जेएलएन अस्पताल भवन की छतों का प्लास्टर गिरने दीजिए,नई यूनिट की छत से हैलीकॉप्टर उड़ाएंगे
दो दिन में अखबार में छपी दो खबरें पढ़िए
पहली खबर – अजमेर के जवाहरलाल नेहरू अस्पताल के सभी वार्ड व डॉक्टर्स रूम असुरक्षित, 30 दिन में 13 जगह छत से गिरा प्लास्टर
दूसरी खबर- जेएलएन मेडिकल कॉलेज में बनेगी प्रदेश की सबसे बड़ी 8 यूनिट की सुपर स्पेशलिटी विंग। एयर एंबुलेंस के लिए छत पर बनेगा हैलीपेड
बस, इन्हीं दो खबरों में छिपा हुआ है अजमेर के विकास का विरोधाभास। एक ओर बातें राजस्थान की सबसे बड़ी सुपर स्पेशलिटी यूनिट अजमेर में बनाने की, तो दूसरी और संभाग के सबसे बड़े जवाहरलाल नेहरू अस्पताल की इमारत की दुर्दशा। जहां रोजाना छत से प्लास्टर गिरने से हजारों मरीजों और उनके सेवादारों के साथ ही चिकित्सकों और नर्सिंग स्टाफ की जान खतरे में रहती है। एक ओर मरीजों को एयरलिफ्ट करने के लिए छत पर हैलीपैड बनाने के सपने,तो दूसरी ओर छत का प्लास्टर गिरने से रोकने में नाकामी की हकीकत। सुपर स्पेशलिटी यूनिट के लिए तीन सौ करोड़ की मंजूरी,तो दूसरी ओर जेएलएन अस्पताल के जर्जर होते भवन के रखरखाव के लिए फंड का संकट।
अजमेर के भविष्य के विकास के लिए बड़ी-बड़ी बातें हो रही है। लेकिन अतीत में ऐसी कई घोषित विकास योजनाओं के महज लफ्फाजी साबित होने के बाद भी उससे सबक लेकर वर्तमान पर ध्यान देने के बजाय सपनों में भविष्य ही है। सपने दिखा भी कौन रहे हैं, जो 20 साल से विधायक-मंत्री रहने के बावजूद शहर के विकास के लिए कोई उल्लेखनीय काम नहीं कर सके। चलने के लिए साबुत सड़कें और पीने के लिए नियमित पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं करा सके। लेकिन अब अखबारों की खबरों में उन्होंने विकास की गंगा बहा दी है,लेकिन ये सब फ्यूचर टेंस में है यानी ये होगा। ये बनेगा। ये होगा। ये कराया जाएगा।
यूं तो अस्पताल में छत से प्लास्टर गिरना पुरानी बात है। पीडब्ल्यूडी के अधिकारी और इंजीनियर ठेकेदार से मंजूर राशि में से कितनी मरम्मत के लिए खर्च कराते हैं और खुद के खर्च के लिए कितनी लेते हैं, ये मरम्मत की गुणवत्ता बता ही देती है। इस बार जब से बरसात शुरू हुई है 137 साल पुराने अस्पताल के भवन की हालत कछ ज्यादा ही खस्ता हो गई है। बीते एक महीने में ही अस्पताल के एक दर्जन से ज्यादा स्थानों पर छत का प्लास्टर टूट कर मरीजों, उनके परिजनों और नर्सिंग स्टाफ पर गिर चुका है। अब तो हाल ये है कि लगभग हर वार्ड में प्लास्टर गिर रहा है या गिरने की कगार पर है।
मरीज भी है बैड पर सोते हुए छत को निहारते हैं, ताकि प्लास्टर गिरता दिखे, तो अपना बचाव कर सके। मरीजों के तीमारदार भी मरीज के साथ-साथ वार्ड की छत की निगरानी भी करते हैं। कई स्थानों पर छतों में से सरिया नजर आने लगा है। लेकिन अस्पताल भवन की पर्याप्त मरम्मत के बजाय सुपर स्पेशलिटी विंग बनाने की बात का प्रचार हो रहा है। हकीकत ये भी है कि भविष्य के लिए योजनाओ़ का जाल बनाया जा रहा है। लेकिन जो योजनाएं पूरी हो चुकी है, उन पर ही अमल शुरू नहीं हो रहा है और कारण भी मामूली रकम है।
जेएलएन अस्पताल में पीडियाट्रिक वार्ड बनकर तैयार हो चुका है। इस पर 35 करोड रुपए खर्च हुए हैं। लेकिन यह शुरू इसलिए नहीं हो पा रहा है कि फायर एनओसी की राशि कौन देगा। स्मार्ट सिटी लिमिटेड या अस्पताल प्रशासन। कुछ लाख रुपए के विवाद के कारण वार्ड का उद्घाटन नहीं हो पा रहा है। इसी तरह मेडिकल कॉलेज गर्ल्स हॉस्टल का भवन भी 7 करोड़ में बनकर तैयार है। लेकिन यहां फायर सिस्टम ही नहीं लगाया गया है। इसलिए यह बंद पड़ा है। पिछले दिनों गर्ल्स हॉस्टल में भी प्लास्टर गिरने के बाद अस्पताल प्रशासन ने इसे छात्राओं की सुरक्षा के लिए खुलवाना चाहा,तब पता फायर एनओसी चाहिए। लेकिन सिस्टम लगा ही नहीं। वर्तमान कघ ये हालत है,तो भविष्य तो हर कोघ समज ही सकता है।
वैसे, भविष्य में अजमेर के लिए आयुर्वेद एवं प्राकृतिक योग विश्वविद्यालय,आईटी पार्क, साइंस पार्क, केकड़ी से कोटड़ा तक बीसलपुर स्टीर पाइप लाइन, ईआरसीपी से पानी,रोप-वे,एथलेटिक्स खेल अकादमी,राजस्थान इंसटीटयूट आफ टेक्नोलॉजी, आधुनिक बस स्टैंड,नई-नई सड़कें, उन पर दौड़ती इलेक्ट्रिक बसें, शानदार ड्रेनेज सिस्टम आने वाला है। फाइलों में मंजूर होकर मीडिया तक पहुंच चुका है। बस, धरातल पर उतरना है। जाहिर है उसमें वक्त लगेगा। जो काम सालों में नहीं हुए,अब होंगे। इसलिए आप भी टूटी सड़कों, पानी की किल्लत, अस्पताल में प्लास्टर गिरने, सीवरेज जाम होने जैसी अतीत और वर्तमान की छोटी-छोटी समस्याएं भुलाकर सुनहरा भविष्य देखिए। आपने अजमेर में दुश्वारियों में रहकर जिंदगी गुजार दी,शायद आपकी पीढ़ियों को अजमेर पर फिर गर्व हो।