिकारी हैं। विश्नोई पिछले दिनों से विभिन्न शिक्षण संस्थाओं में जाकर युवा पीढी को मोबाइल युग में कैसे जीवंत रहा जाए बता रहे हैं। कैसे सोशल मीडिया के हमलों से बचाव किया जाए? कैसे सामाजिक उत्पीड़न और असमाजिक हमलों से दो दो हाथ किये जाएं बता रहे हैं।

विश्नोई राज्य के इकलौते ऐसे पुलिस अधिकारी हैं जो कानून की भाषा आम आदमी की जुबान से बोलते हैं। उनके सामाजिक सरोकार इतने गहरे हैं कि वह पुलिस का वजूद ही समाज को समर्पित कर चुके हैं।

विश्नोई जी को कल हमने अपने चैनल “बात आज की” पर जन जागरण के उनके अभियान पर बात करने के लिए बुलाया। उनसे वार्ता हुई तो उन्होंने अपनी संवेदनाओं को सिलसिलेवार इस शिद्दत से प्रस्तुत किया कि हमारे हजारों दर्शक उनके अभिवादन को नतमस्तक हो गए।

मैंने उनसे 7 सवाल पूछे। क्या थे वे सवाल इस पर बात करने से पहले मैं चाहूँगा कि थोड़ा बहुत परिचय उनके बारे में दे दूँ।

देवेन्द्र विश्नोई हरियाणा हिसार के रहने वाले हैं। उनके पिता बी एस एफ के अधिकारी थे। कुशाग्र बुद्धि के विश्नोई ने शैक्षिक रूप से तो वकालत की मगर समय की नब्ज पर हाथ रखते हुए उन्होंने सरकारी सेवाओं में बी एस एफ के माध्यम से शुरूआत की।

बेहद गुलाबनुमा फितरत के मालिक विश्नोई बाद में पुलिस में आ गए और उन्होंने पुलिस में आकर इतने नवाचार किये कि उन्होंने पुलिस सिस्टम को ही अलग अंदाज में रच दिया।

झुंझुनूं, और भरतपुर और गंगापुर में बतौर मुखिया वह कई बरसों रहे। बीकानेर में उन्होंने स्त्री शिक्षा को आत्म रक्षा के ऐसे हुनर सिखाये कि आज वहाँ सौ से अधिक युवतियां जूडो कराटे के उच्चतम पायदान ब्लैक बेल्ट से सम्मानित हैं।

बीकानेर की एक महिला जो मेरी जानकार हैं से मेरी बात चीत हुई। उन्होंने बताया कि वह ब्लैक बेल्ट हैं। कैसे हुए? यह भी मजेदार वाकया है। वह अपनी बच्ची को रोज स्कूल छोड़ने और लाने के लिए जाया करती थीं। बाहर का माहौल ठीक नहीं था। अचानक स्कूल में देवेंद्र विश्नोई जी से उनकी मुलाकात हुई। वह स्त्री सुरक्षा चक्र अभियान के तहत स्कूली छात्राओं को आत्म रक्षा की शिक्षा दिलवा रहे थे। उन्होंने अपनी बिटिया को जब कोर्स में भर्ती कराया तो स्वयं भी शिक्षा लेना शुरू कर दिया और नतीजा यह हुआ कि बिटिया और वह खुद आज ब्लैक बेल्ट हैं। पाँच दस आदमियों से वह आज आराम से अपनी सुरक्षा कर सकती हैं। उन्होंने बताया कि एक बार तो उनकी बेटी ने चाकू की नोंक पर किसी बच्ची के साथ हो रही वारदात से मुक्त करवाया। हमलावर को जमीन पर लिटा कर माँ दुर्गा की तरह पुलिस तक पहुंचाया।

विश्नोई साहब को बीकानेर की बच्चियां आज भी अपना आदर्श मानती हैं।

विश्नोई जी धार्मिकता को आत्मा से स्वीकारते हैं मगर वह धर्मांध नहीं। उनका मानना है कि साधु संतों और बाबाओं के लिए भी आचार संहिता होनी चाहिए। उनके अनुशासन को भी कड़े नियमों की पालना से जोड़ा जाना चाहिए। इसके लिए वह जहां रहे, जहाँ गए उन्होंने आडम्बरी बाबाओं और धर्म गुरुओं को टटोला और खुल कर उनको नियमबद्ध नियंत्रण की नसीहत दी। सामाजिक कुरीतियों का विरोध किया और परिवेश की पवित्रता के लिए प्रयास किए।

अजमेर में जिस तरह वह अब तक लगभग तीस स्कूलों में जाकर युवा पीढ़ी को सुरक्षित रहने की शिक्षा दे चुके हैं वह काबिले दाद है।

उनकी भविष्य में योजना है कि वह शीघ्र ही बच्चों में बढ़ती हुई हिंसक प्रवर्तियों और नशे की लत पर भी विधिवत रोकथाम के लिए स्कूलों में अभियान शरू करें। यही नहीं वह यातायात नियमों और सड़क सुरक्षा पर भी गंभीर हैं। वह शीघ्र ही इन मुद्दों पर भी युवा पीढ़ी को जागरूक करेंगे।

हो सकता है आप कहें कि पुलिस अधिकारी को ये सब करने की क्या जरूरत है?ये काम तो समाज सुधारकों के हैं।

विश्नोई यह नहीं मानते। उनका कहना है की पुलिस समाज में कानून व्यवस्था कायम रखने के लिए तो है ही पर समाज को अपनी सुरक्षा कैसे हो यह सिखाने के लिए भी है। समाज ने उनको सम्मान दिया है तो उसकी सुरक्षा के लिए पुलिस भी प्रस्तुत रहनी चाहिए।

पुलिसिंग के साथ साथ विश्नोई जी के सामाजिक सरोकारों में सक्रियता की बात की जाए तो वो अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा में 2015 में जिला बीकानेर का निर्विरोध निर्वाचित प्रधान रह चुके हैं।

वे कूड़ो (जूडो कराटे) संस्था बीकानेर के अध्यक्ष हैं।
जांभाणी साहित्य अकादमी के विशेष आमंत्रित सदस्य हैं।
महावीर इंटरनेशनल बीकानेर के सदस्य हैं।
समराथल फाऊंडेशन जोधपुर के विशेष सदस्य हैं।

विभागीय व्यस्तता के बावजूद विश्नोई जी की समाज के हर वर्ग में सक्रिय सहभागिता काबिले तारीफ है।

“बात आज की” चैनल पर उन्होंने किस तरह मेरे 7 सवालों के जानदार जवाब दिए यह जानने के लिए आप ऊपर दिए लिंक पर जाएँ। आपको सहज अन्दाजा हो जाएगा कि विश्नोई किस अंदाज में नई पुलिसिंग को सम्मानित कर रहे हैं। काश! मेरे भारत का हर पुलिस कर्मी देवेंद्र विश्नोई हो जाए! काश!काश! काश!

सवाल सुरेंद्र चतुर्वेदी के : जवाब पुलिस कप्तान देवेंद्र विश्नोई के…

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