मदन राठौड़ को सौंपी सूची
राजस्थान के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ हों या पर्ची मुख्यमंत्री भजन लाल दोनों ही बतौर पद वसुंधरा से बहुत बड़े हैं। उनके सामने वसुंधरा तो मात्र विधायक ही हैं। मगर इन दोनों ही पदों पर वसुंधरा का कद भारी पड़ रहा है। यही वह कद है जिससे सियासत चलती है।
मुख्यमंत्री हों या प्रदेश अध्यक्ष राज्य के मंत्री हों या केन्द्र के सभी वसुंधरा से मिलने उनके निवास पर आते हैं। कद के सामने पद कितने बौने हो जाते हैं?
शरीर के कद को गर्दन काट कर कम किया जा सकता है मगर कद की गर्दन नहीं काटी जा सकती यही वजह है कि दिल्ली वालों ने कई नेताओं को वसुंधरा के कद को कम करने के दायित्व सौंपे या यूं कहिए सुपारी दीं मगर कद जब जनता के बीच में खड़ा हो और जनता द्वारा खड़ा किया गया हो तो उसे दिल्ली क्या न्यूयार्क भी कम नहीं कर सकता।
आप भी सोच रहे होंगे कि आज मैं किस मूड में हूँ और कहना क्या चाह रहा हूँ। तो दोस्तों! आज यही बताना चाह रहा हूँ कि वसुंधरा की किस्मत का सूरज काली घटाओं से बाहर आ गया है। दिल्ली के घटाघोप से उसे मुक्ति मिल गयी है।
दिल्ली ने प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ को इशारा कर दिया है कि वसुंधरा को तरजीह देकर फिर से राज्य में भाजपा को मजबूत किया जाए। यह आदेश पूर्व प्रदेश अध्यक्षों को दिए गए इशारों से एक दम विपरीत हैं। पूनिया और राजेन्द राठौड़ को जो खलनायकी दायित्व दिए गए थे उनसे सर्वथा विपरीत।
अब मदन राठौड़ वसुंधरा की सरपरस्ती में भाजपा को मजबूत करेंगे। पर्ची से मुख्यमंत्री बने भजनलाल का वसुंधरा से तारतम्य नहीं बैठ पाया। हालांकि वह बेचारे वसुंधरा का आशीर्वाद और सहयोग लेने उनके निवास पर गए भी मगर चाह कर भी अपने दिल की बात नहीं कह पाए और महारानी तो अपने कद की ऊँचाई को बरकरार रखे हुए थीं। वह क्या पत्ते खोलती।
हां अब जब उनके अपने नेता मदन राठौड़ को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है उन्होंने सारे पत्ते खोल दिये हैं। राठौड़ ने हाल ही में वसुंधरा जी से मिलकर लंबी बात की। लगभग दो घण्टे से जिÞयादा उन्होंने भाजपा के भविष्य को सुरक्षित और समृद्ध करने के गुर सीखे।
इस बार वसुंधरा ने वह कर दिया जो उन्होंने अब तक नहीं किया था। उन्हें पता था कि उनको दुश्मन समझने वाले नेताओं ने अब उनको इस्तेमाल करने की नीयत से समझौते की विवशता जाहिर की है इसलिए उन्होंने इस बार दो टूक प्रस्ताव दिल्ली तक भिजवा दिया है।
मेरे सूत्रों ने पुख़्ता जानकारी दी है कि महारानी ने अपने मुख्यमंत्री नहीं बनाये जाने पर तो सब्र कर लिया है मगर उनके समर्थकों के साथ जो दुश्मनी निभाई गयी है वह उसको नहीं भूल पाई हैं। उन्होंने मदन राठौड़ के जरिए दिल्ली को संदेश भिजवा दिया है कि अब यदि दिल्ली को उनका साथ चाहिए तो उनके समर्थकों को जो मेरे समर्थक होने के साथ साथ पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता हैं उन्हें सत्ता और संगठन दोनों में ही तत्काल समायोजित करना पड़ेगा। सिर्फ़ बैनर्स और पोस्टर्स पर उनकी तस्वीर लगा देने से कुछ नहीं होने वाला।
वसुंधरा ने अपने ऐसे लोगों की सूची भी बना ली है जिन्होंने सिर्फ़ वसुंधरा का नाम जुड़ा होने का खामियाजा भुगता। बहुत से सीनियर नेता जिनकी सियासत का शानदार इतिहास रहा है और महारानी के साथ जिनको बर्फ़ में लगा दिया गया वे अब बहुत जल्दी सत्ता और संगठन के हिस्सेदार हो जाएंगे।
सत्ता और संगठन में जिनको समायोजित किए जाने की बात महारानी ने मदन राठौड़ को कही है उसकी सूची मेरे पास है मगर मैं इसलिए उसे सार्वजनिक नहीं करना चाहता कि हो सकता है इससे उनका बुरा हो जाए।
इतना इशारा जरूर करूँगा की पूर्व में सत्ता का हिस्सा रहे लगभग 4 नेता मंत्रीमंडल के रद्दो बदल में शामिल होंगे। संगठन में लगभग 20 छोटे बड़े नेता शामिल किए जाएंगे। ऐसे में बर्फ में लगा दिए गए कई चेहरे फिर रौशनी में चमकदार हो जाएंगे।
महारानी की सूची पर दिल्ली की मोहर उपचुनाव से पहले लगनी तय है। देखना बस ये होगा कि दिल्ली उत्तरप्रदेश के उपचुनावों में योगी आदित्यनाथ की क्या भूमिका तय करती है?यदि फैसला आर एस एस की मर्ज़ी के विरुद्ध हुआ तो क्रांति में राजस्थान की राजनीति भी विचलित हुए बिना नहीं रहेगी। योगी और वसुंधरा को एक मानसिकता के साथ देखना ही व्यवहारिक होगा। मैं समझता हूं आज इतना इशारा ही काफी है।