संगठन, कार्यकर्ता भाषण की बात

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कोई भी पार्टी हो,सत्ता हमेशा संगठन को काबू में रखती है

थोड़ा ज्यादा नहीं हो गया राधामोहन दास अग्रवालजी। जिस दिन आप भाजपा को कार्यकर्ता और विचारधारा की पार्टी बता रहे थे,उससे एक दिन पहले ही यहां से राज्यसभा के लिए जिसे भेजा गया,वह रवनीत सिंह बिट्टू पांच महीने पहले भाजपा के कार्यकर्ता थे और ना ही उनका भाजपा की विचारधारा से कोई वास्ता वास्ता था। फिर कैसे भाजपा ने उन्हें राजस्थान के कार्यकर्ताओं और नेताओं पर वरीयता दी। या राजस्थान में कोई योग्य नेता इस लायक था नहीं। पडोसी राज्य हरियाणा से भी पिछले माह ही भाजपा में आई किरण चौधरी राज्यसभा की शोभा बढ़ाएगी।
और क्या कहा आपने? नेता आधारित पार्टी नहीं है भाजपा। किसी भी वर्तमान-निवर्तमान को,चाहे वो किसी भी पद पर बैठा हो सांसद हो,विधायक हो,मंत्री हो,ये भम्र नहीं पालना चाहिए कि संगठन उसके कारण सत्ता में आता है। फिर भी भाजपा पूरी तरह मोदीजी के भरोसे क्यों रहती है। फिर मोदी सरकार,मोदी की गारंटी,मोदी है तो मुमकिन है,जैसे नारे भाजपा संगठन ने ही दिए थे ना। नड्डा जी तो पोस्टरपर भी भूले- भटके ही नजर आते थे। अभघ भी अध्यक्ष वही तो है ना।आपके सभी नेता भी तो भाजपा के विकास, विस्तार, सत्ता में लगातार तीसरी बार आने का श्रेय मोदीजी को देते हैं। खुद नड्डा जी भी। संगठन की जीत की बात तो कोई नहीं करता। सब मोदी के चेहरे को तुरूप का पत्ता मानते हैं। कमल के फूल नहीं। शायद आप उनसे सहमत नहीं होंगे।
हां,विधानसभा उपचुनाव से पहले कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने के लिए ऐसी भाषणबाजी जरूरी है। उसे बहलाना भी जरूरी है कि जो कुछ वही है। चुनाव बाद भले ही नेता उसे ना पहचाने,लेकिन चुनाव पहले तक उसे इसी भम्र में रखना होता। आप भी राजस्थान के नए-नए प्रभारी बने हैं इसलिए आपको भी यह जलवा दिखाना था कि संगठन यानी आप ही सर्वोपरि है। पहले भाषण में ऐसा कहना जरूरी था।
लेकिन आप भी जानते ह़ै, अब कोई पार्टी कार्यकर्ता,विचारधारा, संगठन आधारित नहीं, कुछ नेताओं और सत्ता आधारित पार्टी रह गई है। कांग्रेस तो मुन्नी की तरह बदनाम हो गई, हकीकत सभी दलों की यही है। जहां मेहनत कोई करता है और हलवा कोई और गप्प कर जाता है। दरिया़ कोई बिछाता है,लेकिन कुर्सियां कोई और हड़प जाता है। सड़कों पर धक्के कोई खाता है,सत्ता के गलियारों में कोई और लहराता है। कुछ व्यक्तियों के हाथों में ही संगठन और सत्ता की चाबी होती है। कहने को भले ही संगठन, सत्ता को संचालित करता है। लेकिन हकीकत में जहां सत्ता होती हैं,वहां सत्ता ही संगठन पर कब्जा किए रहती है।
आपको याद होगा कि उत्तर प्रदेश में भी उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने संगठन को सर्वोपरि बताया था और सबको लगने लगा था कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कुर्सी गई। लेकिन हुआ क्या? संगठन, यहां तक की खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी चाहते हुए योगी को कुर्सी से नहीं हटा सके। अब खुद मौर्य,योगी आदित्यनाथ की तारीफ में कशीदे पढ़ रहे हैं। अब बताइए संगठन बड़ा हुआ या सत्ता।

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