कृष्ण ओर काली स्वरूप बहुत ही दुर्लभ हैं इनका एक साथ स्मरण करने से कठिन समस्याओ का भी समाधान हो जाता हैं।
जीवन मे विवाह की समस्या या पारिवारिक समस्या या पति पत्नी मे अनबन दांम्पत्यसुख की कमी या घरेलू जीवन मे अर्थ समस्या, प्रेम संबंधी समस्या, रोग संबंधी समस्या साथ ही तंत्र ओर बाधाओ से मुक्ति होती हैं।
ॐ क्रंं क्रीं कृष्णाय कालिकायै नमो नम:।
ॐ क्लीं काली कृष्णाय क्रीं नम:।
ॐ क्लीं कृष्णकाल्यै क्लीं नम:।
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं कृष्ण काल्यै क्लीं ह्रीं श्रीं नम:।
ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं कृष्ण काल्यै क्रीं श्रीं ह्रीं नम:।
ॐ क्रीं क्रीं श्यामाकाल्यै क्री क्रीं नम:।
ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं श्यामा काल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं
नम: (स्वाहा)।
ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं कृष्णकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं
नम: (स्वाहा)।
ॐ क्लीं काली महाकाली आदिकाली परमेश्वरी।
सर्वानन्दकरे में देवी नारायणि नमोऽस्तुते।।
ॐ कृष्णकाल्यै च विदमहे परमेश्वर्यै धीमहि तन्नो
आदिकाली; प्रचोदयात।।
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोहलता कण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
हमारे सर्वेष्ठ पवित्र गर्न्थो में से एक है देवी पुराण, यह परम पवित्र पुराण अपने अंदर अखिल शास्त्रो के रहस्यो के समेटे हुए, आगमो में अपना पवित्र स्थान रखता है. इस पुराण में 18000 श्लोक है. इस पवित्र ग्रन्थ के रचियता महृषि वेदव्यास जी है.
1. देवी पुराण में यह उल्लेखित है की श्री कृष्ण भगवान विष्णु के नहीं बल्कि माँ काली के अवतार है. तथा यही नहीं भगवान श्री कृष्ण की प्रेमिका राधाजी, देवी लक्ष्मी नहीं बल्कि भगवान शिव की अवतार बताई गई है.
देवी पुराण में यह वर्णित है की भगवान शिव ने इस धरती में फैलते पाप का विनाश करने के लिए द्वापर युग के अंत में माँ काली को आदेश दिया था की वे मायापुरुष के रूप में देवकी के गर्भ से अवतरित हो व पापियो का नाश करे.
2. देवी पुराण में यह भी वर्णित है की स्वयं महादेव शिव वृषभानु की पुत्री रूप में जन्मे थे तथा उनका नाम राधा था व भगवान श्रीकृष्ण की आठ प्रमुख पटरानियाँ भी महादेव शिव के आठ रूपों की ही अंश थी. देवी पार्वती की जया विजया नामक दो सखिया श्री दाम एवम वासुदाम नामक गोप के रूप में अवतरित हुए थे.
3. देवी पुराण के अनुसार बलराम भगवान विष्णु के अवतार थे, तथा जब पांडव अपने वनवास में भटक रहे थे तो वे कामख्या पीठ पहुचे थे वहां पांडवो ने देवी की तपस्या करी थी. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवी प्रकट हुई तथा उन्होंने पांडवो को वरदान दिया था की वे श्री कृष्ण के रूप में उनकी सहायता करेंगी तथा कोरवो का नाश करेंगी.
4. जब महाभारत युद्ध समाप्त हुआ तो माँ काली के रूप में अवतरित भगवान श्री कृष्ण ने वापस अपने धाम में जाने की इच्छा जताई. इसके लिए स्वयं नन्दी महाराज देवी माँ काली को वापस लेने के लिए रत्नजड़ित रथ जिसे सिंह घसीट रह था धरती में लेकर आये
5. कार्तिक कृष्ण अमावस्या को ही भगवान कृष्ण ने अपने
अपने शरीर का त्याग किया था और कार्तिक कृष्ण अमावस्या को ही भगवान श्री कृष्ण रूपी देवी काली जब अपने धाम कैलाश पर्वत को वापस लौटने के लिए रत्नजड़ित उस रथ पर बैठी तो उनके साथ उनकी आठ पटरानियां भी भगवान शिव में मिलकर कैलाश धाम को देवी काली के साथ वापस लोट चली….तब से देवी महाकाली के भक्त कार्तिक कृष्ण अमावस्या को दीपोत्सव कर दीपावली पर्व मनाते हैं।
(बंगाल में शक्ति मत के अनुयाई दीपावली पर महाकाली की पूजा करते हैं)