सिद्धांत, विचारधारा, मूल्यों की बात करने वाली भाजपा में भी सभी राजनीतिक बुराइयां समाहित
राज्यसभा की उम्मीदवारी में भी गैरों पर करम,अपनों पर सितम
भारतीय जनता पार्टी ने राज्यसभा चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा में एक बार फिर ये साबित कर दिया है कि उसकी भी कथनी और करनी में उतना ही अंतर है, जितना कांग्रेस और अन्य पार्टियों की। खुद को विचारधारा और संगठन के स्तर पर दूसरों से अलग बताने वाली भाजपा अब सत्ता की राजनीति में इतना रम गई है कि उसे विचारधारा, संगठन और कार्यकतार्ओं की भावनाओं से कोई मतलब ही नहीं रह गया। लोकसभा चुनाव से पहले कई राज्यों में तोड़फोड़ कर कांग्रेस व क्षेत्रीय दलों के नेताओं को शामिल करने की भाजपा ने जो मुहिम चलाई थी, ( जिसमें कई बड़े घोटालों के आरोपी थे) उसका नतीजा उसने परिणामों में भुगत लिया था। जब उसकी सीटें 303 से घटकर 240 पर आ गई थी। वह स्पष्ट बहुमत तक नहीं हासिल कर सकी और तीसरी बार मोदी सरकार बैसाखी पर टिकी एनडीए सरकार में बदल गई है।
राजनीति में जिन बुराइयों से बचने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित उसके अन्य नेता जो भाषण देते हैं,उसका हकीकत से कोई वास्ता नहीं है। कांग्रेस पर भ्रष्टाचारी नेताओं को आश्रय देने, वंशवाद और परिवारवाद को पनपाने और जातिवाद के आधार पर राजनीति करने के आरोप लगाने वाली भाजपा में भी अब यह सब बुराइयां समाहित हो चुकी है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस व अन्य दलों से आए कई नेताओं को तुरंत टिकट देकर मैदान में उतारने वाली भाजपा ने राज्यसभा में भी लगभग उसी को दोहराया है।
स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि राजनीति मे वंशवाद और जातिवाद से देश को छुटकारा दिलाया जाना चाहिए। लेकिन सप्ताह भर बाद ही इससे पार्टी मुकर गई। राजस्थान और हरियाणा से उसने जिन उम्मीदवारों को राज्यसभा के लिए मैदान में उतारा है,वह मोदी और भाजपा की कथनी और करनी को साफ बता रहे हैं। यानि मोदी भी अब बातें ही कर रहे हैं।
पहले बात राजस्थान की। जहां से राज्यसभा में जाने के लिए कई योग्य और वरिष्ठ भाजपा नेता होने के बाद भी पार्टी ने पंजाब के दलबदलू नेता और महज पांच महीने पहले कांग्रेस से भाजपा में आए रवनीत सिंह बिट्टू को मैदान में उतारा है। जिनका जीतना तय है,क्योंकि कांग्रेस अपना उम्मीदवारी ही नहीं उतार रही है। बिट्टू लुधियाना से दो बार कांग्रेस के सांसद रहे हैं। लेकिन इस साल मार्च में भाजपा में आकर उसके टिकट पर लुधियाना से ही लोकसभा चुनाव लड़े और हार गए। लेकिन फिर भी उन्हें केंद्रीय मंत्री बनाया गया,क्योंकि अगले माह हरियाणा में चुनाव है,इसलिए वोटों की राजनीति को देखते हुए उन्हें अब राजस्थान से राज्यसभा भेजा जा रहा है।
बिट्टू भी राजनीतिक परिवार से आते हैं। वह पंजाब के मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस नेता बेअंत सिंह के पोते हैं। जबकि उनके पिता तेजसिंह भी पंजाब के मंत्री रह चुके हैं। यानी वंशवाद की भाजपा में सबसे ताजा मिसाल। भाजपा अब तक राजस्थान से बाहरी नेताओं को राज्यसभा में भेजने से परहेज करती रही है। इसलिए अभी उसके चारों राज्यसभा सांसद राजेंद्र गहलोत, घनश्याम तिवाड़ी, चुन्नीलाल गरासिया और मदन राठौड़ राज्य के ही है। लेकिन अब पंजाब के बिट्टू राजस्थान के सांसद होंगे।
हालांकि कांग्रेस ने हमेशा से राजस्थान को बाहरी नेताओं को राज्यसभा भेजने के लिए सुरक्षित राज्य माना है। अभी भी यहां से पांच में से चार राज्यसभा सदस्य सोनिया गांधी, रणदीप सुरजेवाला,मुकुल वासनिक और प्रमोद तिवारी अलग-अलग राज्यों से है। राजस्थान के नाम पर नीरज डांगी सांसद है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने दिल्ली में अपनी राजनीतिक पकड़ को बनाए रखने के लिए ऐसे नेताओं को राज्यसभा भेजने के लिए राजस्थान खुला रखा, जो दिल्ली में उनकी मदद करते रहे और गांधी परिवार के करीबी थे। भाजपा से इस बार राज्यसभा के लिए राजेंद्र राठौड़, सतीश पूनिया, अरुण चतुवेर्दी जैसे नाम शामिल थे। ये सभी राजस्थान में भाजपा की राजनीति के कर्मठ नेता माने जाते हैं। लेकिन उनकी जगह पार्टी ने दलबदलू बाहरी नेता को प्राथमिकता दी।
उधर हरियाणा में उसने पिछले महीने ही कांग्रेस से भाजपा में आई किरण चौधरी को उम्मीदवार बनाया है। किरण चौधरी हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल के बेटे स्वर्गीय सुरेंद्र सिंह की पत्नी है,जो खुद भी तीन बार सांसद रह चुके हैं। चौधरी पांच बार की विधायक है और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से अपनी बेटी श्रुति चौधरी के लिए टिकट मांगा था। लेकिन नहीं मिलने पर कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गई और राज्यसभा की टिकट पा गई। अब माना जा रहा है कि उनकी तोशाम सीट से उनकी बेटी को भाजपा विधानसभा का टिकट देगी। चौधरी के जरिए भाजपा हरियाणा में जाट और अहीरवाल वोट बैंक साधना चाहती है।
लेकिन सवाल ये है कि जो भाजपा संगठन स्तर पर विश्व की सबसे बड़ी पार्टी मानी जाती है, क्या उसमें योग्य राज्य स्तरीय नेताओं की इतनी कमी है कि उसे राज्यसभा में दूसरी पार्टियों से आए नेताओं को भेजना पड़ रहा है। खुद को पार्टी के लिए खपा देने वाले नेता क्या इसी तरह मुंह ताकते रहेंगे? जिस तेजी से भाजपा का कांग्रेसीकरण हो रहा है,उसे देखते हुए यही कहा जा सकता है की राजनीति में सत्ता के लिए सिद्धांत, विचारधारा, मूल्य, सभी को ताक में रख दिया जाता है। मंच से भाषण देना और उस पर अमल करना दो अलग-अलग बातें हैं और राजनीति में यह संभव है। यानि लोगों को बरगलाने के लिए भाषण देने की बाजीगरी और सत्ता को साधने के लिए राजनीतिक कलाकारी ही हकीकत है।