राज्यसभा में बिट्टू का आना और राठौड़ और पूनिया का रह जाना

0
(0)

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के पोते रवनीत सिंह बिट्टू को राजस्थान से राज्यसभा का सांसद प्रत्याशी घोषित किया गया है। भाजपा ने ये कारनामा पंजाब में अपना जलवा पैदा करने के लिए किया है। यह घोषणा कोई चौंकाने वाली नहीं है। यह तो लंगर है इसी तरह तकसीम होता है। बोले सो निहाल सत श्री अकाल।

कुछ समय पहले जब राजस्थान का सोशल मीडिया राजेन्द्र सिंह राठौड़ और सतीश पूनिया को राज्यसभा के सांसद का टिकिट दिए जाने पर आमादा नजर आ रहा था और यू ट्यूबर्स उनके पक्ष में हाका कर रहे थे तब भी मैंने ब्लॉग लिख कर दो टूक शब्दों में लिख दिया था कि न केवल राठौड़ और पूनिया को बल्कि राजस्थान के किसी नेता को राज्यसभा का एडमिशन कार्ड नहीं मिलेगा। राठौड़ और पूनिया भले ही दिल्ली के सारे सूत्रों के संपर्क में रह कर अपनी राह आसान कर रहे थे मगर ये नहीं सोच पा रहे थे कि उनकी छवि दिल्ली की नजरों में कितनी गिर चुकी है। दोनों ही नेताओं ने विधानसभा की टिकिटों को किस तरह लंगर की तरह बाँटा वह पूरी भाजपा जानती है। कहानियों की जांच की जाए तो धन प्रबन्धन से टिकिट दिए जाने का सच भी सामने आ सकता है।

इस बारे में पूनिया का नाम बहुत चर्चित हुआ। आज भी हरियाणा में उनको लेकर तरह तरह की कहानियां प्रचलित हैं। अफवाएँ विश्वसनीय नहीं होती मगर उनको खारिज भी नहीं किया जा सकता।

बिट्टू का राजस्थान की राजनीति से कोई लेना देना नहीं लेकिन जैसा मैंने पहले ही लिख दिया था कि बाहर के राज्यों में भाजपा अपना जनाधार स्थापित करने के लिए बाहर के नेताओं को ही उपकृत करेगी।

पंजाब ही नहीं हरियाणा से भी राज्यसभा में पूर्व मुख्यमंत्री बंसी लाल की बाँसुरी उनकी पुत्रवधु किरण चौधरी को दिल्ली भेजा गया है। बिट्टू और किरण चौधरी दोनों ही मूलत: कांग्रेसी हैं। सनातनी विचारधारा से उनका कोई लेना देना नहीं। संघ से भी इनकी अनुमति नहीं है।

राजस्थान और हरियाणा में जिस तरह स्थानीय नेताओं को राज्यसभा से टिकिट नहीं दी गई उसी अंदाज में मध्यप्रदेश में भी खेल खेला गया है। जो नेता अतिउत्साह में मुँह धोकर बैठे हुए थे अब दिल्ली को गालियाँ बक रहे हैं। वहाँ से केरल के खिलाड़ी जॉर्ज कुरियन को टिकिट दिया गया है।

इसी प्रकार भाजपा ने बीजेडी की सांसद मोहन्ता से उनकी सीट से इस्तीफा दिलवाया और अब उन्हें वह राज्यसभा का सदस्य बनाकर पुन: भेजना चाहती है।

एक और उल्लेखनीय तथ्य है कि भाजपा ने अपने हारे हुए किसी सांसद जैसे स्मृति ईरानी या चंद्रशेखर या अन्य कई नेताओं को राज्यसभा में भेजने का कोई प्रयास नहीं किया है।

भाजपा के इस फैसले से राजस्थान और मध्यप्रदेश में भारी असंतोष व्याप्त हो गया है। जो नेता अपने आपको सशक्त उम्मीदवार मान कर चल रहे थे वे सब हांशिए पर आने की वजह से गुस्साए हुए हैं। हो सकता है राजस्थान के उपचुनावों और हरियाणा के चुनावों में उनकी भूमिका संदिग्ध हो जाए।

डॉ सतीश पूनिया को हरियाणा का प्रभारी बनाकर भले ही भाजपा ने तीतर का एक बाल कम कर लिया हो मगर दूसरा बाल अब भी अपनी जगह कायम है। कुछ गलत फहमियां इनमें भी अभी खत्म नहीं हुई हैं। बर्फ में लगने के बाद भी इनके ठसके कम नहीं हुए हैं।

हरियाणा में भाजपा की बुरी तरह से शिकस्त होना तय है इसलिए डॉ पूनिया के रुतबे का कचरा होना भी तय लग रहा है। चौबे जी दुब्बे जी बन कर लौटेंगे।

इधर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा दोनों ही नेताओं के भविष्य को लेकर आश्वस्त हैं। राज्यसभा से राठौड़ के न जाने से उनका दिल्ली ने दिल जीत लिया है। अब देखना यह है कि वसुंधरा को उपचुनावों ने क्या दायित्व और सम्मान मिलता है।

क्या आप इस पोस्ट को रेटिंग दे सकते हैं?

इसे रेट करने के लिए किसी स्टार पर क्लिक करें!

औसत श्रेणी 0 / 5. वोटों की संख्या: 0

अब तक कोई वोट नहीं! इस पोस्ट को रेट करने वाले पहले व्यक्ति बनें।

Leave a Comment