क्या पॉक्सो कोर्ट का फैसला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी बरकरार रहेगा? क्योंकि 1998 में जिन 8 दोषियों को उम्र कैद की सजा मिली उनमें से चार को हाईकोर्ट ने बरी कर दिया तथा चार को सुप्रीम कोर्ट ने सजा दस वर्ष कर दी
मुस्लिम देशों में तो धार्मिक कानून के अनुसार बलात्कारियों को सरेआम फांसी दी जाती है
32 वर्ष बाद आए फैसले पर जसवंत दारा का कार्टून
20 अगस्त को अजमेर के बहुचर्चित फोटो ब्लैकमेल कांड के छह दोषियों सोहेल गनी, नफीस चिश्ती, जमीर हुसैन, सलीम चिश्ती, नसीम उर्फ टारजन तथा इकबाल अजमेरी को पॉक्सो कोर्ट के न्यायाधीश रंजन सिंह ने उम्र कैद की सजा सुनाई। यानी लड़कियों से बलात्कार करने वाले यह अभियुक्त ताउम्र जेल में रहेंगे। अदालत ने अपने फैसले में लिखा कि अभियुक्तों ने आपस में मिलकर पीड़िताओं को अपने प्रेम जाल में फंसाया और फिर अश्लील फोटो खींचकर ब्लैकमेल किया। इतना ही नहीं इन अभियुक्तों ने ब्लैकमेल की शिकार लड़कियों को अपनी सहेलियों को भी बुलाने के लिए मजबूर किया।
ऐसे अभियुक्तों के खिलाफ सजा के मामले में सहानुभूति और उदारतापूर्ण कार्यवाही करना किसी भी प्रकार से अपेक्षित नहीं है। ऐसे में अपराधियों को सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए। इसमें कोई दोराय नहीं कि न्यायाधीश रंजन सिंह का यह फैसला समाज में प्रभाव डालने वाला है। बलात्कार करने वालों को यदि पूरी उम्र जेल में रहना पड़े तो समाज में अपराधों की संख्या कम हो सकती है, इसलिए अधिकांश मुस्लिम देशों में बलात्कार के आरोपियों को सरेआम फांसी दे दी जाती है।
फांसी के दृश्य को देखकर ही दूसरे व्यक्ति अपराध करने से डरते हैं, लेकिन भारत में लोकतंत्र है और जो संविधान बनाया गया है, उसमें जिला अदालत के फैसले को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। अजमेर के इसी बहुचर्चित फोटो ब्लैकमेल कांड में 1998 में भी 8 दोषियों को उम्रकैद की सजा मिली थी, लेकिन हाईकोर्ट ने परवेज अंसारी, महेश लुधानी, हरीश तोलानी और कैलाश सोनी को बरी कर दिया तथा चार दोषियों इसरत अली, अनवर चिश्ती, पुत्तन इलाहवादी तथा शम्शुद्दीन उर्फ मेराडोना की साज सुप्रीम कोर्ट ने 10 वर्ष कर दी।
वर्ष 2001 में हुए इन फैसलों के बाद ही सभी दोषी आज सीना तान कर शहर की गलियों में घूम रहे हैं। स्वाभाविक है कि 20 अगस्त को जिन छह दोषियों को उम्रकैद की सजा मिली है, वे भी भारतीय संविधान की दुहाई देकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे, इसलिए सवाल उठता है कि अजमेर की कोर्ट का फैसला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में बरकरार रहेगा ?
आसान नहीं था सजा दिलवाना:
अजमेर के अभियोजन विभाग के सहायक निदेशक और इस प्रकरण में सरकार व पीड़ित लड़कियों का पक्ष प्रभावी तरीके से रखने वाले एडवोकेट वीरेंद्र सिंह राठौड़ का कहना है कि पॉक्सो कोर्ट से दोषियों को सजा दिलाने आसान नहीं था। दोषियों ने एक रणनीति के तहत बारी बारी से पुलिस के समक्ष सरेंडर किया। पुलिस को हार बार चार्जशीट दायर करनी पड़ी। ऐसे में पीड़ित लड़कियों को बार बार अदालत में बयान देने के लिए आना पड़ा। दोषियों ने विलंब करने के लिए जो रणनीति अपनाई उसी का परिणाम है कि 32 साल बाद कोर्ट का फैसला आया।
पुलिस ने प्रारंभिक तौर पर 16 लड़कियों के बयान दर्ज किए थे, लेकिन अदालतों के चक्कर लगाते लगाते पीड़ित लड़कियों की हिम्मत टूट गई, लेकिन फिर भी 6 लड़कियां अंतिम समय तक टिकी रही और आज इन लड़कियों की हिम्मत की वजह से ही बलात्कारियों को उम्र कैद की सजा मिल पाई है। राठौड़ ने कहा कि पॉक्सो कोर्ट के न्यायाधीश रंजन सिंह ने एक प्रभावी फैसला दिया है और इसमें दोषियों में बचाव का कोई मार्ग नहीं है। एडवोकेट राठौड़ ने उम्मीद जताई की अजमेर की कोर्ट का फैसला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में बरकरार रहेगा। 1998 में हुए फैसले के कुछ दोषियों को बलात्कार के प्रकरण से सीधा संबंध नहीं था। हो सकता है कि इसी का फायदा मिला हो, लेकिन अधिकांश दोषी बलात्कार के आरोपी साबित हुए है। इन 32 वर्षों में कई पीड़ित लड़कियां तो दादी और नानी भी बन गई।
उन्होंने बताया कि आरोपी इतने प्रभावशाली थे कि एक ने तो अमेरिका की नागरिकता भी हासिल कर ली। मालूम हो कि 1992 में जब ब्लैकमेल कांड उजागर हुआ था, तब मास्टर मांड नफीस चिश्ती यूथ कांग्रेस का उपाध्यक्ष और अनवर चिश्ती संयुक्त सचिव था। यानी राजनीतिक दृष्टि से भी बलात्कारी प्रभावशाली थे। अजमेर के मेयर रहे धर्मेन्द्र गहलोत का कहना है कि उनके राजनीतिक गुरु वीर कुमार की सक्रियता की वजह से ही ब्लैकमेल कांड उजागर हुआ था। तब भैरोसिंह शेखावत मुख्यमंत्री थे और सीआईडी सीबी से विस्तृत जांच करवाई गई। नगर निगम के मौजूदा डिप्टी मेयर नीरज जैन ने इस बात पर अफसोस जताया कि अधिकांश दोषी एक धार्मिक स्थल से जुड़े हुए हैं और उनका काम खिदमत करना है। लेकिन फिर भी ऐसे लोगों ने बलात्कार जैसा घिनौना कृत्य किया।
दारा का काटूर्न:
32 वर्ष बाद ब्लैकमेल कांड के फैसले पर कार्टूनिस्ट जसवंत दारा ने एक सटीक कार्टून बनाया है। इस कार्टून में पीड़ित महिलाओं की स्थिति को दशार्या गया है। कार्टून को मेरे फेसबुक पेज पर देखा जा सकता है।