संयुक्त राष्ट्रसंघ को दी गई सूचना में राजस्थान के सभी स्मार्ट सिटी नदारद
…….और लीजिए अजमेर के राजनेताओं! जिला प्रशासन! मीडिया कर्मियों! और आम जनता के लिए चौंकाने वाली खबर! पुख़्ता खबर यह है कि अजमेर को सरकार ने दोहम दर्ज़ का स्मार्ट सिटी मानते हुए देश के उन सौ शहरों में शामिल ही नहीं किया है जिनको विदेशी पैसे से स्मार्ट बनाया गया।
महान देश भारत के आवास और शहरी कार्य मंत्रालय द्वारा संयुक्त राष्ट्र में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है जिसमें देश के विभिन्न स्मार्ट शहरों की सफलता की कहानियों को उजागर किया गया है।इसमें इंदौर, विशाखापट्टनम और अन्य शहरों के सफल प्रोजेक्ट्स तो रिपोर्ट में शामिल कर लिए गए हैं लेकिन हैरानी की बात यह है कि राजस्थान के किसी भी स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट का उसमें कोई उल्लेख नहीं।
जानकारी मिली है कि जयपुर, कोटा, उदयपुर के कामों पर सरकारी रिपोर्ट में फिर भी थोड़ी बहुत संतोषजनक बातें कही हैं मगर अजमेर के स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट को निकम्मा और कुनियोजित मानते हुए उस किताब में ही शामिल नहीं किया है जो विशेष रूप से प्रकाशित की गई है। ब्रॉशरनुमा यह पुस्तक आप मेरे फेस बुक एकाउंट पर देख सकते हैं।
यह ब्रॉशर संयुक्त राष्ट्र में प्रस्तुत किया गया है ताकि सौ स्मार्ट शहरों पर हुए खर्च को वाजिÞब व उपयोगी सिद्ध किया जा सके। योजना के लिए दी गई अपार राशि का मूल्यांकन किया जा सके।
इस रिपोर्ट में राजस्थान सरकार के किसी भी स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट को प्रशंसा नहीं मिली है। इस रिपोर्ट में बस इस बात का उल्लेख है कि राजस्थान सरकार को भारत सरकार से कितनी राशि प्राप्त हुई और कैसे-कैसे उसे खर्च किया गया?
रिपोर्ट में सरकार की तरफ से बताया गया है कि अमेरिकी व्यापार और विकास एजेंसी यू एस डी डी ए ने अजमेर प्रयागराज और विशाखापट्टनम स्मार्ट शहरों के साथ द्विपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते के तहत सभी शहरों में परियोजना को सुनियोजित और उचित अधिकारियों की टीम के साथ साकार करना था।
अजमेर में जिस स्तर के अधिकारियों ने काम निबटाया वह आपत्तिजनक माना गया है। राजस्थान में शहर के जनजीवन को बेहतर बनाने और नागरिकों को आधुनिक सुविधाएं मुहैया करवाने पर पैसा खर्च किया जाना था मगर सिर्फ़ उदयपुर में विधिवत काम करवाया गया।
अजमेर को रिपोर्ट में हर मोर्चे पर फेल मानते हुए रिपोर्ट से बाहर कर दिया है।
अजमेर में जितने भी काम हुए उनकी गुणवत्ता भी संदेह में मानी गई है। यहाँ योजनाओं में धन का सिर्फ़ दुरपयोग ही नहीं हुआ बल्कि भारी बन्दर बांट भी हुई जिसमें कई अधिकारी और राजनेता निहाल हो गए।
योजनाओं को जल्द से जल्द अपने कार्यकाल में पूरा करवाने और बंदरबांट में पैसा हजम करने के चक्कर में लगभग सारे काम घटिया गुणवत्ता के हुए। कुछ कामों पर तो राज्य के लोकायुक्त ने बाकायदा मुकदमा दर्ज़ करके जांच शुरू कर दी है। दोषी अधिकारियों और कर्मचारियों की हलक से पैसा निकालना यद्यपि इतना आसान नहीं पर दोषियों को सजा तो दी ही जा सकेगी।
जानकारी मिली है कि संयुक्त राष्ट्र संघ की तरफ से भी आॅडिट जांच हो सकती है। यदि ऐसा हुआ तो कई जिÞला अधिकारी नप जाएंगे।
फिलहाल अजमेर के असली तौर पर स्मार्ट होने की बात तो खारिज हो ही गई है। नकली स्मार्ट सिटी के बतौर आप चाहें तो गर्व कर सकते हैं। “आई अजमेर” वाले सेल्फी पॉइंट तो अपना आकर्षण खो कर दम तोड़ चुके हैं। चौपाटी वाला सेल्फी पॉइंट जो प्रशासन ने बनाया था वह पता नहीं कहाँ गायब हो चुका है।
“अजमेर से मुझे प्यार है” यह कह कर नाटक करने वाले लोग कहाँ गए?उनको ढूँढने के लिए आपसे आग्रह है कि आप अपने अंदर ही उनको तलाशें! शायद वे कहीं थक हार कर छिप गए हों ?