कर्क संक्रांति और सिंह संक्रांति में किए जाने वाले कार्य
ईश्वर बोले हे सनत्कुमार ! श्रावण मास में कर्क संक्रांति तथा सिंह संक्रांति आने पर उस समय जो कृत्य किए जाते हैं उन्हें भी मैं आपसे कहता हूँ. कर्क संक्रांति तथा सिंह संक्रांति के बीच की अवधि में सभी नदियाँ रजस्वला रहती हैं अत: समुद्रगामिनी नदियों को छोड़कर उन सभी में स्नान नहीं करना चाहिए. कुछ ऋषियों ने यह कहा है कि अगस्त्य के उदयपर्यन्त ही वे रजस्वला रहती हैं. जब तक दक्षिण दिशा के आभूषण स्वरुप अगस्त्य उदित नहीं होते तभी तक वे नदियाँ रजस्वला रहती हैं और अल्प जलवाली कही जाती हैं. जो नदियाँ पृथ्वी पर ग्रीष्म-ऋतू में सूख जाती हैं, वषार्काल में जब तक दस दिन न बीत जाएं तब तक उनमे स्नान नहीं करना चाहिए. जिन नदियों की गति स्वत: आठ हजार धनुष तक नहीं हो जाती तब तक वे नदी शब्द की संज्ञावली नहीं होती अपितु वे गर्त कही जाती हैं।
कर्क संक्रांति के प्रारम्भ में तीन दिन तक महानदियां रजस्वला रहती हैं, वे स्त्रियों की भाँति चौथे दिन शुद्ध हो जाती हैं. हे मुने ! अब मैं महानदियों को बताऊँगा, आप सावधान होकर सुनिए. गोदावरी, भीमरथी, तुंगभद्रा, वेनिका, तापी, पयोष्णी ये छह नदियाँ विंध्य के दक्षिण में कही गई हैं. भागीरथी, नर्मदा, यमुना, सरस्वती, विशोका, वितस्ता ये छह नदियाँ विंध्य के उत्तर में कही गई हैं. ये बारह महानदियां देवर्षिक्षेत्र से उत्पन्न हुई हैं. हे मुने ! देविका, कावेरी, वंजरा, कृष्णा ये महानदियां कर्क संक्रमण के प्रारम्भ में एक दिन तक रजस्वला रहती हैं, गौतमी नामक नदी कर्क संक्रमण होने पर तीन दिनों तक रजस्वला रहती है।
चंद्रभागा, सती, सिंधु, सरयू, नर्मदा, गंगा, यमुना, प्लक्षजाला, सरस्वती ये जो नादसंज्ञावाली नदियाँ हैं, वे रजोदोष से युक्त नहीं होती हैं. शोण, सिंधु, हिरण्य, कोकिल, आहित, घर्घर और शतद्रु ये सात नाद पवित्र कहे गए हैं. धर्मद्रव्यमयी गंगा, पवित्र यमुना तथा सरस्वती ये नदियाँ गुप्त रजोदोषवाली होती हैं, अत: ये सभी अवस्थाओं में निर्मल रहती हैं. जल का यह रजोदोष नदी तट पर रहने वालों को नहीं होता है. रजोधर्म से दूषित जल भी गंगा जल से पवित्र हो जाता है. प्रसवावस्था वाली बकरियां, गायें, भैंसे व स्त्रियाँ और भूमि पर वृष्टि के प्रारम्भ का जल ये दस रात व्यतीत होने पर शुद्ध हो जाते हैं. कुएँ तथा बावली के अभाव में अन्य नदियों का जल अमृत होता है. रजोधर्म से दूषित काल में भी ग्रामभोग नदी दोषमय नहीं होती है. दूसरे के द्वारा भरवाए गए जल में रजो दोष नहीं होता है.
उपाकर्म में, उत्सर्ग कृत्य में, प्रात:काल के स्नान में, विपत्तियों में, सूर्यग्रहणकाल में तथा चंद्रग्रहणकल में रजोदोष नहीं होता है. हे सनत्कुमार ! अब मैं सिंह संक्रांति में गोप्रसव के विषय में कहूँगा. सिंह राशि में सूर्य के सक्रमण होने पर यदि गोप्रसव होता है तब जिसकी गाय प्रसव करती है, उसकी मृत्यु छह महीनों में हो जाती है. मैं इसकी शांति भी बताऊँगा, जिससे सुख प्राप्त होता है. प्रसव करने वाली उस गाय को उसी क्षण ब्राह्मण को दे देना चाहिए. उसके बाद घृत मिश्रित काली सरसों से होम करना चाहिए. इसके बाद व्याहृतियों से घृत में सिक्त तिलों की एक हजार आठ आहुतियां डालनी चाहिए. उपवास रखकर विप्र को प्रयत्नपूर्वक दक्षिणा देनी चाहिए।
सिंह राशि में सूर्य के प्रवेश करने पर जब गोष्ठ में गौ प्रसव होता है तब कोई अनिष्ट अवश्य होता है अत: उसकी शान्ति के लिए शांतिकर्म अनुष्ठान करना चाहिए. अस्य वाम. इस सूक्त से तथा तद्विष्णो: इस मन्त्र से तिल तथा घृत से एक सौ आठ आहुतियां देनी चाहिए और मृत्युंजय मन्त्र से दस हजार आहुतियां डालनी चाहिए. उसके बाद श्रीसूक्त से अथवा शांतिसूक्त से स्नान करना चाहिए. इस प्रकार किए गए विधान से कभी भी भय नहीं होता है. इसी प्रकार यदि श्रावण मास में घोड़ी दिन में प्रसव करे तो इसके लिए भी शान्ति कर्म करना चाहिए, उसके बाद दोष नष्ट हो जाता है।
हे सनत्कुमार ! अब मैं कर्क संक्रांति में, सिंह संक्रांति में तथा श्रावण मास में किए जाने वाले शुभप्रद दान का वर्णन करूँगा. सूर्य के कर्क राशि में स्थित होने पर घृतधेनु का दान तथा सिंह राशि में स्थित होने पर सुवर्ण सहित छत्र का दान श्रेष्ठ कहा जाता है तथा श्रावण मास में दान अति श्रेष्ठ फल देने वाला कहा गया है. भगवान श्रीधर की प्रसन्नता के लिए श्रावण मास में घृत, घृतकुम्भ, घृतधेनु तथा फल विद्वान ब्राह्मण को प्रदान करने चाहिए. मेरी प्रसन्नता के लिए श्रावण मास में किए गए दान अन्य मासों के दानों की अपेक्षा अधिक अक्षय फल देने वाले होते हैं. बारहों महीनों में इसके समान अन्य मास मुझको प्रिय नहीं है. जब श्रावण मास आने को होता है तब मैं उसकी प्रतीक्षा करता हूँ।
जो मनुष्य इस मास में व्रत करता है वह मुझे परम प्रिय होता है क्योंकि चन्द्रमा ब्राह्मणों के राजा हैं, सूर्य सभी के प्रत्यक्ष देवता हैं ये दोनों मेरे नेत्र हैं, कर्क तथा सिंह की दोनों संक्रांतियां जिस मास में पड़े उससे बढ़कर किसका माहात्म्य होगा. जो मनुष्य इस श्रावण मास में पूरे महीने प्रात:काल स्नान करता है, वह बारहों महीने के प्रात: स्नान का फल प्राप्त करता है. यदि मनुष्य श्रावण मास में प्रात: स्नान नहीं करता है तो बारहों महीनो में किये गए उसके स्नान का फल निष्फल हो जाता है।
हे महादेव! हे दयासिन्धो! मैं श्रावण मास में उषाकाल में प्रात:स्नान करूँगा, हे प्रभो ! मुझे विघ्न रहित कीजिए. प्रात: स्नान करके शिवजी की पूजा करके श्रावण मास की सत्कथा का प्रतिदिन भक्तिपूर्वक श्रवण करना चाहिए. बुद्धिमान व्यक्ति इस प्रकार से ही मास व्यतीत करता है. अन्य मासों की प्रवृत्ति पूर्णमासी प्रतिपदा से होती है किन्तु इस मास की प्रवृत्ति अमावस्या की प्रतिपदा से होती है. श्रावण मास की कथा के माहात्म्य का वर्णन भला कौन कर सकता है. इस मास में व्रत, स्नान, कथा-श्रवण आदि से जो सात प्रकार की वन्ध्या स्त्री होती है, वह भी सुन्दर पुत्र प्राप्त करती है. विद्या चाहने वाला विद्या प्राप्त करता है, बल की कामना करने वाले को बल मिल जाता है, रोगी आरोग्य प्राप्त कर लेता है, बंधन में पड़ा हुआ व्यक्ति बंधन से छूट जाता है, धन का अभिलाषी धन को पा लेता है, धर्म के प्रति मनुष्य का अनुराग हो जाता है तथा पत्नी की कामना करने वाला उत्तम पत्नी पाता है।
हे मानद ! अधिक कहने से क्या प्रयोजन, मनुष्य जो-जो चाहता है उस-उस को पा लेता है और मृत्यु के बाद मेरे लोक को पाकर मेरे सान्निध्य में आनंद प्राप्त करता है. कथा सुनाने के बाद वस्त्र, आभूषण आदि से कथा वाचक की विधिवत पूजा करनी चाहिए. जिसने वाचक को संतुष्ट कर दिया उसने मानो मुझ शिव को प्रसन्न कर दिया. श्रावण मास का माहात्म्य सुनकर जो वाचक की पूजा नहीं करता, यमराज उसके कानों को छेदते हैं और वह दूसरे जन्म में बहरा होता है. अत: सामथ्यार्नुसार वाचक की पूजा करनी चाहिए. जो मनुष्य उत्तम भक्ति के साथ इस श्रावण मास माहात्म्य का पाठ करता है अथवा सुनता है अथवा दूसरों को सुनाता है उसको अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है।
ेइस प्रकार श्रीस्कन्द पुराण के अंतर्गत ईश्वर सनत्कुमार संवाद में श्रावण मास माहात्म्य में नदी-रजोदोष-सिंह-गौप्रसव-सिंहकर्कट-श्रावणस्तुति वाचक पूजा कथन नामक सत्ताईसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ।