जयपुर में उपायुक्त से लेकर पटवारी तक रिश्वत लेते गिरफ्तार
जब आयुक्त स्तर पर न्याय नहीं होता, तब पूरा दफ्तर रिश्वत खोर हो जाता है
23 अगस्त को भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने जयपुर विकास प्राधिकरण में छापामार कार्यवाही करते हुए तहसीलदार लक्ष्मीकांत गुप्ता, गिरदावर रुकमणी, रविकांत शर्मा, विमल मीणा, जेईएन खेमराज मीणा, पटवारी श्रीराम के साथ साथ दलाल महेश चंद मीणा को डेढ़ लाख रुपए की रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार कर लिया। सभी आरोपियों के पास से उनके पद की हैसियत के मुताबिक रिश्वत की राशि भी बरामद की गई।
एसीबी की कार्यवाही के बाद सरकार के निर्देश पर उपायुक्त गुलाबचंद को निलंबित कर दिया गया। यानी जयपुर विकास प्राधिकरण पूरी तरह भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है। एसीबी ने जयपुर में जो कार्यवाही की है वैसी ही कार्यवाही अजमेर विकास प्राधिकरण और नगर निगम में करने की जरूरत है। स्थानीय निकाय से जुड़े इन दोनों विभागों में खुलेआम लूट हो रही है। दोनों विभागों में दलाल सक्रिय हैं जो सभी काम करवाने की क्षमता रखते हैं। यदि कोई व्यक्ति अपने काम के लिए सीधे अप्रोच करता है तो कई वर्षों तक काम नहीं होता।
राज्य सरकार ने पूर्व में विकास प्राधिकरणों और नगर निगमों में आयुक्त के पद पर आईएएस की नियुक्ति की। इसके पीछे यही उद्देश्य था कि पीड़ित व्यक्ति को आयुक्त स्तर पर न्याय मिल जाए, लेकिन आमतौर पर देखा गया कि आयुक्त स्तर पर न्याय नहीं मिला, इसलिए मजबूरी में पीड़ित को दलालों के माध्यम से अपना काम करवाना पड़ा। आयुक्तों में वो इच्छा शक्ति नहीं देखी गई जिसके जरिए पीड़ित का काम करने के निर्देश दिए जा सके।
यदि जयपुर और अजमेर में विकास प्राधिकरणों और नगर निगमों में आयुक्त के स्तर पर काम हो जाए तो फिर उपायुक्त, तहसीलदार, इंजीनियर, पटवारी आदि कार्मिकों की हिम्मत नहीं की रिश्वत ले ली जाए। चूंकि आयुक्त भी अपने अधीनस्थ कर्मचारियों पर निर्भर रहते हैं, इसलिए पीड़ित व्यक्ति का काम नहीं होता, जबकि दलाल पटवारी से लेकर ऊपर तक के अधिकारियों के पद की हैसियत से एकमुश्त राशि तय कर लेता है। 23 अगस्त को भी दलाल महेश चंद जब जयपुर विकास प्राधिकरण के कार्मिकों को रिश्वत की राशि बांट चुका था, तभी एसीबी ने छापामार कार्यवाही की।
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा माने या नहीं, लेकिन अजमेर विकास प्राधिकरण और नगर निगम में तो जयपुर से भी ज्यादा भ्रष्टाचार है। चूंकि गृह विभाग भी सीएम शर्मा के पास ही है, लेकिन एसीबी भी सीएम के अधीन ही है। सीएम शर्मा को आवश्यक निर्देश देकर अजमेर में भी छापामार कार्यवाही करवानी चाहिए। अजमेर में यदि गुप्त सूचनाएं एकत्रित की जाएगी तो सत्तारूढ़ राजनेताओं की असलियत के बारे में भी पता चल जाएगा। मंत्री स्तर के नेता किस तरह जमीनों के मामलों में कलेक्टर और अन्य अधिकारियों को फोन करते हैं इसकी भी जानकारी उजागर हो जाएगी।
गंभीर बात तो यह है कि मंत्रियों का संरक्षण प्राप्त भूमाफिया सोशल मीडिया पर भी बखान करते हैं। सौ गज की निजी भूमि का नक्शा तभी स्वीकृत होता है, जब नीचे से ऊपर तक के कार्मिक को रिश्वत दी जाती है। जमीन मालिक रिश्वत की राशि दलाल को देकर निश्चित हो जाता है। दलाल स्वीकृत नक्शा रिश्वत देने वाले व्यक्ति के घर पर पहुंचा देता है। अजमेर के दोनों निकायों में हर काम की रेट तय है।