तो क्या वसुंधरा को बेकाबू होने से पार्टी बचा रही है?

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पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा
पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा

भाजपा के नए प्रभारी राधा मोहन दास ने हाल ही में जो सियासती तूफान खड़ा किया उसके ठीक विपरीत कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने भी तूफान खड़ा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

भाजपा प्रभारी राधा मोहन दास ने पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ को जिस तरह भरी सभा में आड़े हाथों लिया और उनके बैठक से चले जाने पर गहरा रोष व्यक्त किया उस अंदाज में तेवर इससे पहले किसी नेता ने नहीं दिखाए थे। उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ से उनके विरुद्ध कार्यवाही किये जाने तक कह दिया। यह जितनी अद्दभुत घटना थी उससे जिÞयादा अद्दभुत घटना यह थी कि उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा की शान में कसीदे काढ़ दिए। उनको भाजपा की जरूरत आन बान और शान बता दिया। जबकि वसुंधरा इस बैठक में उपस्थित ही नहीं थीं। वसुंधरा की अनुपस्थिति तो प्रभारी की नजरो में मामूली बात और राठौड़ का बैठक के बीच में से चले जाना इतना सीरियस कि उनकी सार्वजनिक रूप से बखिया उधेड़ देना ये बात राजनीतिक गालियारे में चर्चा का विषय बनी हुईं है।

दास ने यह दोनों बयान एक ही सभा में देकर यह सियासती बहस शुरू करवा दी। राठौड़ और राजे जो दोनों एक दूसरे के विपरीत ध्रुव माने जाते हैं उनको फिर बहस के केन्द्र में ला दिया।

पहली बात तो यह कि ये दोनों बयान उनको देने की जरूरत क्या थी? राठौड़ के विरुद्ध बोलने के बाद उनको वसुंधरा के गुणगान करने की जरूरत क्या थी?क्या वह यह सब करने के लिए दिल्ली के शीर्ष नेताओं से हरी झंडी लेकर आए थे?

ये सवाल इसलिए महत्वपूर्ण हैं कि वसुंधरा की खुल कर तारीफ करने की हिम्मत भाजपा के किसी भी नेता को अब तक नहीं हुई। ये अचानक दास साहब ने कैसे जुटा ली?

यदि दास बिना दिल्ली की सहमति से इतना सब कह गए होते तो दिल्ली उनकी जान को जर्मन हो जाती! तो फिर क्या ये सब सुनियोजित था? क्या वसुंधरा को पार्टी फिर से मान मंडित करना चाहती है?

इस सवाल का उत्तर आप सोचें तब तक मैं बता दूँ कि राजेन्द्र राठौड़ के समर्थकों ने जिस तरह प्रभारी दास को घेर कर रोष व्यक्त किया और जिस तरह से किया उसके बाद यह संकेत तो सामने आ चुके हैं कि राठौड़ का भविष्य असुरक्षित हो चुका है। वसुंधरा की आँख की किरकिरी को दास ने जिस तरह निकाला है उससे वसुंधरा जी तो खुश हो सकती हैं। मगर राठौड़ के लिए यह नया विकल्प तलाशने का विषय बन चुका है।

अब जरा बात की जाए कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के बयान की। उन्होंने भाजपा की अंतर्कलह पर सीधे तौर पर टिप्पणी की। कहा कि वसुंधरा जी जिस तरह खामोश बैठी हैं वह इतनी शांति से बैठने वाली नहीं। जरूर कुछ करने वाली हैं।

डोटासरा का यह बयान तो ऐसा है जैसे राज्य में कोई तख़्ता पलट की भूमिका बन चुकी है और उनको इसकी पूर्व सूचना मिल चुकी है।

मैं यह मान कर चल रहा हूँ कि वसुंधरा पार्टी से बगावत किसी कीमत में नहीं करेंगी क्यों कि यह पार्टी उनकी माँ ने बनाई थी। मोदी, शाह या किसी व्यक्ति ने नहीं। यहाँ मैं यह जरूर मानता हूँ कि वसुंधरा के साथ दिल्ली ने सम्मानजनक व्यवहार नहीं किया बल्कि कदम कदम पर उन्होंने खून के घूँट ही पिए । उनकी हताशा स्वाभाविक है मगर मुझे यह नहीं लगता कि भाजपा उनको किसी क्रांति के लिए खुला छोड़ने की हिम्मत जुटा पाएगी।

पिछले दिनों वसुंधरा ने पद मद और कद तथा अहम को धोने वाली बारिश के बयान दिए उसके बाद यह तो साफ हो गया कि उनके अंदर अपने साथ हुए व्यवहार की पीड़ा है मगर डोटासरा के बयान जैसा कुछ नहीं।

डोटासरा के इस बयान का अगर अर्थ निकाला जाए तो यह साफ है कि वसुंधरा समर्थक लगभग 45 विधायक और कई सांसद हैं। यदि ये सब भाजपा से छिटक जाएं तो भाजपा में क्रांतिकारी मोड़ आ सकता है। कुछ लोगों ने तो राधा मोहन दास की बैठक में अनुपस्थित विधायकों को वसुंधरा से ही जोड़ दिया।गायब सांसदों को भी।

इसी दिशा में यह भी कहा गया कि राधा मोहन दास ने वसुंधरा की शान में जितना कुछ कहा और उनके विरोधी राठौड़ को लपकाया वह वसुंधरा को पार्टी से जोड़े रखने की दिशा में उठाया गया कदम था। यह दिल्ली से प्रेरित था।

अब देखना यह है कि पार्टी उनको उचित सम्मान देकर संतुलन बैठा पाती है या डोटासरा की बात सही हो जाती है। फिलहाल मैं तो इतना ही कह सकता हूँ कि वसुंधरा इतनी आसानी से काबू आने वाली नेता नहीं। न दिल्ली के नेताओं के न डोटासरा जैसे नेता के।

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