नारी शक्ति की अस्मिता बचाओ, कड़े कानून बनाओ

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* हैवानियत के सभी मामलों की सुनवाई फास्ट ट्रैक अदालत में हो
* दोषियों को एक-दो माह के भीतर कठोर से कठोर सजा दी जाए

प्रेम आनन्दकर, अजमेर

देश में महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा दिनों-दिन चिंतनीय बनता जा रहा है। पश्चिम बंगाल में एक महिला डॉक्टर की बलात्कार के बाद हत्या किए जाने का मामला जहां पूरे देश में तूल पकड़े हुए है, वहीं राजनीति से प्रेरित कुछ बेशर्म लोग चरित्र हनन करने से बाज नहीं आ रहे हैं। हालांकि पश्चिम बंगाल सरकार ने कुछ पुलिस अधिकारियों और कार्मिकों को सस्पेंड कर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर ली है, लेकिन वह भी अपनी बेशर्मी से बाज नहीं आ रही है।

मामला कोर्ट तक पहुंच गया है, किंतु जिस तरह से दलील दी जा रही है और मृतका का चरित्र हनन करने का प्रयास किया जा रहा है, वह बहुत ही निंदनीय है। जयपुर में एक महिला डॉक्टर ने अपने साथी पुरूष डॉक्टर पर आरोप लगाते हुए शिकायत दी है। जिस तरह से महिलाओं और युवतियों को हैवानियत का शिकार बनाया जा रहा है, उससे हमारे देश में कानून और सुरक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान लगते हैं। आखिर, जिस देश में नारी शक्ति को देवी मानकर पूजा की जाती है, उस नारी शक्ति का इतना अपमान किसलिए किया जा रहा है।

मणिपुर में एक महिला को निर्वस्त्र कर जुलूस निकाला जाता है। सरेआम महिलाओं को बेइज्जत किया जाता है। आखिर हमारे देश में हो क्या रहा है। कानून नाम की भी कोई चीज है या नहीं या फिर लोगों का कानून से डर खत्म हो गया है। क्यों नहीं केंद्र सरकार और राज्यों की सरकारें महिलाओं की अस्मिता की रक्षा और उनकी हिफाजत के लिए सख्त से सख्त कानून बनाती हैं। क्यों नहीं, महिलाओं की सुरक्षा के पुख्ता बंदोबस्त किए जाते हैं। आज के इस दौर में महिलाएं कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। हर जगह मानसिक, शारीरिक और यौन शोषण का शिकार हो रही हैं। इन दिनों महिलाओं की स्थिति को देखते हुए सोशल मीडिया के कमोबेश सभी प्लेटफार्म पर कुछ कैप्शन के साथ दस्यु सुंदरी फूलनदेवी की फोटो जमकर वायरल हो रही है, जिसमें कहा गया है कि बलात्कारियों से बदला लेने के लिए महिलाओं को फूलनदेवी जैसा साहस दिखाना होगा।

फूलनदेवी ने उससे सामूहिक बलात्कार करने वालों को लाइन में खड़ा कर गोलियों से भून डाला था। हालांकि फूलनदेवी लंबे समय तक महिला डाकू के रूप में जानी जाती रही, किंतु बाद में उसने समर्पण कर दिया था। इसके बाद वह राजनीति में आई थी। भले ही महिलाएं फूलनदेवी जैसी ना बनें, लेकिन उनमें दरिंदों से जूझने और सामना करने की शक्ति आनी बहुत जरूरी है। अब यह बात भी सही है कि महिलाएं तो फिर भी सामना कर लेंगी, लेकिन उन हैवानों का क्या किया जाए, जो मासूम बच्चियों को उठाकर ले जाते हैं और उनसे बलात्कार करने में हैवानियत-पाश्विकता की सारी हदें पार देते हैं।

ऐसे में उन माता-पिता के सामने यह मसला बहुत ही चिंतनीय है। हम कन्या भ्रूणहत्या रोकने पर जोर तो देते हैं और देना भी चाहिए, क्योंकि यदि लिंगानुपात में भारी अंतर आ गया, तो सामाजिक व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो जाएगी। किंतु इस बात पर जोर नहीं देते हैं कि कन्याओं, स्कूल, कॉलेज व यूनिवर्सिटी की छात्राओं, युवतियों और महिलाओं की सुरक्षा के लिए कड़े से कड़े कानून बनें। हैवानियत के सभी मामलों की सुनवाई फास्ट ट्रैक अदालत में हो और दोषियों को एक-दो माह के भीतर कठोर से कठोर सजा दी जाए। जब तक कठोर कदम नहीं उठाए जाएंगे, तब तक महिलाओं की सुरक्षा की सारी बातें महज कोरी बकवास के सिवाय कुछ भी नहीं हैं।

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