मोदी और शाह को हाशिए पर बैठा कर भाजपा के सबसे ताकतवर नेता हुए राजनाथ सिंह

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भारतीय जनता पार्टी के इस समय सबसे बड़ा राष्ट्रीय नेता कौन है? इस सवाल के उत्तर में शायद ही कोई पत्रकार हो जो कहे कि राजनाथ सिंह! अधिकांशत: पत्रकार और लोग आज भी मोदी और शाह की जोड़ी को देश का सबसे बड़ा नेता मानते हैं। हो सकता है आज भी मेरे यह कहे जाने पर कि राजनाथ सिंह भाजपा के सबसे ताकतवर नेता बन चुके हैं लोग मुझे अल्पबुद्धि का पत्रकार कह दें मगर मेरा दावा है कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में मोदी और शाह की ताकत का गुब्बारा पंक्चर हो गया है।

हाँ, मैं मानता हूं कि लोकसभा चुनाव से पहले मोदी और शाह की ताकत और हौंसले सातवें आसमान पर थे। उनके तरल पदार्थ से चिराग जलते थे मगर चार सौ पार का जब बेड़ा पार नहीं हो सका तो उनके तेल से भी चरागों ने जलने से इंकार कर दिया है। कल तक मोदी है तो मुमकिन है का नारा भाजपा लगा कर गर्व का अनुभव करती थी। मोदी को गारंटी की गारंटी मान कर जुमले इजाद हुआ करते थे मगर आज की तारीख में मोदी नामुमकिन और उनकी गारन्टी कहाँ घुस चुकी है यह बताने की जरूरत नहीं। पूरा देश ही इसपर चर्चा करता नजर आ रहा है।

राजनाथ सिंह ने मोदी और शाह की जोड़ी से किस तरह ताल मेल बनाकर अपने आपको भाजपा की मूल धारा में काबिज रखा यह पूरा देश जानता है। कितनी बार कैसे कैसे अपमान के घूँट पिए। कैसे कैसे मन मसोस कर आत्मा को मारा। वो सब काम किए जो उनको सैद्धांतिक रूप से मंजूर नहीं थे। मंच पर वह अपमान भी बर्दाश्त किया जब माला पहनते हुए उनको शाह ने माला के घेरे से निकाल दिया। अन्य घटना में मोदी के साथ आगे बढ़ने पर उनको पीछे धकेल दिया गया। यह तो राजनाथ सिंह ही थे जो सारे अपमान सह कर भी पार्टी का हिस्सा बने रहे।

उनके अच्छे दिन अब लौट आए हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा से आर एस एस के लिए जो कहलवाया गया उसके बाद से ही राजनाथ सिंह की खोई हुई कमजोरी वापस लौटने लगी। जैसे उनको शिलाजीत का पाउच मिल गया।

यह शिला की जीत भाजपा की करारी हार से मुमकिन हुई। लोकसभा में भाजपा 240 पर अटक गई। संघ को माकूल मौका मिल गया। मोदी और शाह को लेकर संघ ने आक्रामक रूख इख्तियार कर लिया। बैशाखी पर टिकी सरकार पर संघ के नेता भारी पड़ने लगे और मोदी शाह की जोड़ी बैक फुट पर आ गई।

जो राजनाथ सिंह नब्बे फीसदी बर्फ़ में लगा दिए गए थे फिर बाहर आ गए। संघ ने उनको अपना सिपहसालार बना दिया। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर संघ ने अपनी दावेदारी कर दी। राजनाथ सिंह उनकी तरफ से आगे बढ़ाए गए तो हाल यह हुआ कि कल तक पार्टी की जो बैठकें अमित शाह के घर पर हुआ करती थीं राजनाथ सिंह के निवास पर होने लगीं। पहले राजनाथ सिंह शाह के घर की देहरी लाँघा करते थे अब शाह को मजबूरन राजनाथ जी के घर आना पड़ता है।

ऐसा सार्वजनिक रूप से दिखाई दे रहा है कि शाह और मोदी की तानाशाही अब पूरी तरह ठिकाने लग चुकी है। उत्तर प्रदेश की राजनीति पर जिस तरह शाह हावी हुए थे और उन्होंने योगी आदित्यनाथ के लिए खाई खोदना शुरू कर दी थी अब वही योगी शाह की घोड़ी बनाने पर आमादा हो चुके हैं। आर एस एस के तेवरों ने योगी और सिंह को पुन: ऊर्जा स्रोत बना दिया है।

मुझे तो लग रहा है कि वर्तमान परिस्थितियों में आर एस एस ने ये तय कर लिया है कि राजनाथ सिंह को ही अध्यक्ष बना दिया जाए। यूँ महाराष्ट्र के नेता देवेंद्र फडणवीस भी संघ की नजर में हैं।

यदि राजनाथ सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाता है और उत्तर प्रदेश के उपचुनावों में योगी का जादू चल निकलता है तो फिर नई क्रांति के लिए संघ तैयार हो जाएगा। यह क्रांति क्या होगी बताने की जरूरत नहीं। क्रांति के सूत्रधार भले ही मोहन भागवत हों पर नायक नितिन गडकरी होंगे। राजनीतिक पंडितो का तो मानना है कि इस जोड़ी का युग समाप्त होने के लिए यह आखरी कदम होगा।

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