अब्दुल्ला खानदान के घातक इरादे फिर सामने आए
सितंबर में होने वाले जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के मद्देनजर नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 19 अगस्त को अपना चुनावी घोषणा पत्र जारी किया है। पार्टी के उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि यदि उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो कश्मीर समस्या के समाधान के लिए पड़ोसी पाकिस्तान से शांति वार्ता की जाएगी। इसके साथ ही प्रदेश में अनुच्छेद 370 की पुन: बहाली के लिए विधानसभा में प्रस्ताव पास किया जाएगा।
घोषणा पत्र में 200 यूनिट बिजली फ्री देने जैसे वादे भी किए गए हैं, लेकिन दुश्मन देश पाकिस्तान से वार्ता और 370 की बहाली से नेशनल कॉन्फ्रेंस के खतरनाक इरादों का अंदाजा लगा लेना चाहिए। सब जानते हैं कि देश के विभाजन के बाद से अब्दुल्ला खानदान ने ही जम्मू कश्मीर पर सबसे ज्यादा शासन किया है। अमर अब्दुल्ला के दादा शेख अब्दुल्ला और फारुख अब्दुल्ला लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे हैं। शेख अब्दुल्ला की वजह से ही अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को लागू किया गया।
370 की वजह से ही जम्मू कश्मीर खासकर कश्मीर घाटी में आतंकवाद पनपा। चार लाख हिंदुओं को कश्मीर से भागना पड़ा। सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी आम बात हो गई थी। धरती का स्वर्ग माने जाने वाली कश्मीर घाटी पर्यटन विहीन हो गई। कश्मीरियों को दो वक्त की रोटी मिलना मुश्किल हो गया, लेकिन अगस्त 2019 में जब अनुच्छेद 370 को हटाया गया, तब से कश्मीर में हालात सामान्य होने लगे। धीरे धीरे पर्यटन भी बढ़ा और आज कश्मीर घाटी के बाजारों में रौनक नजर आने लगी है।
पर्यटकों के आने से कश्मीरी मुसलमानों को रोजगार भी मिलना है। श्रीनगर की झीलों में बोट चलाने वाले मुसलमानों भी मानते हैं कि अब खुशहाली के दिन है। श्रीनगर के लाल चौक में तिरंगा भी शान से लहर रहा है। यह सही है कि पाकिस्तान से आए प्रशिक्षित आतंकी हिंसक घटनाएं करने में सफल हो जाते हैं। लेकिन पहले और अब के हालातों में रात दिन का अंतर है। अब सरकारी योजनाओं का लाभ भी कश्मीरियों को मिल रहा है, जबकि पहले राजनेता ही भ्रष्टाचार के कारण योजनाओं को खा जाते थे। इतनी खुशहाली के बाद भी अब्दुल्ला खानदान के उमर अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर में 370 की बहाली और पाकिस्तान से वार्ता करने की बात कह रहे है।
इससे अब्दुल्ला खानदान के खतरनाक इरादों का अंदाजा लगाया जा सकता है। अब कश्मीरियों को तय करना है कि वह अनुच्छेद 370 वाला आतंकवाद चाहते हैं या फिर मौजूदा समय की खुशहाली। कश्मीरी मतदाता माने या नहीं, लेकिन यदि नेशनल कान्फ्रेंस और कांग्रेस जैसे उनके सहयोगी दल सत्ता में आते हैं तो जम्मू कश्मीर में हालात पहले की तरह हो सकते है। अनुच्छेद 370 के हटने के बाद हमारे सुरक्षाबलों ने बड़ी मुश्किल से प्रदेश के हालातों को सुधारा है। चूंकि अगस्त 2019 के बाद से ही जम्मू कश्मीर में केंद्र का शासन रहा, इसलिए पाकिस्तान के दखल को भी रोका गया।
पाकिस्तान का दखल रुकने से भी हालात सामान्य हुए है। केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने हमारे कश्मीर पर पाकिस्तान से कभी कोई बात नहीं की। जम्मू कश्मीर भारत का है, इसलिए पाकिस्तान से बात करने की कोई जरूरत नहीं है। जबकि अब्दुल्ला खानदान आज भी कश्मीर को समस्या मानता है और पाकिस्तान से वार्ता करने को इच्छुक है। अनुच्छेद 370 के हटने के बाद जम्मू कश्मीर में जो हालात सामान्य हुए उसमें तो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को भी भारत की सीमाओं में शामिल करने के प्रयास हो रहे है। जो कश्मीरी पाकिस्तान के कब्जे में है, वह भी चाहते हैं कि भारत में शामिल हो जाए।