हिंदू धर्म में हर त्यौंहार, तिथि और पर्व का अपना विशेष महत्व है। रक्षा पंचमी का त्योहार रक्षाबंधन के पांच दिन के बाद मनाया जाता है. इस साल रक्षा पंचमी 23 अगस्त 2024 को मनाई जाएगी। इस दिन भगवान शिव के काल भैरव रूप की पूजा प्रमुख रूप से की जाती है साथ ही भगवान शिव, गणेश जी और नाग देवता की पूजा भी की जाती है। किसी कारण से बहनें भाइयों की कलाई पर राखी नहीं बांध पाई हैं, तो वे रक्षा पंचमी के दिन भी बांध सकती हैं।
रक्षापंचमी के दिन भाइयों की कलाई पर राखी बांधना बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन भगवान शिव, गणेश जी और नाग देवता की पूजा के बाद भाई के माथे पर तिलक लगाएं। राखी बांधे और मिठाई खिलाकर भाई की आरती उतारें।
रक्षा पंचमी पर भगवान शिव के पंचम रुद्रावतार भैरवनाथ की पूजा करने का विशेष महत्व है। इसके साथ ही आज के दिन भगवान गणेश के हरिद्रा रूप की पूजा करने का विधान है। आज भगवान गणेश को दूर्वा और सरसों चढ़ाना शुभ होताहै।
रक्षा पंचमी तिथि को शास्त्रों मे रेखा पंचमी और शांति पंचमी एवं गोगा पंचमी कहकर भी संबोधित किया जाता है। इस दिन नाग देवता और गोगा देवता की पूजा का विधान है। पूजा के दौरान दूध, पानी, रोली, अक्षत, आदि चीजें अर्पित की जाती है। साथ ही, संतान की लंबी आयु के लिए व्रत रखा जाता है।
रक्षा पंचमी मे गोगा पूजन का का महत्व
गुजरात प्रान्त की धार्मिक मान्यता के अनुसार गोगा जी की पूजा करने से संतानहीन को संतान की प्राप्ति होती है, बच्चों वाली महिलाओं के बच्चे दीधार्यु होते है, गोगाजी उनके बालकों के जीवन की रक्षा करते है। इसीलिये मातायें अपने बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य और लम्बी आयु की कामना के साथ गोगा जी की पूजा-अर्चना करती हैं।
कैसे करें पूजा
शास्त्र पद्धति गदाधर के अनुसार इस दिन घर की दक्षिण पश्चिमी दिशा में कोयले अथवा काले चूर्णों से काले रंगों से सर्पों का चित्र बनाकर उनकी पूजा करने का विधान है. सर्प पूजन करने से सर्प प्रसन्न होते हैं और वंशजों को कोई डर नहीं सताता।
भगवान कृष्ण ने भागवत में कहा है कि ह्यमयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इवह्ण अर्थात सूत्र अविच्छिन्नता का प्रतीक है क्योंकि सूत्र (धागा) बिखरे हुए मोतियों को अपने में पिरोकर एक माला के रूप में एकाकार बनाता है. माला के सूत्र की तरह रक्षासूत्र भी लोगों को जोड़ता है.
पूजन की विधि
इस दिन प्रात: काल दैनिक कृत से निवृत होकर विधिवत हरिद्रा गणेश, सर्पनाथ भैरव और शिव के ताड़केश्वर स्वरुप का विधिवत पूजन करें.
– धूप दीप पुष्प गंध और नववैध अर्पित करें और गणेश जी पर दूर्वा, सिंदूर लड्डू चढ़ाएं।
– भैरव जी पर उड़द गुड़ और सिंदूर अर्पित करें और ताड़ के पत्ते पर ‘त्रीं ताडकेश्वर नम:’ लिखकर घर के उत्तर दिशा के द्वार पर टांग दें।
– ताड़ के पत्ते के साथ-साथ एक पीले रंग की पोटली में दूर्वा, अक्षत, पीली सरसों, कुशा और हल्दी बांधकर टांग दें।
– पूजन में गणेश भैरव और शिव के चित्रों पर रक्षासूत्र स्पर्श करवाकर घर के सभी सदस्यों को बांधें.
इस मंत्र का करें जाप
‘मंत्र: कुरुल्ले हुं फट्स्वाहा।।’
जाप पूरा होने के बाद रात्रि के समय नाग, बैताल ब्रह्मराक्षस और दश दिगपाल आदि का खीर से पूजन कर रात्रि के समय उनके लिए घर की दक्षिण पश्चिम दिशा में खीर का भोग रखें. बाएं हाथ में ली हुई काले नमक की डली और उड़द पीले कपड़े में बांधकर घर की दक्षिण पश्चिम दिशा में छुपाकर रख दें. इस पूजन और उपाय से सारे परिवार के प्राणों की रक्षा होती है. इस पूजन से सर्प और देव, गन्धर्व प्रसन्न होते हैं और वंशजों की रक्षा होती है।